यह एक अटल सत्य है कि इस दुनिया में हम हमेशा के लिए नहीं रहने वाले. लेकिन हम इस सत्य को भुलाए रहते हैं. ऐसा नहीं कि हर पल मृत्यु को याद करते हुए डर कर जिया जाए, पर हम मृत्यु को समझकर और उससे डरे बिना ज्यादा सुखी जीवन जी सकते हैं. मृत्यु को समझने का अर्थ यह जान लेना है कि हम यहां के स्थायी निवासी नहीं हैं. हम अगर यहां स्थायी नहीं हैं, तो हम जो भी काम करना चाहते हैं, उसके लिए हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं.
(Mind Fit 42 Column)
हमारे सामने चुनौती यह है कि हम कम समय में ज्यादा हाई क्वॉलिटी काम कैसे करें? हाई क्वॉलिटी से तात्पर्य ज्यादा रचनात्मक कार्य से है. जाहिर है कि इसके लिए हमें ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी, क्योंकि एकाग्रता बढ़ाने के लिए ज्यादा ऊर्जा की जरूरत पड़ती है. पर हम ऊर्जा को लेकर कभी सजग रहे ही नहीं. हम हजार तरीकों से उसे बर्बाद करते रहते हैं. हमें इस बात का अहसास नहीं कि दिनभर फालतू बातें सोचने में ही कितनी ऊर्जा खर्च हो जाती है. याद रखें कि फालतू विचार उसी दिमाग में आते हैं, जो सजग नहीं होता, शिथिल होता है.
क्या कभी आपने गौर किया कि जब आप बहुत तेज गाड़ी चला रहे होते हैं, तो आपका दिमाग पूरी तरह सजग होता है. हो भी क्यों ना, जिंदगी और मौत का सवाल है. तेज गाड़ी चलाते हुए कभी आप किसी सोच में नहीं खो सकते. दिमाग आपको इसकी अनुमति नहीं देगा. आपकी सजगता किसी विचार को क्षणांश भर के लिए भी वहां नहीं ठहरने देगी.
इस बात को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है कि हमारे पास जब कोई काम नहीं होता, उस वक्त हमें अपनी ऊर्जा को बर्बाद होने से रोकना है. ताकि जब हम काम करने बैठें, तो हम ऊर्जा से भरे हुए हों. ज्यादातर लोगों की आदत यह है कि काम न होने पर वे समय काटने के लिए कोई काम खोज लेते हैं.
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आजकल तो हमारे पास स्मार्ट फोन हैं. समय काटने के हम हजार तरीकों से उसका उपयोग करते हैं. हमें किसी ने बताया नहीं कि ये टाइम पास करने वाले काम मुफ्त में नहीं होते, इनमें हमारी ऊर्जा खर्च होती है. यह ऊर्जा अगर हमारे भीतर संरक्षित रहे, तो यही हमें ज्यादा रचनात्मक होने की शक्ति प्रदान करती है. हम जितना ऊर्जा विहीन होते हैं, उतनी आसानी से नकारात्मक होने को तैयार हो रहे होते हैं. आपने देखा होगा कि जब आप रातभर अच्छी नींद लेकर सुबह उठते हैं, तो कितना तरोताजा महसूस करते हैं. वह इसलिए क्योंकि रातभर आपने ऊर्जा खर्च करने वाला कोई काम नहीं किया होता. आपके शरीर ने जितनी ऊर्जा बनाई, सब आपके भीतर संरक्षित रही. अब जरा गौर करें कि रात में आपने क्या-क्या काम नहीं किए, जिन्हें आप दिन में करते हैं.
आपने कुछ सोचा नहीं, विचारों को पकड़ उनके साथ सैर पर नहीं निकले. आपकी आंखें बंद रहीं, सो आप बहुत सी चीजें देखने से बचे. आपने किसी से कोई बातचीत नहीं की, आप चले-फिरे, दौड़े नहीं. ये ही वे गतिविधियां हैं, जिन्हें आप दिन में करते हैं और इन्हीं में आपकी सारी ऊर्जा खर्च भी होती है. अब अगर आप दिन में भी इन गतिविधियों पर नियंत्रण रख सकें, तो आपकी उतनी ही ऊर्जा संरक्षित हो सकेगी और इस ऊर्जा का आप अपने महत्वपूर्ण कार्यों में उपयोग कर सकते हैं. आपमें जितनी ज्यादा ऊर्जा रहेगी, आप उतनी देर तक एकाग्रचित्त होकर काम कर पाएंगे. हम जिसे सफलता कहते हैं, वह असल में ऊर्जा के रूपांतरण की ही कला है.
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एक लेखक अपनी ऊर्जा को विचार में रूपांतरित कर उसे शब्दों में पिरोता है. आप जब उन शब्दों को पढ़ते हैं, तो उनमें पिरोयी गई ऊर्जा ही आप तक पहुंच रही होती है. जब ऊर्जा कम होती है, शिथिल होती है, तो वे शब्द आप पर खास असर नहीं छोड़ पाते. लेकिन ऊर्जावान शब्द आपको आलोड़ित कर जाते हैं. आप अगर फिल्म निर्देशक हैं, तो फिल्म के हर दृश्य में आप ऊर्जा भरते हैं. दर्शकों तक आपकी यही ऊर्जा पहुंचती है. आप कोई भी काम करें, हर कार्य में बुनियादी तौर पर आप ऊर्जा को ही रूपांतरित कर रहे होते हैं. इसीलिए ऊर्जा ही हमारे जीवन का सबसे अहम तत्व है, क्योंकि वही हमें इस जीवन के रास्तों पर आगे ले जाती है.
इसीलिए यह जरूरी है कि हम अपनी ऊर्जा को ज्यादा से ज्यादा संरक्षित रखें. ऐसा तभी कर पाएंगे, जबकि हम हर पल सतर्क और जागरूक जीवन जिएंगे. जागरूक रहेंगे, तो ही जानेंगे कि सोचने के जरिए भी ऊर्जा जाती है.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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