पर्यावरण

भीमताल का फ्रेडी सैप

वन स्ट्रॉ रेवोल्यूशन वाले जापानी मासानोबू फुकुओका और पर्मीकल्चर के प्रतिनिधि आस्ट्रियाई किसान सैप होल्ज़र फिलहाल विश्वविख्यात नाम हैं और दुनिया भर के पर्यावरणविद उन्हें हाथोंहाथ लेते हैं और उनकी लिखी किताबों की लाखों प्रतियां बिका करती हैं. सुन्दरलाल बहुगुणा और मेधा पाटकर के कामों को भी मीडिया ने पर्याप्त तवज्जो दी है. लेकिन उत्तराखंड के कोटमल्ला गांव के बंजर में बीस हज़ार पेड़ों का जंगल उगाने वाले जगत सिंह चौधरी ‘जंगली’ जैसे प्रकृतिपुत्रों को उनके हिस्से का श्रेय और नाम मिलना बाकी है. ठीक ऐसा ही मेरे प्यारे दोस्त फ्रैडरिक स्मेटाचेक जूनियर के बारे में भी कहा जा सकता है.

उत्तराखंड कुमाऊं के विख्यात पर्यटन स्थल भीमताल की जून एस्टेट में फ्रैडरिक स्मेटाचेक के घर पर, माफ करें फ्रैडरिक स्मेटाचेक जूनियर के घर पर आपको एशिया का सबसे बड़ा व्यक्तिगत तितली संग्रह देखने को मिलेगा.

हल्द्वानी से भीमताल की तरफ जाएं तो पहाड़ी रास्ता शुरू होने पर आपको चीड़ के पेड़ों की बहुतायत मिलेगी . यह हमारे वन विभाग की मेहरबानी है कि पहाड़ों में कल्पवृक्ष के नाम से जाने जाने वाले बांज के पेड़ों का करीब करीब खात्मा हो चुका है. भीमताल पहुंचने के बाद आप बाईं तरफ को एक तीखी चढ़ाई पर मुड़ते हैं और जून एस्टेट शुरू हो जाती है. जून एस्टेट में आपको चीड़ के पेड़ खोजने पड़ेंगे. यहां केवल बांज है दशकों से सहेजा हुआ.

फ्रैडरिक के पिता यानी फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर 1940 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में यहां आकर बस गए थे. यहां स्मेटाचेक परिवार की संक्षिप्त दास्तान बताना ज़रूरी लगता है. चेकोस्लोवाकिया के मूल निवासी लेकिन जर्मन भाषी फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर 1940 के आसपास हिटलर विरोधी एक संगठन के महत्वपूर्ण सदस्य थे. विश्वयुद्ध का दौर था और हिटलर का सितारा बुलंदी पर. वह अपने सारे दुश्मनों को एक एक कर खत्म करता धरती को रौंदता हुआ आगे बढ़ रहा था.

फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर की मौत का फतवा भी बाकायदा हिटलर के दस्तखत समेत जारी हुआ. जान बचाने की फेर में फ्रैडरिक सीनियर अपने कुछ साथियों के साथ एक पुर्तगाली जहाज पर चढ़ गए. यह जहाज कुछ दिनों बाद गोआ पहुंचा. गोआ में हुए एक खूनी संघर्ष में जहाज के कप्तान का कत्ल हो गया. सो बिना कप्तान का यह जहाज चल दिया कलकत्ता की तरफ. कलकत्ता पहुंचकर रोजी रोटी की तलाश में फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर ने उन दिनों वहां बड़ा व्यापार कर रही बाटा कम्पनी में नौकरी कर ली. बाटानगर में रहते हुए फ्रैडरिक सीनियर ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक क्लब की स्थापना की. चुनिन्दा रईसों के लिए बना यह क्लब सोने की खान साबित हुआ. इत्तफाक से इन्हीं दिनों अखबार में छपे एक विज्ञापन ने उनका ध्यान खींचा: कुमाऊं की नौकुचियाताल एस्टेट बिकाऊ थी. उसका ब्रिटिश स्वामी वापस जा रहा था. मूलत: पहाड़ों को प्यार करने वाले फ्रैडरिक सीनियर को फिर से पहाड़ जाने का विचार जंच गया. वे कलकत्ता से नौकुचियाताल आ गए और फिर जल्दी ही उन्होंने नौकुचियाताल की संपत्ति बेचकर भीमताल की जून एस्टेट खरीद ली जो फिलहाल उनके बेटों के पास है.

नौकुचियाताल और भीमताल के इलाके में फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर ने प्रकृति और पर्यावरण का गहन अध्ययन किया खासतौर पर इस इलाके में पाए जाने वाले कीट पतंगों का और तितलियों का. पर्यावरण के प्रति सजग फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर ने अपने बच्चों को प्राकृतिक संतुलन का मतलब समझाया और पेड़ पौधों जानवरों कीट पतंगों के संसार के रहस्यों से अवगत कराया.

यह फ्रैडरिक स्मेटाचेक सीनियर थे, जिन्होंने 1945 के साल से तितलियों का वैज्ञानिक संग्रह करना शुरू किया. यह संग्रह अब एक विषद संग्रहालय बन चुका है. संग्रहालय के विनम्र दरवाज़े पर हाफ पैंट पहने हैटधारी स्मेटाचेक सीनियर का फोटो लगा है.

स्मेटाचेक सीनियर के मित्रों का दायरा बहुत बड़ा था. विख्यात जर्मन शोधार्थी लोठार लुट्जे अक्सर अपने दोस्तों के साथ जून एस्टेट में रहने आते थे. इन दोस्तों में अज्ञेय और निर्मल वर्मा भी थे और विष्णु खरे भी. अभी कुछ दिन पहले स्मेटाचेक जूनियर ने मुझे सम्हाल कर रखा हुआ एक टाइप किया हुआ कागज़ थमाया. यह स्वयं विष्णु जी द्वारा टाइप की हुई उनकी कविता थी: ‘दिल्ली में अपना घर बना लेने के बाद एक आदमी सोचता है’. कविता के बाद कुछ नोट्स भी थे. शायद यह कविता वहीं फाइनल की गई थी.

अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ाने का काम उनके बेटों विक्टर और फ्रैडरिक स्मेटाचेक जूनियर ने संभाला. बड़े विक्टर अब जर्मनी में रहते हैं और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के भूवैज्ञानिक माने जाते हैं: अंटार्कटिका की पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ. सो अब एक तरह से स्मेटाचेक परिवार का इकलौता और वास्तविक ध्वजवाहक फ्रैडरिक स्मेटाचेक जूनियर है. पचपन छप्पन साल का फ्रैडी पिछले करीब आठ सालों से पूरी तरह शैयाग्रस्त है. बिस्तर पर लेटे इस बेचैन शख्स के पास आपको कुछ देर बैठना होगा और धीरे धीरे आपके सामने पिछले चालीसेक सालों की आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय कथाओं का पुलिन्दा खुलना शुरू होगा.

फ्रैडरिक स्मेटाचेक जूनियर के घर में घुसते ही उसकी बेहतरीन वास्तुकला ध्यान खींचती है. बहुत सादगी से बने दिखते इस घर के भीतर लकड़ी का बेहतरीन काम है. यह अपेक्षाकृत नया मकान है और इसे नींव से शुरू करके मुकम्मल करने का काम खुद फ्रैडी ने स्थानीय मजदूर मिस्त्रियों की मदद से किया. घर की तमाम आल्मारियां दरवाज़े पलंग कुर्सियां सब कुछ उसने अपने हाथों से बनाए हैं. किंचित गर्व के साथ वह कहता है कि इस पूरे इलाके में उस जैसा बढ़ई कोई नहीं हो सकता. न सिर्फ बढ़ईगीरी में बल्कि बाकी तमाम क्षेत्रों में अपने पिता को वह अपना उस्ताद मानता है.

अपने पिता से फ्रैडरिक ने प्रकृति को समझना और उसका आदर करना सीखा. किस तरह कीट पतंगों और तितलियों चिड़ियों के आने जाने के क्रम के भीतर प्रकृति अपने रहस्यों को प्रकट करती है और किस तरह वह अपने संतुलन को बिगाड़ने वाले मानव के खिलाफ अपना क्रोध व्यक्त करती है यह सब फ्रैडरिक को बचपन से सिखाया गया था.

कोई आश्चर्य नहीं सत्तर के दशक में अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए करने के बाद फ्रैडरिक ने थोड़े समय नैनीताल के डी एस बी कॉलेज में पढ़ाया लेकिन नौकरी उसे रास नहीं आई. उसने बंजारों का जीवन अपनाया और कुमाऊं गढ़वाल भर के पहाड़ों और हिमालयी क्षेत्रों की खाक छानी.

सन 1980 के आसपास से कुमाऊं में फैलते भूमाफिया के कदमों की आहट पहचानने और सुनने वाले पहले लोगों में फ्रैडरिक था. यह फ्रैडरिक था जिसने अपने इलाके के निवासियों के लिए राशनकार्ड जैसा मूल अधिकार सुनिश्चित कराया.

अस्सी के दशक में फ्रैडरिक अपनी ग्रामसभा का प्रधान चुना गया और पांच सालों के कार्यकाल के बाद उसकी ग्रामसभा को जिले की आदर्श ग्रामसभा का पुरूस्कार प्राप्त हुआ.इस दौरान उसने अपने क्षेत्र के हर ग्रामीण की ज़मीन जायदाद को बाकायदा सरकारी दफ्तरों के दस्तावेजों में दर्ज कराया. जंगलों में लगने वाली आग से लड़ने को स्थानीय नौजवानों की टुकड़ियां बनाईं दबे कुचले लोगों को बताया कि शिक्षा को वे बतौर हथियार इस्तेमाल करें तो उनका जीवन बेहतर बन सकता है. साथ ही यह समय आसन्न लुटेरों के खिलाफ लामबन्दी की तैयारी का भी था जो तरह तरह के मुखौटे लगाए पहाड़ों की हरियाली को तबाह करने के गुप्त रास्तों की खोज में कुत्तों की तरह सूंघते घूम रहे थे.

1982 में ग्राम सभा चुनाव का ओरिजिनल पोस्टर 

पूरा पहाड़ न सही अपनी जून एस्टेट और आसपास के जंगलों को तो वह बचा ही सकता था. इसके लिए उसने कई दफा अपनी जान की परवाह भी नहीं की. जून एस्टेट में पड़ने वालै एक सरकारी जमीन को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भगवा सरकार ने रिसॉर्ट बनाने के वास्ते अपने एक वरिष्ठ नेता को स्थानांतरित कर दिया. इस रिसॉर्ट के निर्माणकार्य में सैकड़ों बांजवृक्षों को काटा जाना था. इन पेड़ों की पहरेदारी में स्मेटाचेक परिवार ने करीब आधी शताब्दी लगाई थी.

भगवा राजनेता ने धन और शराब के बल पर स्थानीय बेरोजगारों का समर्थन खरीद कर निर्माण चालू कराया लेकिन फ्रैडरिक के विरोध और लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद न्यायालय का निर्णय निर्माण को बन्द कराने में सफल हुआ. इस पूरे प्रकरण में कुछ साल लगे और कानून की पेचीदगियों से जूझते फ्रैडरिक को पटवारियों क्लर्कों पेशकारों से लेकर कमिश्नरों तक से बात करने और लड़ने का मौका मिला. उसे मालूम पड़ा कि असल लड़ाई तो प्रकृति को सरकारी फाइलों और तुगलकी नीतियों से बचाने की है. कम से कम लोगों को इस बाबत आगाह तो किया जा सकता है.

इधर 1990 के बाद से दिल्ली और बाकी महानगरों से आए बिल्डरों ने औने पौने दाम दे कर स्थानीय लोगों की जमीनें खरीदना शुरू किया. इन जमीनों पर रईसों के लिए बंगले और कॉटेजें बनाई गईं. भीमताल की पूरी पहाड़ियां इन भूमाफियाओं के कब्जे में हैं और एक भरपूर हरी पहाड़ी आज सीमेन्ट कंक्रीट की बदसूरत ज्यामितीय आकृतियों से अट चुकी है.

अकेला फ्रैडरिक इन सब से निबटने को काफी नहीं था. फिर भी सन 2000 में उसने नैनीताल के उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की . यह याचिका पिछले दशकों में शासन की लापरवाही प्रकृति के प्रति क्रूरता और आसन्न संकट से निबटने के लिए वांछनीय कार्यों का एक असाधारण दस्तावेज. पांच सालों बाद आखिरकार 2005 के शुरू में इस याचिका पर शासन ने कार्य करना शुरू कर दिया है. वर्ष 2000 में फ्रैडरिक ने बाकायदा भविष्यवाणी करते हुए जल निगम को चेताया था कि उचित कदमों के अभाव में जल्द ही समूचे हल्द्वानी की तीन चार लाख की आबादी को भीमताल की झील के पानी पर निर्भर रहना पड़ेगा क्योंकि लगातार खनन और पेड़ों के कटान ने एक समय की सदानीरा गौला नदी को एक बीमार धारा में बदल दिया था. 2005 की गर्मियों में यह बात अक्षरश: सच साबित हुई.

बहुत कम लोग जानते हैं कि फ्रैडरिक एक बढ़िया लेखक और कवि भी है. वह अंग्रेजी में लिखता है और उसका ज्यादातर लेखन व्यंग्यात्मक होता है. उसे शब्दों और उनसे निकलने वाली ध्वनियों से खेलने और शरारत में आनन्द आता है. ‘द बैलेस्टिक बैले ऑफ ब्वाना बोन्साई बमचीक’ उसका अब तक का सबसे बड़ा काम है अलबत्ता उसे अभी छपना बाकी है . इसके एक खण्ड में पेप्सी और कोकाकोला के ‘युद्ध’ को समाप्त करने के लिए कुछ अद्भुत सलाहें दी गई हैं.

दुनिया भर के साहित्य पढ़ चुके फ्रैडरिक के प्रिय लेखकों की लिस्ट बहुत लम्बी है. वह हिमालयी पर्यावरण के विरले विशेषज्ञों में एक है. पिछले दस सालों से जून एस्टेट के पेड़ों के हक के लिए लड़ते भारतीय दफ्तरों की लालफीताशाही और खत्ता खतौनी जटिलताओं से रूबरू होता हुआ अब वह भारतीय भू अधिनियम कानूनों का ज्ञाता भी है. अपने बिस्तर पर लेटा हुआ वह एक आवाज सुनकर बता सकता है कि कौन सी चिड़िया किस पेड़ पर बैठकर वह आवाज निकाल रही है और कि वह ठीक कितने सेकेंड बाद दुबारा वही आवाज निकालेगी़ जब तक कि उसका साथी नहीं आ जाता. जंगली मुर्गियों तेंदुओं हिरनों के पत्तों पर चलने भर की आवाज से वह उन्हें पहचान सकता है और जैसा कि मैंने बताया था वह एक विशेषज्ञ बढ़ई. गांव के बच्चों को हर मेले में जाने के लिए जेबखर्च देने वाला फ्रैडरिक गैरी लार्सन जैसे भीषण मुश्किल काटूर्निस्ट का प्रशंसक फ्रैडरिक देश विदेश के लेखक बुद्धिजीवियों का दोस्त फ्रैडरिक ‘बटरफ्लाइ मैन’ के नाम से विख्यात फ्रैडरिक कभी कभार शराब के नशे में भीषण धुत्त सरकार अफसरों को गालियां बकता फ्रैडरिक बैसाखियों के सहारे धीमे धीमे चलने की कोशिश करता ईमानदार ठहाके लगाता फ्रैडरिक पता नहीं क्या क्या है वह.

हां कभी भीमताल से गुजरते हुए सुखर् लाल जिप्सी पर निगाह पड़े तो समझिएगा वह फ्रैडरिक की गाड़ी है. गाड़ी चालक से कहेंगे तो वह सीधा आपको फ्रैडरिक के पास ले जाएगा. आप पाएंगे कि ऊपर चढ़ती गाड़ी बिना आवाज किए चढ़ रही है. बाद में जब आप फ्रैडरिक से मिल चुके होंगे उसकी कुछ बातें सुन चुके होंगे हो सकता है अपनी पुरानी जिप्सी का जिक्र आने पर वह आपको बताए कि गाड़ी बीस साल पुरानी है. अपने जर्मन आत्मगर्व के साथ वह आपको बताएगा कि वह न सिर्फ इलाके का सबसे बढ़िया बढ़ई है बल्कि सबसे बड़ा उस्ताद कार मैकेनिक भी.

-अशोक पाण्डे

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

[यह लेख 2006 में लिखा गया था. 14 फरवरी 2010 को लम्बी बीमारी के बाद फ्रेडरिक की मृत्यु हो गयी थी. अफ़सोस की बात है कि उसके जाने के बाद भीमताल-हल्द्वानी मार्ग में तितली संग्रह का विज्ञापन करते तमाम होर्डिंग्स पर कहीं भी फ्रेडरिक का नाम तक नज़र नहीं आता.]

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

3 days ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

3 days ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

5 days ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

1 week ago

उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने

-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…

1 week ago

नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार

आम चुनाव आते ही नैनीताल के दो चुनावजीवी अक्सर याद आ जाया करते हैं. चुनाव…

1 week ago