Featured

के.एन.सिंह – पहला सिंह इज़ किंग

आज की पीढ़ी को यकीन नहीं होगा कि खलनायक था. सूट-बूट के ऊपर ओवरकोट, सिर पर हैट और मुंह में दबी सिगरेट से निकलता धुआं. रहस्यमयी कातिलाना मुस्कान. सीन में उसकी एंट्री के अंदाज़ से ही दर्शक समझ जाते थे कि आगे कुछ अच्छा नहीं होने जा रहा. मगर उम्मीदों के विपरीत क्रूर एक्ट के वक्त भी वो बेआवाज़-ए-बुलंद वाहियात संवाद नहीं बोलता.

उसके संवाद उनके होटों से लगी सिगरेट से निकलते धूंए, उसकी फैली हुई आखों पर उठती-गिरती भंवों और माथे पर चढ़ी त्योरियों से पढ़े जाते. उस ज़माने में क्रूर अभिव्यक्ति का यह एक निराला अंदाज़ था. इस स्टाईल के दम पर इस अदाकार ने लगभग 250 फिल्मों में वज़नदार मौजूदगी दर्ज करायी. नाम था कृष्ण निरंजन सिंह उर्फ़ के.एन. सिंह. केएन सिंह.अपनी बीमार बहन को देखने कलकत्ता आये थे. मशहूर थियेटर और सिनेमा आर्टिस्ट पृथ्वीराज कपूर उनके बहनोई के मित्र थे. पृथ्वीराज ने सलाह दी – बरख़ुरदार चेहरे मोहरे से ठीक-ठाक हो. बेरोज़गार हो. सिनेमा बुरा नहीं है.

थोड़ी सकुचाहट के बाद वो मान गये. देबकी बोस ने उनको ‘सुनहरा संसार’(1936) में पब्लिक प्रासीक्यूटर की भूमिका दी. वकील बनना कभी के.एन.सिंह का ख्वाब था. मगर साथ ही एक चुनौती भी मिली चार सफ़े के संवाद याद करने थे, सिर्फ दो दिन के वक़्त में. वो घबड़ाये कि कैसे होगा इतने थोड़े अरसे में. मगर पृथ्वीराज कपूर ने हौंसला बढ़ाया. खूब रिहर्सल करायी. ऐन शूट से पहले पृथ्वीराज ने कहा – तुम अच्छे नहीं बल्कि बहुत ही अच्छे हो.

इस बीच पृथ्वीराज उनके अच्छे मित्र बन चुके थे. दिली ख्वाईश हुई कि पृथ्वीराज जैसे आदमकद आर्टिस्ट के सामने अपनी अदाकारी की गहराई नापें. जल्दी इच्छा पूर्ण हुई. मगर यह जानकर बड़ी मायूसी हुई कि उन्हें पृथ्वीराज के बाप का रोल करना है. पृथ्वी से वो पांच साल छोटे थे. भला बाप कैसे बनूं? लेकिन पृथ्वीराज ने कहा – कृष्ण मैं चाहता हूं कि तुम अदाकारी के बाप बनो. मुझे मालूम है, तुममें यह टेलेंट बखूबी है.
के.एन.सिंह हीरो के लिये कभी नहीं विचारे गए. इसका उन्हें कोई अफ़सोस नहीं हुआ. उन्हें बखूबी इल्म था कि वो हीरो के लिये बने ही नहीं है. एक एक्टर का काम सिर्फ एक्टिंग करना है. हीरो हो या विलेन. ईमानदारी से किये काम का रिस्पांस पब्लिक देती है.

जब के.एन.सिंह कलकत्ता से बंबई आये तो याकूब सबसे कामयाब विलेन हुआ करते थे. वो इस मैदान के बेताज बादशाह थे. मगर के.एन.सिंह के आगमन से वो परेशान हुये. एक इंटरव्यू में याकूब ने कबूल किया कि अरे ये तो मेरा भी बाप है. पेश्तर इसके कि ज़माना नकारे, याकूब ने करेक्टर रोल्स लेने शुरू कर दिये. एक अच्छे कलाकार ने एक अच्छे कलाकार का सम्मान किया. वो पहले ‘सिंह इज किंग’ थे.

के.एन. सिंह पर बांबे टाकीज़ की बड़े कद की मालकिन देविका रानी मेहरबान हुई. पगार 1600 रुपया महीना और घर से स्टूडियो लाने और फिर छोड़ने की टैक्सी की सुविधा अलग. ऐसा करारनामा उस ज़माने में सिर्फ ऊंचे कद की हैसीयत वाले आर्टिस्ट को ही नसीब था.
के.एन.सिंह ओवर एक्टिंग नहीं करते थे. उनके किरदार ने चीखने-चिल्लाने से सख़्त परहेज़ रखा. खुद को इस हद तक परिमार्जित किया कि बिना बोले पर्दे पर मौजदगी का अहसास होता रहे. कई बार नायक असहज हो जाते. उनकी उनके किरदार अधिकतर सलीकेदार पोषाक में नज़र आये. आम जीवन में भी वो बेहतरीन कपड़ों के शौकीन रहे.

के.एन. सिंह एक बेहतरीन इंसान भी थे. दूसरों की मदद को हमेशा तत्पर रहे. इस सिंद्धांत के कायल थे कि फिल्म इंडस्ट्री से जितना लिया और सीखा उसे साथ-साथ वापस भी करते चलो. उन दिनों दिलीप कुमार देविका रानी की ‘ज्वार भाटा’कर रहे थे. यह उनकी पहली फिल्म थी. सामने के.एन.सिंह जैसा नामी विलेन को देख कर वह असहज हो गये. तब के.एन.सिंह ने दिलीप का हौंसला बढ़ाया. सभी ईश्वर के मामूली बंदे हैं, अजूबा नहीं. इस तरह दिलीप नार्मल हुए. वो ताउम्र दिलीप के अच्छे दोस्त रहे. ज्वार भाटा के बाद उन्होंने दिलीप कुमार के साथ शिकस्त, हलचल और सगीना कीं.

के.एन.सिंह को चीखने-चिल्लाने वाले करेक्टर कतई पसंद नहीं थे. उनका एक लाइन का पसंदीदा जुमला था- ‘अपनी बकवास बंद करो. गधे कहीं के. उनके यह कहते ही माहौल में डरावनी सी खामोशी छा जाती थी. बाकी काम भवों को चढ़ाना, आंखें इधर-उधर घुमाना, माथे पर त्यौरियां चढ़ाने से हो ही जाता था.

वो कहते थे कि अगर ‘शोले’ में अमजद खान की जगह वो होते तो ‘शाऊटी’ गब्बर सिंह के किरदार को ‘अंडरप्ले’ करके ज्यादा खूंखार बनाते. जोकरी करते विलेन उन्हें कभी पसंद नहीं आये. ज्यादा हिंसा, सैक्स व शोर से फिल्म असल मकसद से भटकती है. उनको गर्व था कि उनके ज़माने में विलेन की हनक बहुत ज्यादा. हीरो की हिम्मत नहीं थी कि विलेन को ‘हरामज़ादा’ कह दे. क्योंकि उसे मालूम था कि विलेन के चोले के में खड़ा शख्स एक्टिंग का बाप है, फिल्म इंडस्ट्री में उसकी धाक है.

1936 से 1982 तक के.एन. सिंह ने लगभग 250 फिल्में कीं. इनमें जिनमें चर्चित रहीं – हुमायूं, बरसात, सज़ा, आवारा, जाल, आंधियां, शिकस्त, बाज़, हाऊस नं.44, मेरीन ड्राईव, फंटूश, सीआईडी, हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़़ी, काली टोपी लाल रूमाल, रोड नं.303, सिंगापुर, बरसात की रात, करोड़पति, मंज़िल, मिस चालबाज़, ओपेरा हाऊस, सूरत और सीरत, वल्लाह क्या बात है, हांगकांग, नकली नवाब, शिकारी, वो कौन थी, दुल्हा-दुल्हन, रुस्तम-ए-हिंद, फ़रार, राका, तीसरी मंज़िल, मेरा साया, आम्रपाली, एन ईवनिंग इन पेरिस, स्पाई इन रोम, जिगरी दोस्त, मेरे हुजूर, सुहाना सफ़र, मेरे जीवन साथी, दुश्मन, लोफ़र, कच्चे धागे, कीमत, हंसते ज़ख्म, सगीना, मजबूर, कै़द, अदालत, दोस्ताना और कालिया.

के.एन. सिंह का कैरीयर सत्तर के दशक में ढलान ‘मोड’ में आ गया. अस्सी के दशक में बहुत कम फिल्में हाथ आयीं. मगर निराश कभी नहीं हुए. हरेक की जिंदगी में अच्छे के बाद खराब दिन आते हैं. वो समझदार थे. जो कमाया उसे लुटाया नहीं. सही जगह निवेशित किया. मोतिया बिंदू का आपरेशन दुर्भाग्यवश सफल नहीं हुआ. दुनिया हमेशा के लिए अंधेरी हो गयी. लेकिन याददाश्त लोहा-लाट रही.

के.एन. सिंह की पत्नी प्रवीण पाल भी सफल चरित्र अभिनेत्री थीं. उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी. उनके छोटे भाई विक्रम सिंह मशहूर अंग्रेज़ी पत्रिका फिल्मफेयर के कई साल तक संपादक रहे. उनके पुत्र पुष्कर को के.एन.सिंह दंपति ने अपना पुत्र माना.
के.एन. सिंह का जन्म देहरादून में 01 सितंबर, 1908 में हुआ और 31 जनवरी 2000 में देहांत हुआ था.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago