आप पिथौरागढ़ में केमू स्टेशन से नीचे सिनेमा लाइन की ओर बड़ रहे हैं और तभी पीछे से कोई हल्की सी आवाज में नजर चुराकर आपसे कहे दाज्यू फर्स्ट क्लास का टिकट लोगे फर्स्ट क्लास का.
यह किसी कल्पना का दृश्य नहीं है बल्कि आज से चालीस एक साल की हकीकत है. फिल्मों को लेकर कुछ लोग तो इतने जुनूनी थे कि फिल्म के टिकट के लिये मैनेजर के घर तक पहुंच जाया करते थे.
साठ के दशक में पूरे भारत में सिनेमा का विस्तार बड़ी तेजी से हो रहा था लेकिन पिथौरागढ़ जिले में 1964 तक कोई सिनेमाघर नहीं था. 1964 में पिथौरागढ़ के लगभग दो दर्जन व्यापरियों ने मिलकर एक सिमांचल प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कम्पनी बनाई. इस कम्पनी में 23 लोगों के शेयर थे. और फिर 1964 में लकड़ी के एक शेड में तिरपाल डालकर शुरु हुआ पिथौरागढ़ में सिनेमाघर.
तिरपाल से ढके इस सिनेमाघर पहली फिल्म लगी रामायण. यह सम्पूर्ण रामायण थी. जिसे देखने दूर-दराज के गांव के लोग भी पिथौरागढ़ जिले में आये. इसी दौरान पक्के सिनेमाघर का निर्माण भी किया गया.
1966 में पिथौरागढ़ में पक्का सिनेमाघर तैयार हो गया. इस सिनेमा हाल की क्षमता 556 दर्शकों की थी. इस सिनेमाघर में सबसे आगे थी तृतीय श्रेणी की सीट जो एक प्लेन बैंच हुआ करती थी उसके बाद आती थी द्वितीय श्रेणी की सीट. द्वितीय श्रेणी की सीट की बैंच पर हत्थे लगे होते थे और फिर आती थी प्रथम श्रेणी की सीट. इस सीट में अच्छी किस्म की गद्दी लगी होती थी. प्रथम श्रेणी का टिकट एक रूपये का, द्वितीय का साठ पैसे का और तृतीय का चालीस पैसे का टिकट हुआ करता था.
1966 में इस सिनेमाघर में पहली फिल्म राजकपूर ,राजेंद्र कुमार और बैजयंती माला की संगम लगी थी. पहला शो आम लोगों को नसीब नहीं हुआ था. इसे जिलाधिकारी और प्रशासन के अन्य लोगों ने देखा.
पिथौरागढ़ शहर में बिजली 1972 में आई थी इस वजह से यहां के सिनेमाहाल में केवल दो शो होते थे. शाम तीन से छः और छः से नौ. प्रकाश की व्यवस्था के लिये यहां पेट्रोमैक्स लगाये गये थे. 72 में जब बिजली आई तो शो की संख्या बढ़ाकर तीन कर दी गयी.
जय संतोषी मां फिल्म इस सिनेमाघर में सबसे लम्बे समय तक लगने वाली फिल्म है. 1964 से लेकर 2000 तक इस शहर के बीचों-बीच बने इस सिनेमाघर की गजब की धूम थी. अभी 2000 तक इस सिनेमाघर के हाल ठीकठाक थे. लेकिन समय के साथ गति न मिला पाने के कारण यह सिनेमाघर अब बंद हो चुका है.
दैनिक जागरण में संगम फिल्म का पहला शो देखने वाले दर्शक और सिनेमाघर के मैनेजर देवकी नंदन जोशी के लेख के आधार पर.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…
सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…