कुमाऊं मण्डल के बागेश्वर जिले की कपकोट तहसील का एक गाँव है लोहारखेत. ये गाँव पिंडारी, कफनी और सुन्दरढूँगा ग्लेशियरों के रास्ते का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी है. खड़किया तक रोड बनने से पहले लोहारखेत इन यात्राओं का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था. उस वक़्त सड़क मार्ग से सौंग तक जाया जाता था. सौंग से उसी दिन 4 किमी की पैदल दूरी तय कर कुमाऊं मण्डल विकास निगम की डॉरमेट्री और स्थानीय ग्रामीणों के घर में ही रुकने की व्यवस्था हुआ करती थी. मेरी जानकारी में यह यात्रा मार्ग ही उत्तराखण्ड की ऐसी पहली जगह थी जहाँ सबसे पहले होम स्टे की शुरुआत हुई. स्थानीय ग्रामीणों ने इसकी शुरुआत भी खुद अपनी ही पहलकदमी से की थी. यहाँ के कई गाँवों में यह परम्परा आज भी बरकरार है.
लोहारखेत पहाड़ी शैली के ठेठ घरों से बना खूबसूरत गाँव है, जहाँ सरल पहाड़ी लोगों से आपका मेलजोल सहजता से बन जाता है. प्रकृति ने इसे बेपनाह खूबसूरती बख्शी है. 2013 की प्राकृतिक आपदा ने लोहारखेत और आस-पास के गाँवों को काफी हद तक प्रभावित किया था. आपदा के कुछ दिनों के बाद स्थानीय ग्रामीणों के पुनर्वास की गरज से मुम्बई से यहाँ पहुंची एक टीम का हिस्सा बनने का मौका मुझे मिला. इस टीम ने उस समय भूस्खलन रोकने के लिए यहाँ बड़े पैमाने पर स्थानीय ग्रामीणों के साथ मिलकर वृक्षारोपण किया. हाल तक सक्रिय यह टीम इस क्षेत्र में कई तरह के कामों को अंजाम दे रही है.
2014 के बसंत में इस अभियान के दौरान की कुछ जिंदादिल तस्वीरें.
सुधीर कुमार हल्द्वानी में रहते हैं. लम्बे समय तक मीडिया से जुड़े सुधीर पाक कला के भी जानकार हैं और इस कार्य को पेशे के तौर पर भी अपना चुके हैं. समाज के प्रत्येक पहलू पर उनकी बेबाक कलम चलती रही है. काफल ट्री टीम के अभिन्न सहयोगी.
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