कुमाऊं

उत्तराखंड हाईकोर्ट: जागेश्वर समूह के सभी मंदिरों का जीर्णोद्धार करे पुरातत्व विभाग

पवित्र धाम जागेश्वर को लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है. जागेश्वर और उसके आसपास के गांवों के लोगों ने हाईकोर्ट को पत्र लिखकर क्षेत्र में अवैध निर्माण की शिकायत की थी. लोगों की शिकायत थी कि पूरे एरिया में लैंड कंट्रोल एक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है.

हाईकोर्ट ने इसी पत्र का संज्ञान लेकर इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया. शुक्रवार को न्यायमूर्ति शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को जागेश्वर समूह के मंदिरों को मूल स्वरूप में लाने को कहा

कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व क्षेत्र एक्ट-1958 का अनुपालन सुनिश्चित करने व जागेश्वर में मंदिर समूहों का जीर्णोद्धार करने के भी निर्देश दिए हैं. साथ ही जागेश्वर आरतोला मोटर मार्ग सहित क्षेत्र में बहुमंजिला भवनों के निर्माण पर रोक लगाते हुए विशेष क्षेत्र प्राधिकरण को निर्माण कार्यों के लिए बायलॉज बनाने के निर्देश दिए हैं.

जागेश्वर धाम के प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस क्षेत्र में लगभग २५० मंदिर हैं जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे २२४ मंदिर स्थित हैं. जागेश्वर को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है.

मंदिर के निर्माण की अवधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीन कालो में बाटा गया है “कत्युरीकाल , उत्तर कत्युरिकाल एवम् चंद्रकाल” अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है.

मंदिरों का निर्माण लकड़ी तथा सीमेंट के जगह पर पत्थरो की बड़ी-बड़ी स्लैब से किया गया है. दरवाज़े की चौखटे देवी-देवताओ की प्रतिमाओं से चिन्हित है. जागेश्वर को पुराणों में “हाटकेश्वर” और भू-राजस्व लेख में “पट्टी-पारुण” के नाम से जाना जाता है.

पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी. कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था. आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की. शंकराचार्य द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं.

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