उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मंडल की हल्द्वानी तहसील की सबसे बड़ी नदी है गौला. नैनीताल जिले के खासे भूभाग की सिंचाई और पेयजल के लिए पानी गौला से ही प्राप्त होता है. यह कहना गलत न होगा कि एक बड़े क्षेत्र की बसासत गौला के भरोसे ही बसी हुई है.
गौला नदी का उद्गम स्थल विकासखण्ड ओखलकांडा में पहाड़पानी के करीब भीड़ापानी की एक घाटी से होता है. आगे चलकर गंगोलीगाड़ से यह गौला कही जाती है. आगे गौला नदी जमराड़ी, पैटना, कराल, खजूरी, ईजर, खनस्यूं, कालीगाड़, बबियाड़ आदि गावों से होती हुई हैड़ाखान, पहुँचती है.
हैड़ाखान में कलशागाड़ की जलधारा आकर गौला में मिल जाती है. कलशागाड़ मोरनौला के पास से एक गधेरे के रूप में निकलकर पदमपुरी, चांफी, मलुआताल होता हुआ, कई छोटी-बड़ी जलधाराओं को समाहित कर यहाँ पहुँचता है.
इसके बाद गौला नदी जमरानी के करीब से होती हुई रानीबाग पहुँचती है. रानीबाग में नैनीताल से आने वाला बलियानाला रास्ते के कई जलप्रपातों को समाहित करता हुआ गौला से मिलता है.
काठगोदाम में गौला नदी पर बनाया गया बैराज हल्द्वानी और आसपास के गांवों की सिंचाई और पेयजल की व्यवस्था करता है. इसके बाद गौला नदी हल्द्वानी, लालकुँआ होती हुई किच्छा पहुंचकर विलीन हो जाती है.
बरसाती जलधाराएं गौला में सबसे बड़ा सहयोग करती हैं, इसलिए गौला में बरसात व बरसात बाद के जलस्तर में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है. गर्मियां आते-आते यह हल्द्वानी के आस-पास ही विलीन हो जाती है. बरसात में यह प्रचंड वेग के साथ बहती हुई किच्छा तक जा पहुंचती है. इस तरह गौला लगभग 500 किमी का सफ़र तय करती है. गर्मियों में रेत पर विलीन हो जाने वाली गौला बरसातों में अपने प्रचंड वेग से स्थानीय आबादी को भयभीत कर देती है.
गौला नदी इस समूचे इलाके के पेयजल और सिंचाई व्यवस्था की आपूर्ति तो करती ही है, इसका उर्वर तट स्थानीय आबादी का पर्यटन स्थल भी है.
गौला नदी की गोद में मिलने वाले रेता-बजरी और पत्थर इसे बेशकीमती उपखनिज का स्रोत भी बनाते हैं. इस वजह से यह इलाके के लिए सोने की खान का भी काम करती है. गौला का रेता-बजरी सर्वोत्तम माना जाता है, जिसकी मांग दूर-दूर तक है.
गौला नदी को हिन्दू धर्म में काफी महत्त्व का माना जाता है. स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में पुष्पभद्रा नाम से गौला का उल्लेख मिलता है. चित्रशिला घाट, रानीबाग में गौला नदी के तट पर कई तरह के धार्मिक क्रियाकलाप संपन्न होते हैं.
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