आज के दिन भी हिमालय की गोद में बसे बदियाकोट तक पहुंचना और फिर बाकि दुनिया के सम्पर्क में रहना मुश्किलों से भरा है. बदियाकोट पहुंच कर हमारी दुनिया से अलग बदियाकोट की दुनिया देखने को मिलती है वहां के लोगों से मिलना और उन्हें आनंद में देखना अपने आप में अद्वितीय अनुभव है.
(Photos of Malla Daanpur Uttarakhand)
कुछ साल पहले बदियाकोट में स्थित मां आदिबद्री भगवती माता के मंदिर की फोटो देखी तभी से मन था इस जगह पर जाने का और कुछ दिन वहां व्यतीत करने का क्योंकि मंदिर की निर्माण शैली कुमाऊं में दिखने वाले मंदिरों से बिलकुल अलग थी. यह इच्छा इस साल नंदा देवी की नंदा अष्टमी के साथ पूरी हुई.
नंदा अष्टमी के दौरान पूरा उत्तराखंड नंदा देवी की भक्ति में रम जाता है. चाहे शहर हो या बागेश्वर जिले के सुदूर में और चमोली जिले की सीमा से लगे बदियाकोट जैसे गांव. हर जगह के लोग उत्तराखंड की आराध्य देवी मां नंदा के उत्सव को मनाते हैं.
बागेश्वर के मल्ला दानपुर के बदियाकोट के स्थानीय निवासियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 12वीं या 13 वीं सदी में हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार गढ़वाल के चमोली अंचल के बद्रीनाथ से मां भगवती मृग रूप में दो दानू भाइयों, थली और बलि के साथ हिमालय मार्ग से बदियाकोट तक आई. यहां पहुंचने पर रात हो गई तो मृग और दोनों भाई एक पहाड़ी के नीचे रुक गए. सुबह होने पर मृगवेश से निकल कर मां ने दोनों भाइयों को पूर्ण दर्शन दिए और उन्हें बताया कि दोनों इस पहाड़ी के शीर्ष में रात में देवी के वाहन सिंह द्वारा समतल किए गए मैदान पर उनके मंदिर का निर्माण करें तब उन दोनों भाइयों ने देवी के इस मंदिर का निर्माण किया.
(Photos of Malla Daanpur Uttarakhand)
मेले के दौरान इस जगह पर आने की खूबसूरती यह है कि यहां आपको कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों का संगम देखने को मिलेगा. साथ ही साथ इस समय दानपुर के लोग इस मेले में बड़ चढ़ कर भाग लेते हैं. यहां अपने अपने पारंपरिक परिधानों में आए लोग लगभग पूरे दिन और रात झोड़ा और चांचरी नाचते और गाते देखे जा सकते हैं.
बदियाकोट ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए भी उपयुक्त स्थान है. इसके पास में शंभू गलेशियर स्थित है और यहां से एक ट्रेक हिमनी, घेस, बलाण होते हुए चमोली में आली बुग्याल, बेदिनी बुग्याल और वहां से आगे रूपकुंड तक जाता है जिसे ट्रैकिंग और एडवेंचर के शौकीन लोग कर सकते हैं.
यहां तक पहुंचने के लिए बागेश्वर से कपकोट और कपकोट से कर्मी होते हुए पहुंचा जा सकता है. कपकोट से यहां तक पहुंचने में 3 से 4 घंटे का दुर्गम सफ़र करना पड़ता है. यह सफ़र अधूरा रहता अगर मेरे करीबी मित्र पियूष पोखरिया अल्मोड़ा से और रविंद्र देव सिंह व दिनेश राठौर कपकोट से साथ में न होते. साथ देने के लिए उनका दिल से शुक्रिया.
(Photos of Malla Daanpur Uttarakhand)
फ़िलहाल आप यहां देखिए इस साल बदियाकोट में हुए नंदा देवी मेले के फोटोग्राफ्स. (लेख और सभी तस्वीरें काफल ट्री के अनन्य साथी जयमित्र सिंह बिष्ट की फेसबुक वाल से लिये गये हैं) –
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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