कला साहित्य

मदारी: हिन्दुस्तानी सड़कों पर खेली जाने वाली एक कहानी

डुगडुगी की गड़गड़ाहट हवा में बुलंद हुई तो बाजार की सड़क पर गुज़रते राहगीरों का ध्यान अनायस ही उस ओर खिंचता चला गया जहाँ से गड़गड़ाहट की आवाज आ रही थी. डुगडुगी की गड़गड़ाहट का स्रोत एक उम्र दराज़ मदारी था जो एक आठ साला बच्चे तथा दो और मरियल से दिखने वाले युवकों के साथ सड़क किनारे की पटरी पर खड़ा होकर दिखाए जाने वाले तमाशे की भूमिका बाँध रहा था. मदारी फिलहाल उस आठ साला बच्चे से, जिसे वह जमूरा कहकर संबोधित कर रहा था, डुगडुगी से लय ताल मिलाते हुए सवाल जवाब कर रहा था. जहाँ डुगडुगी की गड़गड़ाहट मदारी और जमूरे की आवाज के उतार चढ़ाव के साथ क़दमताल कर रही थी वहीं मदारी के बाकी दो साथी सामने पटरी पर, जहाँ सड़क की हद ख़त्म हो रही थी, चादर के उपर काँच के रंग बिरंगे मर्तबानों को क़रीने से सजाने में मशगूल थे.
(Madari Story Subhash Taraan)

मदारी ने जमूरे से संवाद जारी रखते हुए अपनी झोली से महाकाली के रौद्र रूप वाली एक तस्वीर निकाली और उसे बगल में विद्यमान एक दरख़्त के तने पर चस्पा कर दिया. सवाल जवाब की इस फेरहिस्त के दौरान मदारी का हाथ जब अगली बार उस बगल में लटकी झोली से बाहर निकला तो उसके हाथ में मानव मस्तिष्क का एक कंकाल मय दो बिलाथ भर लंबी हड्डियों के साथ था. उसने सावधानी के साथ उन हड्डियों को काली के रौद्र रूप वाली तस्वीर, जो दरख़्त के तने पर चस्पा थी, उसके ठीक नीचे क़रीने से सज़ा कर दिया.

बाजार में यहाँ वहाँ घूमते लोग मदारी, जमूरे के संवाद और डुगडुगी की जुगलबन्दी के चलते जैसे ही उनके इर्द-गिर्द बेतरतीब घेरा बनाने लगे, मदारी ने अपनी झोली में एक बार फिर हाथ डाला और इस बार हड्डी और लकड़ी की जुगलबन्दी से बनी छड़ी निकाल कर, इर्द-गिर्द भीड़ की शक्ल में तब्दील होते लोगों को पीछे धकियाते हुए, उससे अपने बाकी तीनों सहयोगियों के चारों और एक लकीर खैंच कर एक गोल घेरा बना लिया. सवाल जवाब के दौरान इधर-उधर टहलते जमूरे का पैर अचानक उस ताजा खींची लकीर को छू गया. जमूरे का पैर लकीर पर पड़ते ही महाकाली की तस्वीर के नीचे क़रीने से सज़ा कर रखी गयी इंसानी खोपड़ी और हड्डियों के पास एक मंद विस्फोट हुआ. अचानक में हुए इस मामूली धमाके का ज़ाहिर अंजाम तो मामूली सी चिनगारियाँ और एक पस्त धुएँ का ग़ुब्बार था लेकिन ये विस्फोट जेहनी तौर पर इक्कट्ठा हो रही भीड़ को भयभीत कर गया. मदारी ने उस डर को अपने लहजे में लपेट कर तेज़ आवाज से जमूरे को जान के जोखिम की चेतावनी देते हुए उसे खेल ख़त्म होने तक इस लकीर को न लाँघने की चेतावनी के साथ आइंदा से सावधान रहने का फ़रमान सुना दिया.

भीड़ ने, जो थोड़ी देर पहले कोतहूलवश मदारी और उसके साथियों पर टूट पड़ने को आतुर प्रतीत हो रही थी, धमाके, धुएँ और चिनगारियों के बाद उस लकीर से एक सम्मान जनक दूरी बना कर शान्ति के साथ खड़ी हो गयी. तमाशाई भीड़ भले ही ख़ड़े होने भर की जगह के लिए एक दूसरे के साथ धक्का मुक्की कर रही थी लेकिन मदारी के कब्जे में इतनी जगह आ चुकी थी कि वे चारों लोग अपने सामान सहित सहूलियत के साथ बेहिचक इधर उधर-टहल सकते थे. मरियल से दिखने वाले दोनों युवक अब अपने काम से फ़ारिग़ मालूम पड़ रहे थे. उनके द्वारा पोटली से निकली अन्तिम वस्तुएं एक गंडासा और एक इमामदस्ता थी. वे दोनों चुपचाप से उस गोल घेरे के अन्दर एक कोने में जाकर बैठ गए.

जहाँ अभी थोड़ी देर पहले मदारी और जमूरा अपने सवालों जवाबों में दुनियादारी के तमाम फ़लसफ़ों का ज़िक्र कर रहे थे वहीं अब मदारी जमूरे से सवाल जवाब छोड़ सामने खड़ी भीड़ के मुखातिब हो गया. मदारी की जो बात दुनियादारी के विषयों से शुरू हुई थी वो अब काँच के मर्तबानों में रखी जड़ी बूटियों की ख़ूबियों और ख़ासियतों पर आ गयी. मदारी के मुताबिक हिमालय के दुरूह पहाड़ों पर से हासिल की गयी इन जड़ी बूटियों में बड़े से बड़े असाध्य रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत थी. इन जड़ी बुटियों में ताकत केवल रोगों को ख़त्म करने की ही नही, बल्की खोई हुई ताकत हासिल करने की भी ताकत थी.

एक सधे हुए हकीम की तरह मदारी ने जरा सी देर में इमाम दस्ते में जड़ी बूटियों को कूट कर कई प्रकार के मिश्रण तैयार कर दिए और उनकी बहुत सी पुडिया बना डाली. मदारी द्वारा जड़ी बूटियों की ख़ूबियों और ख़ासियतों की प्रभावशाली प्रस्तुति और उसकी कम कीमत के चलते भीड़ ने जड़ी बूटी के इस मिश्रण को हाथो हाथ लिया. यह मदारी का ही कमाल था कि उनके चारों ओर खड़ी भीड़ पूरी कीमत चुका कर दवा की इन पुड़िया को हासिल करने के लिए अपनी जगह अनुशासित और कतारबद्ध होकर धैर्य के साथ अपनी बारी का इंतज़ार कर रही थी. दवा की पुड़िया की एवज में एक माकूल कीमत वसूलते हुए मदारी भीड़ को लगे हाथ मुफ़्त में दुआएं दे भी रहा था.
(Madari Story Subhash Taraan)

जड़ी बूटियों से फ़ारिग़ होते ही मदारी ने ताली बजायी तो लकीर के अन्दर कोने में बैठे दोनों मरियल से लड़कों ने काँच के मर्तबान समेटकर पोटली में रखने शुरू कर दिए.

मदारी अपने वक्तव्यों के माध्यम से एक बार फिर भीड़ को दवा के मसले को पीछे छोड़ दुनियादारी के फ़लसफ़े बताने लगा. वह बात कर ही रहा था कि तभी पेड़ के तने पर चस्पा महाकाली की तस्वीर के नीचे रखी खोपड़ी और हड्डियों के बीच एक ओर मामूली सा विस्फोट हुआ. यह विस्फोट पिछली बार के मुक़ाबले थोड़ा तेज़ था. अचानक हुए विस्फोट से हँसते बतियाते मदारी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी. वो तेज़ी से उस ओर पलटा और जमीन पर पड़े गंडासे को उठाकर अपनी हथेली में पेवस्त कर दिया. मुट्ठी के अन्दर दबे गंडासे की मूठ से खून की धार बहने लगी. मदारी चेहरे पर दर्दनाक भाव भंगिमाएँ ओढ़ते हुए महाकाली की तस्वीर की ओर बढ़ा और हथेली से निकलते लहू को उन हड़्ड़ियों पर टपका दिया.

लेकिन यह क्या! धुआँ उगलती हड्डियों पर खून की बूँदे टपकते ही उससे आग की लपटें उठने लगी. मदारी ने बिलबिलाते हुए जमूरे का आह्वान किया. मदारी की बौखलाहट और खून टपकने पर लपटें उगलती हड्डियों को देखकर तमाशाई भीड़ के बीच सन्नाटा पसर गया. लपटों के तेज होने पर मदारी ने रूँधी आवाज में भीड़ को सुनाते हुए जमूरे से कहने लगा कि तमाशाई भीड़ के बीच किसी व्यक्ति ने महाकाली के दरबार में विघ्न डाल दिया है लिहाज़ा इस पृथ्वी पर कभी भी प्रलय आ सकती है.

एक मंजे हुए कलाकार की तरह संवादों की अदायगी करते हुए जमूरे ने जब इस प्रलय रोकने का उपाय जानना चाहा तो मदारी ने कहा कि अभी के अभी महाकाली के सामने एक इंसानी बलि चढ़ानी होगी. मदारी गिड़गिड़ाते हुए दयनीय भाव के साथ एक बार फ़िर जमूरे से मुखातिब हुआ और कहने लगा कि क्या वह इस ब्रह्माण्ड़ को बचाने के लिए खुद की क़ुर्बानी दे सकता है. अपने नाक ख़ुजाते हुए किसी प्रशिक्षित पालतू की तरह जमूरे ने बिना देर किए हाँ कह दी.

मदारी ने बिना देर किए गंडासा उठाया और उसे जमूरे की गरदन पर रख कर खैंच दिया. जमूरा जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा और उसके गरदन के आस पास ख़ून उबलने लगा.

हड़्ड़ियों से उठती लपटें अचानक शान्त होने लगी. भीड़ सतब्ध थी. छटपटाते लड़के की गरदन पर धंसे गंडासे को देखकर भीड़ के बीच में बहुत से लोगों के मुँह से घुटी हुई चीख़ें फ़ूट पड़ी. छटपटाते जमूरे को अपनी आड़ में लेकर अचानक मदारी जोर से चिल्लाया.

‘सब लोग अपनी-अपनी मुट्ठियाँ ख़ोल दें, बच्चा आपके लिए तकलीफ़ उठा रहा है’.

भीड़ ने तत्काल से मदारी के हुक्म की तामील की.

मदारी एक बार फ़िर अपनी आवाज में आस पास के भय को मिलाते हुए दहाड़ा-

क्या आप लोगों की हथेलियों में पसीना आ रहा है?

भयभीत भीड़ ने मदारी द्वारा उछाले गए सवाल के जवाब में सामुहिक रुप से हाँ में सर हिला दिया.

मदारी ने भीड़ से मिले मन माफ़िक जवाब की एवज में अपने चेहरे पर उम्मीद की परत ओढते हुए भीड़ के बीच एक ओर जुमला छोड़ा,

हमे इस नीरीह बालक की जान बचाने की कोशिश करनी चाहिए कि नहीं करनी चाहिए.

भीड़ ने कुछ इस तरह से दर्दमन्द आवाज में हामी भरी मानों गंड़ासा उनकी गर्दन में घँसा हुआ हो.

मदारी फ़िर से दहाड़ा- कोशिश करनी चाहिए कि नहीं करनी चाहिए.

अब भीड़ के हाव-भाव देख कर मदारी का लहजा आदेशात्मक हो गया. इस बार किसी जवाब की अपेक्षा किए बिना मदारी ने भीड़ के समक्ष एक चेतावनी के साथ इस जानलेवा समस्या का समाधान परोस दिया. ‘बच्चे की जान बचाई जा सकती है, बशर्ते आप लोगों की जेब में जो कुछ हो उसे सामने पड़ी चादर पर डाल दिया जाए, वर्ना इस मासूम बच्चे की हत्या आप लोगों के सर होगी.’
(Madari Story Subhash Taraan)

दोनों मरियल से युवक, जो अब तक एक कोने में ख़ड़े थे, बिना किसी आदेश के चादर फ़ैला कर सहमी हुई भीड़ के सम्मुख़ हो लिए.

मदारी एक बार फ़िर गरजा – बच्चे की जान का सवाल है, हम रहमदिल मुल्क के बाशिन्दे है. मुझे उम्मीद है आप बच्चे की जान बचाने के लिए ईमानदारी दिखाएंगे.

पूरी तरह से मदारी के काबू में डरी सहमी भीड़ दत्त चित होकर दवा ख़रीदने के बाद ख़ीसे में पड़ा बचा हुआ पैसा चादर पर डालने लगी.

भय और व्याकुलता का यह दौर ख़त्म होने ही वाला था कि अचानक भीड़ के बीच एक आदमी मुँह से ख़ून उलटता हुआ मदारी की ओर लड़ख़ड़ाते हुए बढने लगा. मदारी ने हाथ के इशारे से उसे वहीं रुकने का हुक्म दिया. लड़ख़ड़ाते हुए गिरने को हो रहे उस आदमी ने अपनी जेब में हाथ डाला और एक दस का नोट मदारी की तरफ़ उछाल दिया और वहाँ का वहीं धराशायी हो गया.

मदारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फ़ैल गयी. मदारी बैचेन और विकल भीड़ को चेतावनी स्वरुप जमीन पर पड़े आदमी की ओर इशारा करते हुए भीड़ को संबोधित करने लगा- देख लिए आपने बेईमानी के नतीजे. यह पहली चेतावनी है. जिसकी जेब में जो कुछ है वो चुपचाप उसे चादर पर डाल दें. दस मिनट का समय दे रहा हूँ. अगर किसी ने कोताही बरती तो उसका हश्र बिलकुल ऐसा ही होगा जैसा इस सामने पड़े आदमी का हुआ है.
(Madari Story Subhash Taraan)

मरियल से दिखने वाले उन युवकों ने एक बार फ़िर भीड़ के सामने चादर फ़ैला दी. मन्त्रमुग्ध भीड़ के बीच से फ़ैली चादर पर सिक्कों और नोटों की बरसात होने लगी.

चादरमय उस पर पड़े रुपयों के एक पोटली की शक्ल में मदारी के हाथ में आ गयी. मदारी ने एक लंबे भाषण के बाद ख़ेल ख़त्म होने की घोषणा कर दी. जमूरा जो थोड़ी देर पहले जमीन पर पड़ा छटपटा रहा था, उठ कर ख़ड़ा हो गया. जमीन पर ख़ून की उल्टियाँ करते हुए गिरा आदमी उठ कर भीड़ में घुस कर गायब हो गया . सारा बिखरा सामान लपेटने के बाद मदारी, जमूरा और उसके दोनों मरियल से साथी आरक्षित जगह पर भीड़ के सामने पंक्तिवद्ध होकर ख़ड़े हो गए और भीड़ से मुखातिब होते हुए एक नारा लगाया – भारत माता की जय
(Madari Story Subhash Taraan)

इसे भी पढ़ें: इंद्रू : जिसे प्रकृति ने लोहे और पत्थरों की सख्ती से निपटने के लिए ही पैदा किया

स्वयं को “छुट्टा विचारक, घूमंतू कथाकार और सड़क छाप कवि” बताने वाले सुभाष तराण उत्तराखंड के जौनसार-भाबर इलाके से ताल्लुक रखते हैं और उनका पैतृक घर अटाल गाँव में है. फिलहाल दिल्ली में नौकरी करते हैं. हमें उम्मीद है अपने चुटीले और धारदार लेखन के लिए जाने जाने वाले सुभाष काफल ट्री पर नियमित लिखेंगे.

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  • चालीस साल पहले एसा खेल देखा था अब मदारी का खेल तो शायद ही होता हो

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