Featured

भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की

30 अगस्त 1923 को जन्मे मशहूर गीतकार शैलेन्द्र का असल नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र था. (Remembering Lyricist Shankar Shailendra)

1947 में भारतीय रेलवे की माटुंगा, मुम्बई वर्कशॉप में एक एप्रेंटिस के रूप में अपने करियर जा आगाज करने वाले शैलेन्द्र को कविता लिखने का शौक था. वे ट्रेड यूनियनों के जलसों में हिस्सा लेते थे और तमाम मुशायरों में भी. एक बार उन्हें राज कपूर ने कविता पढ़ते हुए देखा तो वे उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया. इप्टा से जुड़े शैलेन्द्र ने पहले तो मना किया लेकिन बाद में पत्नी के गर्भवती होने पर जब वे आर्थिक दिक्कतों से दोचार हुए, उन्होंने राज कपूर के साथ काम करना स्वीकार कर लिया. (Remembering Lyricist Shankar Shailendra)

इस तरह फिल्म बरसात के दो गीतों के साथ राज कपूर और शैलेन्द्र की जोड़ी बनी जिसने भारतीय सिनेमा में कई मील के पत्थर खड़े किये.

राजनैतिक चेतना से भरपूर इस कवि ने भारतीय सिनेमा के अलावा अनेक ऐसी रचनाएं कीं जिन्हें अब कल्ट की हैसियत प्राप्त है. ‘तू ज़िंदा है तू जिन्दगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर’ ऐसा ही एक गीत है.

तमाम राजनीतिक-गैर राजनीतिक धरने-प्रदर्शनों में लगाया जाने वाला नारा ‘हर जोर जुलम की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है’ नारा भी उन्हीं एक गीत की शुरुआती पंक्तियों से लिया गया है.

भारत की राजनैतिक व्यवस्था पर गहरे तंज करती अपनी कविताओं के लिए भी शंकर शैलेन्द्र को उसी तरह याद किया जाना चाहिए जैसे कि वे अपने फ़िल्मी गानों, जिनमें – रुला के गया सपना मेरा, घर आया मेरा परदेसी, तुम हमें प्यार करो या ना करो, ओ रे माझी ओ रे माझी, ओ बसंती पवन पागल, हैं सबसे मधुर वो गीत, सब कुछ सीखा हमने – शामिल हैं, के लिए याद किये जाते हैं.

भारत की आजादी के तुरंत बाद के साल गयी उनकी एक मशहूर रचना पेश है:

चित्रकार सोभा सिंह द्वारा बनाया गया भगत सिंह का चित्र
भगतसिंह से

शंकर शैलेन्द्र
भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी सज़ा मिलेगी फाँसी की !

मत समझो, पूजे जाओगे क्योंकि लड़े थे दुश्मन से,
रुत ऐसी है आँख लड़ी है अब दिल्ली की लंदन से,
कामनवैल्थ कुटुम्ब देश को खींच रहा है मंतर से-
प्रेम विभोर हुए नेतागण, नीरा बरसी अंबर से,

भोगी हुए वियोगी, दुनिया बदल गई बनवासी की !

सत्य अहिंसा का शासन है, राम-राज्य फिर आया है,
भेड़-भेड़िए एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है !
दुश्मन ही जब अपना, टीपू जैसों का क्या करना है ?
शान्ति सुरक्षा की ख़ातिर हर हिम्मतवर से डरना है !

पहनेगी हथकड़ी भवानी रानी लक्ष्मी झाँसी की !

यदि जनता की बात करोगे, तुम गद्दार कहाओगे-
बम्ब सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया कि पकड़े जाओगे !
निकला है कानून नया, चुटकी बजते बँध जाओगे,
न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे,

काँग्रेस का हुक्म; ज़रूरत क्या वारंट तलाशी की !

गढ़वाली जिसने अँग्रेज़ी शासन से विद्रोह किया,
महाक्रान्ति के दूत जिन्होंने नहीं जान का मोह किया,
अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू-माडल आज़ादी है,
बैठ गए हैं काले, पर गोरे ज़ुल्मों की गादी है,

वही रीति है, वही नीति है, गोरे सत्यानाशी की !

1948

यह भी पढ़ें: गीतकार शैलेन्द्र को याद करने का दिन था कल

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • शैलेंद्र जो गीत 1948 में लिख गए अमर शहीद भगत सिंह के लिए, तब वह गीत सार्थक था, तो आज के राजनीतिक माहौल में कलम से कोई देशभक्ति की बात आसानी से राजनीतिक कीचड़ में लपेट दी जाती ।

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

2 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

3 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

5 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

19 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago