यात्रा पर्यटन

सुबह की मीठी शुरुआत अल्मोड़ा के मालपुए के साथ

अगर आप अल्मोड़ा शहर में हल्द्वानी की ओर से सुबह-सुबह प्रवेश कर रहें हैं या फिर उस दिशा को जा रहें हैं, या डोलीडाना घूमने के बाद कुछ मीठा खाने का मन कर जाये तो हम सब के अज़ीज़ चंदन खोलिया की करबला स्थित दुकान पर आपका स्वागत है. करबला, जो एक तरह से अल्मोड़ा का प्रवेश द्वार है, में चंदा सुबह-सुबह गर्मा-गर्म मालपुए बनाते नज़र आ जायेंगे. (Malpua of Almora)

आप अपने आप को शायद ही रोक पाएं चंदा के हाथों से बने और चासनी में डुबोए हुए गरमा गर्म मालपुओं को खाने से या फिर अपने घर ले जाने से. चंदा साल भर लगभग हर दिन सुबह सुबह गरमा गर्म मालपुए और जलेबी बनाते हैं और ये करना शायद उनकी दिनचर्या का सबसे प्रिय शगल है वे मंद-मंद मुकुराहट के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं. उनके बोलने से आपको अपनत्व का अहसास होता है, जैसे आप के घर का ही कोई व्यक्ति आपको जलेबी और मालपुआ खाने को बोल रहा हो.

जलेबी बनाते बनाते खुद चंदा भी सौ, दो-सौ ग्राम जलेबी तो सूत ही जाते हैं तभी शायद वे इतना मीठा बोलते हैं. चंदन खोलिया जिन्हें सारा अल्मोड़ा चंदा के नाम से जानता है. चंदा से मतलब है चंदन दा से पहाड़ में ‘दा’ शब्द बड़े भाई या किसी के नाम के आगे जोड़ा जाता है उन्हें सम्मान देने के लिए पर शॉर्टकट में हमारे चंदन दा इस कारण बन गए सबके ‘चंदा.’

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चंदा इस काम को पिछले तकरीबन 25 से 30 वर्ष से कर रहे हैं और वह बताते हैं कि आजकल उनके परिवार की तीसरे पुश्त है इस काम में लगी है. चंदा के मशहूर मालपुओं की ख्याति पूरे कुमाऊँ में फैली हुई है लगभग हर जगह के लोग शौक से इनकी दुकान से इन स्वादिष्ठ मालपुओं को बागेश्वर, नैनीताल, हल्द्वानी स्थिति अपने घरों को पैक करवाकर ले जाते हैं और बड़े चाव से खाते हैं.

एक जमाने में पहाड़ों में ज्यादातर जगह मिल जाने वाला मलपुआ भी अब एक तरह से पहाड़ों से विलुप्त होती भोजन प्रजाति में ही आता है. ऐसे में अल्मोड़ा के चन्दन खोलिया उर्फ चंदा ने इस भोजन परम्परा को जिंदा रखने का काम तो किया ही है साथ ही वो इसके माध्यम से स्वरोजगार की सीख भी दे रहे हैं जो युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर सकता है.

जब पहाड़ में हर गली चाऊमीन-मोमो सेंटर खुल सकते हैं तो मालपुआ सेंटर क्यों नहीं खोले जा सकते हैं.

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जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.

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Sudhir Kumar

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