पिछड़ेपन का एक सुखद पक्ष यह है कि जनजीवन की बोलचाल में ऐसी विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग होता है जो अभी तक ठेठ रूप में बची हुई है. इस शब्दावली में सम्बन्ध वाची शब्दों के अतिरिक्त भगोल सम्बन्धी, घरेलू सामग्री सम्बन्धी, वस्त्राभूषण सम्बन्धी शब्दावली उल्लेखनीय है. पारिवारिक सम्बन्धों को व्यक्त करने वाले शब्दों में ‘ठुल बौन्यू’ (ताऊ), ‘खुड़बूबू’ (प्रपितामह), ‘कैजा’ (मौसी), ‘ब्वारी’ (बहू), ‘भीना’ (जीजा) जैसे शब्द रोचक हैं.
(Kumaoni Word Meaning)
प्राकृतिक पदार्थों के द्योतक ‘घाम’ (धूप), ‘गध्यार’ (नाला), ‘ढुंग’ (पत्थर), ‘भिनेर’ (आग), ‘जून’ (चंद्रमा), ‘भ्योल’ (चट्टान), ‘छीड़ा’ (झरना) जैसे शब्द हैं . घरेलु सामग्री के लिये ‘कुड़ी’ (मकान), ‘सुटकूण’ (लकड़ी की सीढ़ी), ‘लूण’ (नमक), ‘दातुल’ (दरांती), कासिणी’ (घड़ा), ‘थकुलि’ (‘थाली’ ‘तौली’ पतीली), ‘काकुनी’ (मक्का), जैसे शब्द उल्लेखनीय हैं.
ग्रामीण शब्दावली में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृषक जीवन सम्बन्धी शब्दावली मालूम पड़ती है जिसका न केवल दिन प्रतिदिन प्रयोग होता है बल्कि जिसके द्वारा कुमाऊँ की कृषि व्यवस्था का ऐतिहासिक परिचय प्राप्त होता है.
‘सिमार’ उस भूमि को कहते हैं जिसमें अस्थायी रूप से सिंचाई होती है. ‘बांज’ बंजर जमीन को कहते हैं जिस ओर अधिक धूप रहे वह ‘तैलफाट’ और जहाँ छाया अधिक रहे वह ‘सैलफाट’ कहलाता है. ‘गोठ’ गोशाला को कहते हैं, ऊँचे पहाड़ ‘डाना’ अथवा ‘धुरा’ कहलाते हैं और पहाड़ की पीठ ‘धार’ कहलाती है.
(Kumaoni Word Meaning)
नदी के किनारे मैदानों को ‘बगड़’ कहते हैं. जमीन के मालिक को ‘थातवान’ कहते हैं. कई गांवों का स्वामी ‘थोकदार’ कहलाता है जिसे कहीं सयाना अथवा ‘बूढ़ा’ कहते हैं. मंदिरों को चढ़ाई गई जमीन ‘गूठ’ कहलाती है. करीब दो सेर की नाप का काठ का बरतन ‘नाली’ और उससे छोटी नाप ‘माणा’ कही जाती है.
इसी प्रकार के कुछ अन्य शब्द हैं-‘तप्पड़’ (चौरस भूमि), ‘भिड़’ (खेत की दीवार), ‘खोड़’ (कांजी हौस), ‘गूल’ (छोटी नहर), “टिपुड़ी’ (छोटी चोटी), ‘रौ’ (नदी का गहरा भाग), ‘राठ’ (घराना), ‘मौ’ (कुटुंब) आदि. इस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग चूंकि दैनिक जीवन में होता है इसलिये लोक-साहित्य के विविध रूपों में यह प्रायः मिलती है.
(Kumaoni Word Meaning)
स्व. डॉ. त्रिलोचन पाण्डेय का लेख.
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