रूप दुर्गापाल टेलीविजन के रुपहले परदे की जानी-मानी अदाकारा हैं. मूल रूप से अल्मोड़ा की रहने वाली रूप दुर्गापाल ने अपनी प्रतिभा के दम पर बहुत कम समय में अभिनय की दुनिया में अच्छा नाम बनाया है. यूं तो रूप को कलर्स चैनल के लोकप्रिय धारावाहिक बालिका वधू में उनके कालजयी किरदार सांची के लिए जाना जाता है, लेकिन अपने छोटे से करियर में रूप देश के सभी प्रमुख चैनलों के बीसियों धारावाहिकों में मुख्य भूमिका निभा चुकी हैं. इसके अलावा रूप दुर्गापाल कई प्रख्यात ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग भी करती रही हैं. रूप अभिनेत्री होने के साथ ही बेहतरीन गायिका भी हैं. रूप दुर्गापाल का सफर उत्तराखण्ड जैसे छोटे से राज्य के पहाड़ी कस्बे अल्मोड़ा से शुरू होकर रुपहले परदे में छा जाने की परीकथा जैसा है. प्रस्तुत हैं काफल ट्री के लिए रूप दुर्गापाल से सुधीर कुमार की बातचीत के प्रमुख अंश. (Interview With Roop Durgapal)
मेरा बचपन अल्मोड़ा में ही बीता और शिक्षा-दीक्षा भी वहीँ हुई. मां डॉ. सुधा दुर्गापाल कुमाऊं विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थीं और पिता जेसी दुर्गापाल जाने-माने आई सर्जन हैं.
दसवीं तक की पढाई मैंने आर्मी स्कूल, अल्मोड़ा कैंट से की और बारहवीं केन्द्रीय विद्यालय, अल्मोड़ा से. मैं अपने समय के टॉपर्स में से हुआ करती थी. बारहवीं में मैंने मैथ्स और बायोलॉजी दोनों ही विषयों से पढाई की. परिजनों की इच्छा थी कि मैं पिता की तरह एक डॉक्टर बनूँ.
बारहवीं के बाद मैंने मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों के लिए कोशिश की लेकिन इत्तेफाक से मेरा सिलेक्शन इंजीनियरिंग के लिए पहले हुआ. ग्राफिक एरा, देहरादून में मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया.
इस समय तक एक्टिंग को करियर बनाने का सवाल मेरे जेहन में कहीं भी नहीं था. हाँ, मैं एक अच्छी गायिका जरूर थी. स्कूली जीवन में मैंने अल्मोड़ा के ढेरों सिंगिंग कॉम्पटीशन में हिस्सा लिया और कई बार जीती भी. बचपन से ही गायकी मेरा जुनून रहा है यह मेरे लिए एक मेडिटेशन की तरह है. गायकी के माध्यम से मैं खुद को भगवान से जुड़ा महसूस करती हूं.
इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद मुझे मिस फ्रेशर चुना गया. ये मेरी जिंदगी का महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ. यहां से मेरी जिंदगी में निर्णायक बदलाव आना शुरू हुआ. इसके बाद मैं कॉलेज में होने वाले ज्यादातर नाटकों का हिस्सा बनने लगी. इन प्लेज में मैंने छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाईं. इनमें से ज्यादातर नाटक हिट भी रहे. मुझे अपने अभिनय के लिए खूब सराहा भी गया. कॉलेज के इस पहले साल के अनुभव के बाद ही एक्टिंग में अपना भविष्य बनाने का इरादा मेरे दिमाग में पक्का होना शुरू हो गया.
कॉलेज में मैंने जमकर अभिनय किया और गायकी भी की. मुझे भी और कॉलेज के ज्यादातर लोगों को अब लगने लगा था कि मैं एक दिन मुंबई जरूर पहुंचकर एक्टर या सिंगर बनूंगी. कॉलेज के 4 सालों तक यह सपना मेरे भीतर पलता रहा.
मेरे घर वालों ने भी मेरे इस संकल्प का विरोध नहीं किया. मेरे पिता ने सिर्फ इतना कहा कि मुम्बई में किस्मत आजमाने के लिए मैं अपना पोर्टफोलियो तभी बना सकती हूं जबकि मेरा जॉब के लिए किसी कंपनी में सेलेक्शन हो जाए.
इंजीनियरिंग के तीसरे साल में ही मेरा प्लेसमेंट इनफ़ोसिस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी के लिए हो गया. उस समय यह मेरे, परिवार और कॉलेज के लिए गर्व की बात थी. उस वक़्त इनफोसिस एक सपना हुआ करता था.
कॉलेज के तीसरे साल ही इनफ़ोसिस में सेलेक्शन हो जाने से मेरा एक्टिंग में जाने का रास्ता भी खुल गया. अब मैं अपने पिता से अपना पोर्टफोलियो बनवाने के लिए कह सकती थी.
मैसूर में ट्रेनिंग के बाद एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में मेरी पहली पोस्टिंग हैदराबाद में हुई जिसका मुम्बई से किसी तरह का कनेक्शन नहीं था. मैं चाहती थी कि मेरी पोस्टिंग मुम्बई के पास पुणे में हो, जहां से मैं अपने एक्टिंग कैरियर की शुरुआत कर सकूं.
खैर, हैदराबाद में मैंने अपने डिपार्टमेंट के लिए इनफ़ोसिस के एक सिंगिंग कॉम्पटीशन में हिस्सा लिया और जीती भी, ये हमारे डिपार्टमेंट का पहला अवार्ड था, मैं पहली विनर. डिपार्टमेंट हेड ने इस जीत के एवज में मुझसे कुछ भी मांग लेने को कहा, जो मैं चाहती हूं. मैंने उनसे कहा कि मेरा ट्रांसफर पुणे करवा दिया जाए और उन्होंने वादे के मुताबिक यह कर भी दिया.
इस तरह अपनी गायकी के बूते में पुणे आ पहुंची. यहां कुछ समय तक अपनी जॉब करने के बाद मैंने इस्तीफा देकर मुम्बई जाने का फैसला किया. परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों के राय-मशविरे के बगैर लिए गए इस फैसले ने सभी को हैरान किया. इन्फोसिस जैसी रसूखदार जॉब छोड़कर मेरा मुम्बई आना हर किसी को चौंकाने वाले था.
इस तरह मैं अपने सपने के पीछे भागती हुई मुम्बई आ गयी. अपने सपने को पूरा करने के लिए जूझने को मैं स्ट्रगल नहीं कहती. क्योंकि अपने सपने को जीने के लिए कुछ भी करना एक स्ट्रगल नहीं है इसे मैं एक यात्रा कहना ज्यादा पसंद करूंगी. मेरा इस तरह मुम्बई आना भी अपने ख्वाब को पूरा करने की दिशा में एक कदम भर था.
मुम्बई में हर दिन अपनी किस्मत आजमाने आने वाले हजारों-लाखों लोगों की तरह मैंने भी लोखंडवाला में रहकर ऑडिशन देना शुरू किया, यहां मैं किसी को नहीं जानती थी.
इस समय मैं सिर्फ टीवी के लिए ही अभिनय करना चाहती थी. फिल्मी दुनिया के लिए उस वक्त मेरे दिमाग में एक नकारात्मक भाव बना हुआ था. आज मुझे महसूस होता है कि ऐसा सोचना सही नहीं था, शायद नकारात्मक प्रचार को पढ़-सुनकर मेरी यह राय बनी थी. आज मैं फिल्मों में अभिनय की दिशा में कदम बढ़ाने के बारे में गंभीरता से सोच रही हूं.
यहां मेरी माँ की वजह से मुझे थोड़ा आसानी जरूर हुई. मेरी मम्मी की ढेरों पीएचडी स्टूडेंट्स में से एक का भाई यहां मॉडल था. इस वजह से मुझे ऑडिशन देने के लिए उपयुक्त जगहों का जल्दी पता लग गया, जो कि शायद मुझे 2-3 महीने बाद पता लग पाता. जिंदगी में किस्मत और वक्त बहुत बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. इस तरह मेरी माँ ने मेरे जॉब छोड़ने से शुरूआती तौर पर खुश न होने के बाद मेरा पूरा साथ दिया, उनकी दुआएँ हमेशा मेरे साथ रहीं.
मुम्बई पहुँचने के लगभग 6 महीने बाद मैंने फॉक्सवैगन वेंटो का एड किया. इससे पहले भी मैंने कुछ विज्ञापनों के लिए मॉडलिंग की थी मगर यह एड मेरे लिए बहुत खास रहा, क्योंकि इसकी वजह से मुझे देशभर में चर्चा मिली.
फॉक्सवैगन वेंटो के इस एड से ही मुझे एक दूसरे एड के लिए नोटिस किया गया. फॉक्सवैगन वेंटो के इस एड को देखकर ही मुझे स्टार प्लस के एक टीवी शो का प्रोमो मिला.
इस प्रोमो में मेरे काम की बदौलत मुझे बालिका वधू में सिद्धार्थ शुक्ला की बहन का किरदार निभाने का मौका मिला. तब तक इस भूमिका के लिए किसी और को चुन भी लिया गया था, लेकिन प्रोमो देखने के बाद मुझे इस रोल के लिए ज्यादा फिट पाया गया. इस तरह रातों-रात मुझे सांची की चर्चित भूमिका मिली.
इस तरह मेरे एक्टिंग करियर की अच्छी शुरुआत हुई. तब से अब तक मैं कई टीवी सीरियल्स और विज्ञापनों में काम कर चुकी हूं.
कॉलेज स्टूडेंट होने के दौरान मैं ऐश्वर्या राय को अपनी रोल मॉडल मानती थी. मैं उनके जैसे दिखने और कभी उनके साथ काम करने के सपने देखा करती थी. बालिका वधू के लिए काम करने के दौरान मेरा यह सपना भी पूरा हुआ. मुझे एक कास्टिंग डायरेक्टर का कॉल आया कि कल्याण ज्वेलर्स के एक एड में मुझे ऐश्वर्या राय की बहन का रोल अदा करना है. मैंने बगैर देरी किये इसके लिए हाँ किया और अगले 2 दिन में मैं ऐश्वर्या राय के साथ शूट पर थी. इस सपने का पूरा होना मेरे लिए ऑस्कर जीत लेने जैसा ही था. अब मेरी यह राय और पुख्ता हुई कि सपने जरूर पूरे होते हैं अगर उन्हें मजबूत इरादों और जुनून के साथ देखा और पूरा करने में लग जाया जाए.
काम आखिर काम होता है, उसे पूरी शिद्दत के साथ किया जाना चाहिए. अभी तक मैंने सभी किरदारों को ऐसे ही निभाया भी है. लेकिन ऐसा कोई किरदार अभी मैंने अदा नहीं किया जिससे कि मैं खुद को जोड़ पाऊं, कि हाँ! ये रूप है, ये मैं हूं.
अगर जब वी मेट की करीना कपूर जैसा कोई किरदार मुझे निभाने का मौका मिला तो मुझे जरूर लगेगा कि ये मेरे ज्यादा करीब है, उससे शायद में खुद को जोड़ पाऊँगी.
लेकिन बिला शक बालिका वधू में सांची का रोल मेरा अब तक का सबसे खास रोल रहा है. सांची की भूमिका में मैंने पूरे 3 साल तक अभिनय किया, ये मेरे खुद के लिए एक मील का पत्थर है. इन 3 सालों में मैंने सभी शेड्स प्ले किये हैं, एक बच्ची से लेकर शादीशुदा लड़की तक.
पॉजिटिव, नेगेटिव, ग्रे, सीधी-साधी, बदतमीज, डरी-सहमी रहने वाली— शायद ही कोई शेड ऐसा रहा हो जो मैंने सांची के रोल में प्ले न किया हो.
सभी रोल मेरे लिए ख़ास रहे हैं, लेकिन क्राइम इन्वेस्टिगेशन फोर्स (सीआईएफ) में डॉक्टर साक्षी श्रीवास्तव का रोल अदा कर रही हूं. यह मेरे लिए इसलिए ख़ास है कि इसे करते हुए महसूस होता है कि मैं अपने माता-पिता का डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर रही हूं. इस रोल से दुर्भाग्यपूर्ण, दुखद संयोग यह भी जुड़ा हुआ है कि जिस दिन मैंने डॉक्टर का कोट पहनकर इसके लिए पहले दिन का शूट किया तभी मुझे अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार भी मिला. इस के अलावा & TV पर के रोमांटिक-हॉरर शो लाल इश्क की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाना भी काफी दिलचस्प रहा.
मैं एक अलग तरह की इंसान हूं. मैं जिंदगी के लिए बहुत ज्यादा प्लानिंग नहीं करती. मेरा मानना है कि जिंदगी में जो आपके हिस्से आना है वह आपको मिल ही जाना है. हमें हर हाल में खुश रहना चाहिए. आखिरकार हम सभी दुनिया के रंगमंच के अभिनेता ही हैं, एक दिन हमें खाली हाथ चले ही जाना है. इसलिए मुझे खुद को झोंकना नहीं है बल्कि इंजॉय करना है, हाँ! सोसाइटी के लिए मैं वक्त आने पर जरूर कुछ करना चाहूंगी.
उत्तराखण्ड के एक छोटे से कस्बे अल्मोड़ा से आने की वजह से मुझे मुम्बई की दुनिया में किसी तरह की मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा. मुझे लगता है कि आपने अपने शहर से क्या सीखा है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है.
मैं टीनएज में ही पढ़ाई के लिए घर से बहुत दूर आ गयी और फिर जॉब के लिए भी. फॉर्मेटिव एज में ही मुझे कॉलेज और जॉब के दौरान देश के विभिन्न इलाकों के लोगों के साथ रहने का मौका मिला, इसने मुझे जिंदगी के ढेरों सबक दिए. इसने मेरे व्यक्तित्व को पूरी तरह बदलकर रख दिया. शायद मैं उस वक्त तक भी अल्मोड़ा में ही रही होती तो अलग तरह की रूप होती. आज कोई ये नहीं कह सकता कि मैं एक छोटे से कस्बे से आयी हुई लड़की हूं. वैसे भी मैं मुम्बई एक कामयाब इंजीनियर के रूप में आयी, जिसके लिए पैसा कमाना और समाज में स्थापित होना कोई बड़ी बात नहीं थी. तो मुझमें आत्मविश्वास था. इसीलिए मैं यहां अपने बलबूते पर कुछ कर पायी.
मुझे खुद को अल्मोड़ा की लड़की बताने में जरा भी संकोच नहीं होता. उत्तराखण्ड के छोटे कस्बों से महानगर आने वाले कई लोग ऐसा बताने में हिचकते हैं, लेकिन मैंने हमेशा खुद को अल्मोड़ा का ही बताया है. जब से मैंने इंटरव्यू देना शुरू किया खुद की पहचान को अल्मोड़ा के साथ जोड़ा है. हां, अगर कोई अल्मोड़ा के बारे में नहीं जानता तभी मैं उसे ये बताती हूं कि अल्मोड़ा नैनीताल के पास में है, क्योंकि नैनीताल को सभी जानते हैं. तब मैं यह बताने में भी नहीं चूकती कि अल्मोड़ा नैनीताल से ज्यादा प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर और साफ़-सुथरा है. मुझे यह बताने में गर्व होता है कि मैं पहाड़ी हूं, उत्तराखण्ड और अल्मोड़ा से हूं.
एक्टिंग से मैंने नाम, पैसा और शोहरत कमाया है. आज जिंदगी में मेरा जो भी मुकाम है वह एक्टिंग की ही वजह से है. मैं एक्टिंग के आपने काम को पूजती हूं.
जैसा कि मैंने पहले बताया एक्टिंग मेरे लिए पूजा है और सिंगिंग मेडिटेशन. गाते हुए मैं खुद को खुद से और भगवान से जुड़ा हुआ महसूस करती हूं.
कुछ वक्त पहले जब आंख में चोट लग जाने की वजह से में पर्दे के लिए शूट नहीं कर सटी थी तब उस वक्त का इस्तेमाल मैंने सिंगिंग के लिए किया. मैंने 2 फिल्मों के लिए गाने गाये जो अभी रिलीज नहीं हुए हैं. इस दौरान मैंने अपना यू ट्यूब चैनल भी शुरू किया, जिसके गानों को काफी पसंद भी किया गया.
भविष्य में भी मैं सिंगिंग और एक्टिंग दोनों को साथ लेकर चलना चाहूंगी. एक मेरे खून में है तो दूसरा मेरी आत्मा है.
एक्टिंग में विद्या बालन, राधिका आप्टे, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजकुमार राव, इरफान जैसे कई एक्टर हैं जो मुझे प्ररणा देते हैं, मेरा कोई एक रोल मॉडल नहीं है. गायकी में मैं किशोर कुमार और श्रेया घोषाल मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं, लता जी और आशा जी तो गायकी के प्रतीक हैं ही. गायकी के लिए प्रेरणा लेने के लिए मेरे पास और भी बहुत नाम हैं.
मैं उत्तराखण्ड से ही हूं तो जाहिर है उत्तराखण्ड में और भी ऐसे बहुत से टेलेंटेड लोग होंगे. उन सभी को सीखने के लिए बाहर आना पड़ेगा जहां वे मनोरंजन उद्योग के बारे में जानकारी हासिल कर सकें और खुद के लिए बेहतर अवसर तलाश सकें.
उत्तराखण्ड बेहद खूबसूरत है. यहां ऐसी लोकेशंस की भरमार है जहां फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग की जा सकती है. ऐसा इसलिए नहीं हो पाता है कि इन जगहों के लिए अच्छी कनेक्टिविटी नहीं है. फलाइट्स नहीं हैं और सड़कें भी खराब हैं. इस वजह से यात्रा में काफी समय खराब होता है और शूटिंग के लिए जरूरी एक्युपमेंट लाना भी परेशानी भरा हो जाता है. इस वजह से शूट का बजट काफी बढ़ जाता है.
बॉम्बे से उत्तराखण्ड की इन खूबसूरत जगहों की कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया जाना चाहिए. जब बाहर से लोग हमारे राज्य में शूटिंग के लिए आएंगे तो जाहिर है हमें भी बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा, हमारी इंडस्ट्री भी विकसित होगी. हमें उत्तराखण्ड के सफर को आसान बनाना पड़ेगा.
इस समय अमेजन प्रेम में मेरी एक वेब सीरिज इन दिनों चल ही रही है, जिसका नाम है ‘कैम्पस बीट्स” इस साल प्रकाश झा के निर्देशन में मेरी एक वेबसीरीज दिखाई देने वाली है जिसमें नाना पाटेकर भी हैं, इस में मैं जीशान अयूब के अपोजिट दिखाई दूँगी. फ़िलहाल इस वेबसीरीज के बारे में मैं ज्यादा जानकारी नहीं दे सकती. मैंने प्रकाश झा के साथ एक फ़िल्म भी हाल ही में साइन की है, जिसकी शूटिंग जल्द ही शुरू होने वाली है. मैं मुम्बई के थिएटर ग्रुप ‘रंगशिला’ से भी जुड़ी हुई हूँ. इस दौरान मैंने हिंदी, अंग्रेजी के कई नाटकों में काम किया है. दरअसल थिएटर करने के दौरान ही मुझे प्रकाश झा के साथ काम करने का मौका भी मिला.
हाल ही मैं मैंने एक प्रतिष्ठित योगा संस्थान से एक महीने का योग प्रशिक्षण लिया है. योगा हम लोगों को दबाव भरे अपने सफ़र में काफी मदद देता है. यूँ भी योग जीवन जीने की एक पद्धति भी है.
इसके अलावा सफर अभी चल ही रहा है उम्मीद है हमेशा की तरह दर्शकों का प्यार मुझे मिलता रहेगा.
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Krishan Belwal
डॉक्टर आन सिंह को मैंने अच्छे से देखा था वो क्षेत्र के प्रतिष्ठित डॉक्टर थे मेरे पिताजी अक्सर उनसे सेवा लिया करते थे रामगढ़ रोड पर उनका क्लीनिक था उनके हाथ में चमड़े का बैग हमेशा रहता था।