कुछ दिनों पहले की बात है, मैं रामनगर की कोसी नदी पर सूर्यास्त को अपने मोबाइल पर क़ैद कर रहा था. पानी में पढ़ती हुई सूर्य की गुलाबी किरणें नदी को एक अलग ही सौन्दर्य प्रदान कर रही थी.  (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)

तभी मुझे एक युवा बैल नदी के किनारे पर टहलता हुआ नज़र आया शायद  वह अपने साथियों को ढूँढ रहा था उसको देख कर बरबस ही मेरे दिमाग़ में आया कि आस-पास कहीं वही बाघ तो नहीं है जिसने अभी कुछ दिन पहले दो मवेशियों को मार डाला था. तभी मुझे वह कुछ दूरी पर कुछ चलता हुआ सा नज़र आया. दूरबीन उठा कर देखा तो दंग रह गया, ये तो वही बाघ था जो धीरे-धीरे बैल की तरफ़ बढ़ रहा था. बैल को इसकी भनक ही नहीं थी कि मौत धीरे-धीरे उसकी और बढ़ रही है. नंगी आँखों से बाघ नज़र ही नहीं आ रहा था क्योंकि जहाँ में बैठा था वहाँ से वह कम से कम 400 मीटर की दूरी पर था और बैल भी. मेरी धड़कनें बढ़ने लगीं और लगने लगा कि कुछ होने वाला है. मैंने जल्दी से कैमरा उठा लिया और ज़ूम करके दोनों को फ़ोकस किया.

बैल अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बाघ छिपते हुए आहिस्ता-आहिस्ता उसकी ओर बढ़ रहा था. बाघ जल्दी से आकर एक झाड़ी के पीछे बैठ गया. जब मैंने बाघ को देखा था बैल और बाघ की बीच की दूरी भी तक़रीबन 100 मीटर रही होगी और अब दूरी घट के तक़रीबन 50 मीटर रह गई थी. अब क्या होगा ये सोच के मेरी बैचैनी बढ़ते जा रही थी. घटना घटने से पहले जो खामोशी होती है वही खामोशी मुझे साफ़ नज़र आ रही थी. इस सन्नाटे में मुझे अपनी तेज धड़कनों की आवाज़ ही सुनायी दे रही थी.

झाड़ियों के पीछे छिपे बाघ का मुझे केवल सर नज़र आ रहा था, वह छिप कर बैल के पास आने का इंतज़ार कर रहा था.

तभी बैल को कुछ आभास हुआ, शायद उसकी छठी इंद्री ने उसे खतरे का संकेत दिया. वह ठिठक कर रुक गया और उधर ही देखने लगा जहाँ बाघ छिपा बैठा था. हवा का रुख़ बैल की ओर था जिसकी वजह से शायद उसे बाघ की गंध मिल गई थी. दूसरी ओर शायद बाघ को भी पता चल गया था की इसे मेरी मौजूदगी का अहसास हो गया है.

क्लाईमेक्स अपने चरम पर था और मैं पागलों की तरह कभी बाघ को और कभी बैल को देख रहा था और खुद को सामान्य रखने की कोशिश भी कर रहा था. क्योंकि यह कुछ वैसे ही था जैसा हम डिस्कवरी या नेशनल जियोग्राफिक चैनल में देखते हैं. इसे भी पढ़ें : मित्र वही जो विपत्ति में काम आये

कुछ पल के लिए मानो समय ठहर सा गया. दोनों बिना हिले-डुले एक दूसरे की मौजूदगी भांप ही रहे थे कि तभी अचानक बैल को बाघ नज़र आया. उसने आव देखा न ताव, सीधे दौड़ लगा दी. मेरे क्लिक करने तक बाघ भी एक छलांग मार कर नदी किनारे पहुँच चुका था. नदी में बैठे जल पक्षी और पेड़ पर बैठे कौव्वे उड़कर चिल्लाने लगे. बाघ बैल को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ लगा रहा था. बैल भी पूरी जान लगा कर दौड़ रहा था, पीछे मौत जो पढ़ी थी. धीरे-धीरे मौत और ज़िंदगी के बीच फ़ासला कम होता जा रहा था. पहले तो मुझे लगा कि बैल पकड़ में नहीं आयेगा पर बाघ की रफ़्तार देखकर मेरा आकलन ग़लत साबित होने लगा. बाघ उस के क़रीब पहुँच ही चुका था. वह झपट्टा मारने ही वाला था कि दोनों मेरी आँखों के सामने से एक पहाड़ी के पीछे ओझल हो गये.

मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर बैल भाग गया होगा या बाघ ने उसे मार डाला होगा. क्योंकि अब मुझे कुछ दिखायी नहीं दे रहा था केवल खामोशी सी पसरी हुई थी. मैं जल्दी से ये जानने के लिए उस पहाड़ी की ओर भागा कि आगे क्या हुआ होगा.

उस जगह पर पहुँचने में मुझे तक़रीबन 10 मिनट लगे. भागने की वजह से मैं पसीना-पसीना हो गया था.  धड़कने बेतहाशा दौड़ रही थी और हलक भी सूख गया था. मेरी नज़रें नीचे उन दोनों को तलाश कर रही थी कि तभी मुझे बाघ नज़र आया. वह बैल की गर्दन दबोच कर बैठा हुआ था. बैल ने ज़ोर तो पूरा लगाया था पर मौत को मात न दे पाया और आखिरकार बाघ का शिकार बन गया. बाघ भी थक कर हांफने लगा था और खुद को सामान्य कर रहा था. फिर वह उठा और बैल को खींच कर झाड़ी की तरफ ले जाने लगा. युवा बैल काफ़ी भारी था, तो उसे खींचने में बाघ को काफ़ी मशक़्क़त करनी पढ़ रही थी. आखिरकार वह उसे लेकर मेरी नज़रों से दोबारा ओझल हो गया.

यही जंगल की दुनिया है जहाँ एक की मौत दूसरे की जिंदगी बनती है. इसे भी पढ़ें : एक दर्द भरी दास्ताँ

हालाँकि मवेशी बाघ की भोजन श्रृंखला में नहीं आते हैं पर जंगल में घुसते ही वे भी अन्य जीवों की ही तरह वन्य जीवन का हिस्सा बनकर एक आसान शिकार बन जाते हैं. बाघ अक्सर भोजन के आभाव में या अपने की ज़िंदा रखने के लिए या अपने शावकों का पेट भरने के लिए इन मवेशी का भी शिकार कर लेते हैं जो मानव- वन्य जीव संघर्ष का कारण भी बनते हैं. हालाँकि ऐसा होने पर जंगलात और कॉर्बेट फ़ाउंडेशन द्वारा उचित मुवाअजा मवेशी मालिक को दिया जाता है ताकि मानव- वन्य जीव संघर्ष को कम किया जा सके. इसे भी पढ़ें कॉर्बेट पार्क में जब बाघिन मां दुर्गा की भक्ति में डूबी दिखी

जनसंख्या विस्फोट के कारण आज जंगल काट के बस्तियाँ बनायी जा रही हैं और इनके आवास कम होते जा रहे है और जानवरों और मानव के बीच का फ़ासला कम होता जा रहा है जिसके फलस्वरूप मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनायें दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं. एक दुखद पहलू ये भी है कि गायों और बैलों को लोग अपना स्वार्थ पूरा होने के बाद जंगलों में छोड़ देते हैं और वे बाघों द्वारा मार दिए जाते हैं. कम ही लोग हैं जो अपने गाय-बैलों को चराने उनके साथ जंगल को जाते हैं. दूध देते समय इनको घर ले आते हैं और बाक़ी समय आवारा छोड़ देते हैं. (Corbett Park Deep Rajwar)

रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.

काफल ट्री फेसबुक : KafalTreeOnline

इसे भी पढ़ें : खुद में ही पूरा बैंड हैं उत्तराखण्ड के दीप रजवार

कहानी जंगल की : एक शानदार दिन

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago