बीसवीं सदी में सबसे ज़्यादा पढ़े गए लेखकों में शुमार रोआल्ड डाल ने उपन्यास लिखे, बच्चों के लिए किताबें लिखीं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक से एक अविस्मरणीय कहानियां लिखीं.
नॉर्वेजियन मूल के माता-पिता के घर वेल्स, इंग्लैण्ड में 13 सितम्बर 1916 को जन्मे डाल ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान रॉयल एयर फ़ोर्स में नौकरी की. 1940 के दशक से उन्होंने पूर्णकालिक लेखन को जीवनयापन का माध्यम बना लिया. कुछ ही सालों में वे दुनिया भर की बैस्टसैलर्स की सूची में नियमित रूप से पाए जाने लगे. आज भी यानी अपनी मौत (23 नवम्बर 1990 को उनका देहान्त हुआ) के 28 सालों बाद उनका यह रुतबा कायम है.
उनकी कहानियां अपने आशातीत क्लाइमैक्स के लिए जानी जाती हैं. यह डाल साहब की ख़ूबी है कि वे आप को अन्त तक बांधे रहते हैं और आमतौर पर आख़िरी पंक्ति में आपको हैरत में डाल देते कि अरे …!
उनकी कहानियों में सीधे सादे ग्रामीण, धूर्त पादरी, यौनवर्धक दवाओं की खोज में जुटे रहने वाले व्यवसायी, सतत कामुक और बेहद ज़हीन और कुलीन अंकल ओसवाल्ड, किशमिश को पानी में डाल फुला देने के उपरान्त उसमें घोड़े की पूंछ के बाल का ज़रा सा टुकड़ा फंसा कर जंगली मुर्गियों के शिकार हेतु चारे की तरह इस्तेमाल करने वाला क्लाउड, एक से एक वैज्ञानिकी कारनामे, नेत्रहीनों के लिए ब्रेल में लिखी गई पोर्नोग्राफ़ी और जाने क्या क्या लगातार आता रहता है आपको चमत्कृत करता रहता है.
उनका बाल साहित्य इस तरह के आम साहित्य से काफ़ी फ़र्क है. बचपन और कैशोर्य की अपनी असाधारण समझ के चलते रोआल्ड डाल अपने युवतर पाठकों को बच्चा नहीं समझते और उनके लिए ख़ाली संवेदनापूर्ण विषयों का निर्माण नहीं करते. उनके बालसाहित्य का अपेक्षाकृत ‘ब्लैक ह्यूमर’ उनके समकालीन किसी और लेखक में नज़र नहीं आता. सम्भवतः इसी वजह से डाल बच्चों में भी उतने ही लोकप्रिय हैं. उनकी पुस्तकों की बिक्री हर साल बढ़ती जाती है.
अगर आपने डाल को नहीं पढ़ा है तो कहीं से उनकी कोई किताब का जुगाड़ बनाइये और जुट जाइए. द ट्विट्स, एडवैन्चर्स ऑफ़ अंकल ओसवाल्ड, चार्ली एन्ड द चॉकलेट फ़ैक्ट्री, माटील्डा, द बीएफ़जी, किस किस, बिच वगैरह उनकी कुछ प्रमुख किताबें हैं. वैसे उनकी प्रतिनिधि कहानियों के छोटे छोटे संग्रहों से लेकर समग्र संकलन भी उपलब्ध हैं.
पाककला पर लिखी उनकी किताब ‘मैमोरीज़ विद फ़ूड एट जिप्सी हाउस’ में एक दिलचस्प हिस्सा है. वैसे तो इस किताब में व्यंजनों, कॉकटेल्स, बेकरी पर शानदार फ़ोटोग्राफ़्स और इलस्ट्रेशन्स से सजे कई पन्ने हैं. पर एक हिस्सा ग़ज़ब का मज़ेदार है. ‘द हैंगमैन्स सपर’ नामक इस खंड में रोआल्ड डाल के घर यानी ‘जिप्सी हाउस’ में रह चुके विश्वविख्यात व्यक्तियों ने बताया है कि अगर उन्हें अगली सुबह फांसी दी जानी तय हो तो वे अपने ‘लास्ट सपर’ यानी रात के अंतिम भोजन में क्या खाना पसन्द करेंगे.
1990 में डाल की मौत प्री-ल्यूकीमिया के कारण हुई. जाहिर है ऐसे ग़ज़ब के आदमी का अन्तिम संस्कार ऐसा-वैसा नहीं हो सकता था. उन्हें किसी वाइकिंग की तरह विदाई दी गई. उनके साथ दफ़नाई गई चीज़ों में निम्नलिखित वस्तुएं थीं:
– रोआल्ड के स्नूकर क्यूज़
– शानदार बरगन्डी शराब की कुछ बोतलें
– चॉकलेटें
– एच. बी. पेसिलों के कुछ डिब्बे
– बिजली से चलने वाली एक छोटी आरी.
2006 के बाद से समूचे यूरोप में 13 सितम्बर को रोआल्ड डाल दिवस के रूप में मनाए जाने की परम्परा चल निकली है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…