समाज

महंगाई की मार पर एक पुराना कुमाऊनी लोकगीत

कुमाऊं और गढ़वाल के क्षेत्र में समसमसामायिक मुद्दों पर गीत कहने और सुनाने की बड़ी पुरानी परम्परा रही है. यहाँ होने वाले मेलों में इस तरह के गीत गाते लोग अक्सर देखने को मिल जाते थे. अब यह परम्परा लगभग समाप्त ही हो गयी है. जैसे जैसे मेलों का स्वरूप बदला है इस तरह की परम्परा भी खत्म ही हो गयी है.
(Old Kumauni Folk Song)

इन्हीं मेलों में गाये जाने वाला एक पुराना लोकगीत पिछले दिनों सोशियल मीडिया पर खूब शेयर हो रहा है. महंगाई की मार से जुड़ा यह गीत पुराने समय में खूब गाया जाता था. इस लोकगीत में पति और पत्नी के बीच संवाद हो रहा है. जिसमें पत्नी घर के हाल बता रही है और पति इसे अच्छा समय आने की दिलासा दे रहा है.     

तिलुवा बौज्यू घागरी चिथड़ी, कन देखना आंगडी भिदड़ी
खान-खाना कौंड़ी का यो खाजा, हाई म्यार तिलु कै को दिछ खाना
न यो कुड़ी पिसवै की कुटकी, चावल बिना अधियाणी खटकि
साग पात का यो छन हाला, लूण खाना जिबड़ी पड़ छाला

न यो कुड़ि घीये की छो रत्ती, कसिक रैंछ पौडों की यां पत्ती
पचां छट्ट घरूं छ चा पाणी, तै पर नाती टपुक सु चीनी
धों धिनाली का यो छन हाला, हाय मेरा घर छन दिनै यो राता

दुनियां में अन्याई है गई, लड़ाई में दुसमन रै गई  
सुन कीड़ी यो रथै की बाता,  भला दिन फिर लालो विधाता
साग पात को ढेर धेखली, धों धिनाली की गाड़ बगली
वी में कीड़ी तू ग्वात लगाली.
(Old Kumauni Folk Song)

यह बेहद पुराना लोक गीत किसी युद्ध के समय लिखा गया लगता है जिसका मोटा मोटा अर्थ इस तरह है-

पत्नी अपने पति से अपने कपड़े फटने से लेकर घर में अन्न का दाना न होने की बात कह रही है. पत्नी को अपने बेटे तिलुवा को लेकर भी चिंता है कि उसके तिलुवा को खाना कौन देगा. वह अपने पति को बता रही है कि घर में मुट्ठी भर आटा नहीं है, पतीली में पानी तो उबल रहा है पर उसमें चावल नहीं है साग सब्जी न होने की वजह से नमक खाते खाते उसकी जीभ में छाले पड़ गये हैं.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये वह अपने पति से पूछ रही है कि घर में आने वाले मेहमानों का सत्कार वह कैसे करेगी क्योंकि इस घर में रत्ती भर घी तक नहीं है. चाय तक के लिये चार-पांच दिन बाद पानी रखती हूँ पर क्या करूं घर में चखने भर को चीनी तक नहीं है. धिनाली पर वह कहती है कि उसके घर में तो दिन में ही रात पड़ जाती है.

अपनी पत्नी को दिलासा देते हुये पति कह रहा है दुनिया में लड़ाई झगड़ा बढ़ गया है लोग एक-दूसरे के शत्रु हो गये हैं. पर जल्द ही विधाता अच्छे दिन जरुर लेकर आयेगा. साग-सब्जी का ढेर लग जाएगा और धिनाली की गाड़ बहने लगेगी और मेरी प्यारी तू उसी में गोते लगायेगी.
(Old Kumauni Folk Song)

काफल ट्री डेस्क

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