पर्यावरण

उत्तराखंड की इस वाटिका में ‘गलवान घाटी’ के हर शहीद के नाम पर एक पेड़ है

पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच संघर्ष में आज ही के दिन भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे. आज देशभर में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. पिछले वर्ष वन अनुसंधान केन्द्र के प्रभारी मदन बिष्ट ने गलवान घाटी में सेना के शहीदों को समर्पित एक वाटिका बनाई गयी थी. हल्द्वानी में स्थित इस वाटिका को गलवान शहीद वाटिका नाम दिया गया था.
(Galwan Shaheed Vatika)

गलवान शहीद वाटिका में 20 अलग-अलग प्रजाति के पौधे लगाए गये थे. गलवान शहीद वाटिका में पीपल, बरगद, पिलखन, मौलश्री, बेल, दाड़िम, कचनार, कालमखीरा, कदम्ब, हर सिंगार, आंवाला, जामुन, बेलपत्र, तेजपात, अचलकूट, सादन, महुआ, तेंदू, अमलतास, बेर आदि के 20 पेड़ लगाए गए.

गलवान शहीद वाटिका में आज जवानों को श्रद्धांजलि दी गई. वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी और रेंजर मदन बिष्ट के नेतृत्व में आज कार्यक्रम आयोजित किया गया. जिसमें सभी जवानों को याद किया गया. कार्यक्रम के दौरान मदन बिष्ट ने कहा कि गलवान घाटी में 2020 में आज ही के दिन चीनी जवानों के साथ संघर्ष हुआ था. जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए. इन शहीदों को याद करते हुए गलवान वाटिका बनाई गई. गलवान शहीद वाटिका में सभी जवानों के नामों को अंकित किया गया है.
(Galwan Shaheed Vatika)

गलवान घाटी के इन शहीदों के नाम पर पेड़

कर्नल बिकुमल्ला संतोष बाबु, नायब सूबेदार नुदोरम सोरेन, मनदीप सिंह, सतनाम सिंह, हवलदार के पालनी, सुनील कुमार, बिपुल राय, नायक दीपक कुमार, सिपाही राजेेश ओरंग, कुंदन कुमार ओझा, गणेश राम, चंद्रकांता प्रधान, अंकुश, गुरबिंदर, गुरतेज सिंह, चंदन कुमार, कुंदन कुमार, अमन कुमार, जय किशोर सिंह, गणेश हंसड़ा.
(Galwan Shaheed Vatika)

काफल ट्री डेस्क

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago