समाज

अल्मोड़ा में कठपुड़िया प्राइमरी पाठशाला के रतन मासाब जिनका तबादला गाँव वाले हमेशा रुकवा देते थे

मैं उन दिनों प्राइमरी पाठशाला कठपुड़िया में पड़ता था. स्कूल गया तो सीधे कक्षा दो में बैठ गया क्योंकि घनदा कक्षा दो में पड़ता था, हमउम्र था और कक्षा की समझ भी नहीं थी. इसलिये साथ बैठने की जिद करने लगा. यह देख प्रधानाध्यापक ने कुछ पूछा और फिर संस्तुति दे दी. कुर्ता एवं गालीस वाली पैंट, जिसमें आगे और पीछे से कटिंग की होती थी ताकि अगर रास्ते में पैखाना जाना हो तो पैंट उतारने की जरुरत न पड़े, पहनकर नंगे पैर में भी ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल को चल दिया.
Kathpudiya Primary School Almora

उन दिनों चप्पल आसानी से उपलब्ध नहीं थे.  हाथ में एक तख्ती थी और बांस के डंडे को छिलकर सुरेश दाज्यू ने कलम बनाई थी. कमेट से तख्ती में अ, आ, इ, ई  लिखना था, जैसा भी आया लिख दिया. इंटरवल में दलिया या दूध पाउडर से बने एक मघ गरम दूध का बेसब्री से इंतजार था और लाइन लगा ली. मन में ये भी डर था कि कहीं मेरा नंबर आने तक स्टॉक खत्म न हो जाय.  उन दिनों रतन राम मास्साब स्कूल के प्रधानाध्यापक हुआ करते थे वे बहुत ही अनुशासन प्रिय थे. स्कूल के हर क्षेत्र में उनकी व्यवस्था अनुकरणीय थी. सब को बारी-बारी से दलिया या दुध वितरित किया जाता था.

शाम को छुट्टी होते ही खुद ही ड्राइवर और गाड़ी बन कर टिर्रीट-घर्र कहते हुवे दौड़ लगा कर घर पहुंच जाते थे. जो बच्चे ज्यादा ही  होनहार होते थे वे घुसुड़ी लगा कर जल्दी घर पहुँच जाते थे. घुसुड़ी एक तरह का रोलर कोस्टर हुआ जो पहाड़ी चट्टान से फिसलते हुवे नीचे जाना होता हैं, इसके लिए पैंट मजबूत होनी चाहिए.

शाम को बकौवा (एक तरह की मोटे पत्तेदार बनस्पति) के झार और तवे के कालिख को तख्ती में रगड़ कर एक शीशी से घोट्टा लगाते थे जिससे तख्ती मैं चमक आ जाती थी. उन दिनों खेतों में गुड़ाई का भी काम होता था इसलिए तख्ती में घोट्टा लगाकर  सीधे खेत में मडुवे की गुड़ाई करने जाते थे. जाते वक्त ईजा के लिए एक केतली में चाय भी ले जाना होता था, ईजा सुबह ही बता देती थी.
(Kathpudiya Primary School Almora)

गुड़ाई करके जब घर आते थे तो लम्फू जलाकर कुछ पढ़ाई कर लेते थे. इन दिनों सीमनटाई (बच्चों का लोकल खेल जिसमें 4-5 गिट्टी रखकर राज्य छीनना होता है.) खेलने का भी वक्त नहीं हो पाता था. सुबह खेत का थोड़ा बहुत काम देख कर स्कूल चले जाते थे. रास्ते में कुछ माँ-बाप अपने बच्चों को गुड़ या चीज का लालच देकर स्कूल भेजने के लिए मना रहे होते थे, कुछ बच्चे पढाई  के डर से जंगल में छिप जाते थे और कमीज के बटन तोड़ कर घुच्ची खेला करते थे. शाम होते ही घर आ जाते थे और इस तरह का व्यवहार करते थे जैसे वे स्कूल में पढ़कर थक गए हों.

कठपुड़िया की प्राइमरी पाठशाला पांचवी क़क्षा तक थी और उस इलाके का बोर्ड परीक्षा का सेंटर भी होता था. उस समय पांचवी कक्षा के भी बोर्ड की परीक्षा होती थी. रतन राम मास्साब कुशल अनुशासक, मेहनती, कला में निपुण और एक ईमानदार एवं उदारवादी व्यक्तित्व के धनी थे. वह स्कूल उन्हीं के नाम से जाना जाता था.

पूरा स्कूल पर्यावरण के हिसाब से हरा-भरा बना था और स्कूल के चारों ओर फल-फूल के वृक्ष आच्छादित थे. हर वृक्ष में बच्चों की जानकारी के लिए उनके नाम का प्लेट लगा था. हर सप्ताह बच्चों से श्रमदान भी लिया जाता था. मास्साब ने स्कूल के हर कमरे की दीवाल में भारत के साथ-साथ कुमाऊं मंडल, अल्मोड़ा जिला, ब्लॉक् और विश्व एवं प्रदेश का भी सीमेंट से स्वयं मानचित्र बनाकर पेंट से एक-2 नाम प्रदर्शित कर रखे थे. हर कमरे में स्व-निर्मित हमारे पूर्वजों की तस्वीरें लगाईं हुई थी. उनकी उत्तम कला हर किसी का मन मोह लेती थी.   

रतन राम मास्साब पढ़ाई में भी बहुत सख्त थे, जो बच्चे मन लगाकर नहीं पढ़ते वे उनपर क्रोधित होते. उनका “निकालूं फावड़े का बीन” आज भी उनके पढ़ाये छात्र अक्सर याद करते हैं. हम जब पांचवी क़क्षा में थे तो गरमी के दिनों में सुबह की शिफ्ट में स्कूल खुलते थे और पांचवी के छात्रों को दोपहर बाद भी वे अकेले निस्वार्थभाव से बोर्ड की तैयारी कराते. उनका स्कूल हमेशा सेंटर में टॉप करता था. बेसिक शिक्षा अधिकारी भी उनका लोहा मानते थे. अधीनस्थ अध्यापक भी उनके प्रति श्रद्धाभाव रखते थे एवं उनकी इज्जत करते थे.
(Kathpudiya Primary School Almora)

चारों तरफ के गावों में उनकी काफी इज्जत थी. उनका जब भी तबादला होता गांव के लोग उनका तबादला रुकवा देते. इस तरह वे हमेशा कठपुड़िया में ही रहे. दो बार उन्हें उच्च सम्मान से नवाजा गया. रतन राम मास्साब एक उच्चकोटि के शिक्षाविद थे और अपने सामाजिक एवं मौलिक कर्तब्यों के प्रति हमेशा सजग रहते थे.

अल्मोड़ा एवं रानीखेत के बीच में मैन रोड पर बसा कठपुड़िया यद्यपि प्राकृतिक दृश्य से बहुत ही खूबसूरत है, हिमालय की निहारती चोटिया उसके सौंदर्य मैं और भी छटा बिखेर देती हैं . इनसब के बावजूद रतन राम मास्साब की उपस्थिति कठपुडिया के महत्व को चार चाँद लगा देती थी.  आज रतन राम मास्साब हमारे बीच नहीं  हैं, उन जैसा कर्मनिष्ठ कोई और हेड मास्टर वहाँ उनके बाद न आया और न कोई आएगा. व्यक्ति अपने  वक्तित्व से जाना जाता है उसके कार्य समाज में कभी न मिटनेवाली छाप छोड़ जाते हैं. वे आज भी अपने पढाये छात्रों के दिल में अमर हैं. यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है.
(Kathpudiya Primary School Almora)

यह लेख काफल ट्री को हरीश चन्द्र पाठक ने भेजा है. हरीश फिलहाल दिल्ली में रहते हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago