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हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 30

बाबा नीम करोली महाराज को लेकर भी श्रद्धालुओं में अगाध श्रद्धा रही है अपने बचपन को याद करते हुए डॉ. मुनगली बताते हैं सन 1952 में जब वह दो-तीन साल के थे घर से बाहर घूमते हुए खो गए. ढूंढ खोज के बाद उनके परिजनों को पता चला कि वे रामलीला मैदान के पीछे शिवदत्त जोशी के घर में हैं. शिवदत्त जोशी के हल्द्वानी स्थित आवास पर नीम करोली महाराज के प्रवचन चलते थे. मुनगली के पिता भवानी दत्त भी महाराज के परम भक्तों में थे. अपने पुत्र को ढूंढते हुए ज्यों ही भावानीदत्त शिवदत्त जोशी के आवास पर पहुंचे उन्होंने देखा उनका बालक महाराज के पास बैठा है. इस बीच नीम करौली बाबा ने उन्हें देखते ही कहा –‘तू बनाएगा’. महाराज से ‘हां’ तो कह दिया लेकिन क्या बनाएगा यह भवानीदत्त को कुछ पता नहीं था. बाद में पता चला कि मनोरा क्षेत्र में मंदिर बनाने के लिए बाबा ने कहा है. इस घटना के बाद हनुमानगढ़ी में मंदिर का कार्य शुरू हुआ. उस समय हनुमानगढ़ी का यह इलाका लावारिस लाशों को दबाने का मरघट था. मनोरा क्षेत्रवासियों का भूमिया मंदिर यहां जरूर था.

बाबा के आदेश पर भवानीदत्त मुनगली हल्द्वानी के खिचड़ी मोहल्ले से मिस्त्री को अपने साथ हनुमानगढ़ी ले गए. उस समय लियाकत और रियासत नामक दो भाई मशहूर कारीगर मिस्त्री थे. बीमार होने के बावजूद रियासत ने हनुमानगढ़ी का काम शुरू किया. मंदिर का पहला निर्माण बिना फीते की नपाई के हुआ. मंदिर के गुंबद को बनाने के लिए कंडों का ढेर लगाया गया और ऊपर से ढोला बांधा गया. मक्खन नामक कारीगर ने हनुमान की मूर्ति बनाई. महाराज के अन्य सहयोगियों में जीवन गुरुरानी, भारतीय बाल विद्या मंदिर स्कूल के संचालक भी थे. मंदिर बनाने के लिए धारे से कनस्तरों में पानी यह लोग स्वयं ढोते थे. सन 1953 में मंदिर का पहला डोला निकाला गया.

भारतीय बाल विद्या मंदिर पहले रतन कुंज कालाढूंगी रोड हल्द्वानी में तथा हरिदत्त फर्नीचर मार्ट के बाहर बने टिन शेड में चला करता था. कुछ वर्षों बाद मुखानी नहर के पास उनका अपना भवन बन गया. और अब यह इंटरमीडिएट तक चला करता  है.

नीम करोली महाराज को मारने वाले भक्तों में गुरुरानी प्रमुख थे. 85 वर्षीय जीवन बाबा मुखानी स्थित अपने आवास में जीवन का उत्तरार्ध बिता रहे थे. भवाली के स्वतंत्रता सेनानी शिव दत्त भट्ट की पुत्री पुष्पा के साथ इनका विवाह नीम करोली महाराज ने करवाया. जहां भी बाबा का दरबार लगता जीवन गुरुरानी 80 सेवक के रूप में जरूर उपस्थित होते थे. संगत का यही क्रम उन्हें जीवन बाबा के नाम की पहचान दे गया.

जीवन बाबा बताते हैं कि नीम करोली महाराज आगरा के अकबरपुर क्षेत्र के संपन्न परिवार में से थे. धार्मिक यात्राओं के साथ उनका रुख पहाड़ की ओर हुआ और कैंची, हनुमानगढ़ी, भूमियाधार, सहित तमाम स्थानों पर मंदिर बनवाए गए. यह सिलसिला चलता रहा और बद्रीनाथ, ऋषिकेश, दिल्ली, वृंदावन सहित कई स्थानों पर महाराज के मंदिर बने हैं और उनके मानने वाले हैं. नीम करोली के बड़े पुत्र ओम नारायण शर्मा रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं जो भोपाल में रहते हैं. महाराज के दूसरे पुत्र धर्मनारायण शर्मा फॉरेस्ट के रिटायर्ड अफसर हैं. महाराज की पुत्री का विवाह भटेलो परिवार में हुआ. काफी सक्षम और संपन्न परिवार महाराज का है.

सदर बाजार से पूर्व की ओर मंगल पड़ाव से नया बाजार की ओर जाने वाली सड़क पियरसन गंज और उससे अगली वाली गली महावीरगंज के नाम से जानी जाती है. पियरसनगंज वाली सड़क के छोर में मंगल पड़ाव में आजकल जहां दोमंजिले में डॉ. विपिन चंद्र पंत का डेंटल क्लीनिक है और निचले तल में पोस्ट ऑफिस है. उस बिल्डिंग में पीयरसन नामक अंग्रेज रहा करता था. इसीलिए इस स्थान का नाम पीयरसनगंज पड़ गया और बाजार भी पीयरसनगंज  कहीं जाने लगी. पीयरसनगंज व महावीरगंज मैं पहले फल के आढ़ती बैठा करते थे और मावे का कारोबार होता था. अब नवीन मंडी बन जाने के बाद फल लड़कियों का कारोबार स्थानांतरित हो गया है. यद्यपि इस मार्ग को पियरसनगंज के नाम से ही जाना जाता है. अब मीरा मार्ग के नाम से भी इसकी नई पहचान बनी है. मीरा नाम की एक महिला यहां निशुल्क सिलाई कढ़ाई का प्रशिक्षण देने लगी. वह चाहती थी कि महिलाएं स्वावलंबी बन कर कुछ करें. बहुत समय तक उसका यह निस्वार्थ कार्य चलता रहा और इसी के चलते इस मार्ग को मीरा मार्ग कहा जाने लगा.

कारखाना बाजार जिसे पहले लोहारा गली कहा जाता था और सदर बाजार के बीच वाली बाजार को नल बाजार के नाम से जाना जाता था. यहां पहले एक घना छायादार वृक्ष था. बाजार में पालिका द्वारा सात नल साधन-सुविधा के लिए लगाए गए थे जिनमें शीतलाहाट का शुद्ध ठंडा पानी आता था. यों जन सुविधा के लिए पुराने समय में नगर के विभिन्न स्थानों में नलों की व्यवस्था थी. बहुत ही कम घर ऐसे थे जहां निजी तौर पर लोगों ने पानी के संयोजन ले रखे थे. इन सार्वजनिक नलों से ही आम लोग पानी लिया करते थे. नल बाजार से ही आसपास के बाजार व घरों को पानी मिलता था. यहां पालिका ने प्याऊ भी लगाया था जहाँ गर्मियों में पानी पिलाने के लिए एक कर्मचारी नियुक्त किया जाता था. इस बाजार में पहले सब्जी की दुकानें लगा करती थी. जो बाद में मंगल पड़ाव में स्थानांतरित हो गई. इस बाजार में बहुत बाद तक तेल के थोक व फुटकर व्यापारी बैठा करते थे. 1962 में लगी आग ने इस बाजार का स्वरूप ही बदल दिया.

भवानीगंज में हल्द्वानी की तब सबसे ऊंची यानी 4 मंजिला बिल्डिंग 1963 में बनी. यह बिल्डिंग कोलकाता वाले सेठ की थी. मूल रूप से द्वाराहाट निवासी अंबादत्त जोशी, जिन्होंने कोलकाता में अपना व्यापार स्थापित किया था, ने भोटिया पड़ाव में टाटा मर्सिडीज के पीछे कई एकड़ जमीन खरीदकर कोठी बनाई थी. आज अंबिका विहार, अंबिका बैंकट हॉल, आम्रपाली होटल आदि कई व्यावसायिक केंद्र इस इलाके में स्थापित हैं. भवानीगंज वाले चौमंजिले भवन में पंजाब नेशनल बैंक और भूतल में सीताराम का हजारा रेस्टोरेंट चला करता था. अब इस भवन को परमजीत सिंह ने खरीद कर हैप्पी होम नाम से होटल स्थापित कर लिया है तथा भूतल के हिस्से में बालाजी इंटरप्राइजेज के नाम से खड़िया फैक्ट्री वाले एनसी तिवारी का कार्यालय है. स्वर्गीय अंबा दत्त जोशी बताते थे कि तकरीबन 1935-36 में वे अपने बड़े भाई के पास कोलकाता चले गए थे. उनके बड़े भाई कोलकाता में अध्यापन कार्य किया करते थे. वे बताते हैं कि एक पीतल की घंटी (लोटा) और छः आने लेकर वे कोलकाता पहुंचे. प्रारंभ में उन्होंने जूट के कारोबारियों के साथ अपना काम शुरू किया और बाद में जूट के बड़े दलालों के मुकाबले अपने कारोबार का विस्तार कर लिया. अंग्रेजों का जमाना था और उनका कारोबार खूब फल-फूल गया. उन्होंने मुरलीधर लेन कोलकाता में आलीशान कोठी बना ली. जब उन्हें लगा कि अपने पहाड़ की ओर लौट आ जाए तो उन्होंने यहां जमीन खरीदकर घर बनाया.

( जारी )

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर

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Sudhir Kumar

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