समाज

भाबर के इलाके वास्तव में पहाड़ियों की ही भूमि है

एक समय ऐसा भी था जब कुमाऊं में भाबर की जमीन पहाड़ियों की हुआ करती थी. पहाड़ में रहने वाले लोगों की भाबर में स्थित इन जमीनों में उनके स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के घर हुआ करते थे. नवम्बर से मार्च के बीच जब पहाड़ों में सर्दियां होती पहाड़ के लोग भाबर में आकर ही रहते.
(History of Kumaon Bhabar)

पहाड़ से आये लोगों के इस प्रवास की ख़ास बात यह है कि इसमें पूरा परिवार भाबर आता था. लोग अपने जानवरों समेत भाबर के इलाकों में आकर रहा करते थे. हर गांव का भाबर में अपना-अपना गोठ हुआ करता था. इसमें काली कुमाऊं, पाली-पछाऊं और फल्दाकोट के लोग शामिल थे.

पहाड़ से निकलते समय ज्योतिष द्वारा शुभ मुहूर्त निकाला जाता. महिला बच्चे बूढ़े सभी भाबर के रास्ते लगते. जाने से पहले ग्राम देवता की पूजा करना और उन्हें भेट चढ़ाना अनिवार्य माना जाता था. लोग बीस-बीस की जमात में अपने गांव भैंस लेकर चलते थे. एक दिन में 10 से 12 मील की दूरी तय की जाती थी. महिलायें भी बैलगाड़ी हांका करती थी या बैलगाड़ी में बच्चों के साथ बैठती या फिर साथियों के साथ पैदल चला करती थी. लोग सात-आठ दिन चलकर भाबर पहुंच जाते थे.
(History of Kumaon Bhabar)

थोड़े सरकारी कर के बदले यहां हर गांव के लिये चरभूमि रहती थी जिसमें वह अपने जानवरों को रखते. भाबर में जंगली जानवरों का बहुत खतरा रहता था. इसलिए  बड़े मजबूत खम्बों से गिरे बाड़े बनाये जाते थे. बाड़े में सबसे हष्ट-पुष्ट जानवर बाड़े के सबसे बाहर और भीतर सबसे कमजोर जानवरों को रखा करते थे. रहने को मकान बनाने के लिये उन्हें हर तीन साल में लकड़ी आदि मुफ्त में मिलती थी.

भैंसों से बनने वाले घी को ये लोग रामनगर, टनकपुर, हल्द्वानी कोटद्वार आदि मंडियों में जाकर बेचा करते थे. इस समय दूध का व्यापार नहीं किया जाता था. भाबर के इलाके वास्तव में पहाड़ियों की ही भूमि है.
(History of Kumaon Bhabar)

संदर्भ: राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित कुमाऊं

इसे भी पढ़ें : तराई भाबर में जमीनों की लूट का इतिहास

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

12 hours ago

सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी

-रामचन्द्र नौटियाल अंग्रेजों के रंवाईं परगने को अपने अधीन रखने की साजिश के चलते राजा…

13 hours ago

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

1 day ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

1 day ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

1 day ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

2 days ago