समाज

रूपकुंड के रहस्य से जुड़ी एक दिलचस्प लोककथा

कन्नौज के राजा और उसके राज्य पर देवी भगवती का कोप था. अच्छा धान बोने पर सोला उगता. लोग जब अच्छे गेहूँ की उपज की आशा लगाए बैठे थे, खेतों में गोबरी पैदा हुई. चने की फसल जब लोग काटने गए तो उन्हें केवल काले सूखे छिलके मिले. जौ के खेतों में घास-पतवार का साम्राज्य हो गया. लोहाजंग के प्रदेश में बर्फीली हवा वेग से चलती तो लगता लोगों के कान फट जायेंगे. वेदिनी में विषाक्त धुआँ व्याप्त हो गया. जो सिर में भीषण पीड़ा उत्पन्न कर देता. गिंगटोली के पर्वत हिमाच्छादित हो गए. उन पर लोगों का चलना असंभव हो गया. गायें, पँडवों (भैंस के बच्चों) को जन्म और भैसें बछड़ों को. इसी प्रकार भेड़ों से मेमने उत्पन्न होते और बकरियों से भेड़ों के बच्चे. मनुष्य की सन्तानें भी लुंजपुंज शरीर लेकर धरती पर आतीं. जल रक्तिम वर्ण का हो गया. देवी के कोप से सारे लोग हर प्रकार से संतप्त थे.
(Folk Stories about Roopkund)

कन्नौज के राजा जसदल ने विद्रूप के साथ प्रजा से कहा-  देवी भगवती के दर्शनार्थ तुमने तीर्थयात्रा नहीं की, उसी का यह परिणाम है. चलो, हम तीर्थयात्रा के लिए तुरन्त कूच करें.

प्रजा के परामर्श से राजा ने भोजपत्र के छत्र निर्मित करने की आज्ञा दी. लोगों में अपूर्व उत्साह था. राजा की आज्ञा से उन्होंने नए परिधान बनवाए और सारे गन्दे वस्त्रों को स्वच्छ किया. भोजपत्र के छत्र भी तैयार हो गए.

सभी तैयारियाँ समाप्त होने पर वे तीर्थयात्रा पर चल पड़े. ढोला समुद्र, मावाभवर और पित्वाभूवा होते हुए उनका दल चामू ढाँटा राज्य में पहुँचा. वहाँ से व दिल्ली गए और फिर हल्द्वानी, सोमेश्वर, बैजनाथ (सीरकटुर), ग्वालदम, लोहाजंग होते हुए बैदिनी पहुंचे. बैदिनी में उन्होंने कुछ दिन ठहरकर देवा भगवती के मन्दिर में पूजा की और बलि दी.

‘जात्रा’ बेदिनी से पातरनच्योंणीं पहुँची और वहाँ से गिंगटोली, जो रूपकुण्ड का आधार है. यहाँ कन्नौज की रानी को प्रसव वेदना हुई, अत: सारी ‘जात्रा’ को रुकना पड़ा.

घने बादल छा गए, कुहरा चारों ओर फैल गया और शीघ्र ही गिंगटोली अन्धकार में डूब गया. यहाँ पर एक चट्टान के आश्रय में बल्पा रानी ने एक शिशु का जन्म दिया. वह स्थान आजकल बग्गूबाशा के समीप बल्पा-सुलेड़ा के नाम से प्रसिद्ध है (सुलेड़ा यानि प्रसूतिगृह).
(Folk Stories about Roopkund)

जब देवी भगवती को अपने वासस्थान के अंदर एक शिशु के जन्म का समाचार मिला, उन्होंने अपने भृत्य हंस को पता लगाने के लिए भेजा कि वे लोग कौन थे जिन्होंने उनके पवित्र स्थान में प्रवेश कर उसे अपवित्र किया था. हंस ने गिंगटोली में जाकर इस यात्रीदल के विषय में सभी बातें जान लीं. उसने वापस कैलास में जाकर भगवती को बतलाया कि कन्नौज के राजा और रानी वहाँ पर अंगरक्षक दल के साथ हैं. और रानी ने एक शिशु को जन्म दिया है. उसने देवी को यह भी सूचित किया कि बल्पा रानी देवी भगवती की ‘धरम’ बहिन है. तब तक भगवती के एक अन्य सेवक देवसिंह ने आकर कहा, “माता, तुम्हारा कैलास अपवित्र हो गया.” देवी ने अपने दो दूतों रनखल और भैरियाल को आज्ञा दी कि वे राजा, रानी और उसके साथियों को वापस कन्नौज भेज दें. दूतों ने आज्ञापालन में कुछ आनाकानी दिखाई क्योंकि वे राजा के सहस्र अंगरक्षकों से डर रहे थे. भगवती ने तब आज्ञा दी कि राजा के दल पर पत्थर बरसाओ. यह भी उन्होंने स्वीकार न किया.

फिर भगवती ने अपने पुराने भृत्य लाटू को बुलवाकर कहा कि मेरा वास स्थान अपवित्र हो गया है, अत: तुम मेरे पवित्र स्थान का अपमान करने वाले राजा, रानी और उनकी सेना को नष्ट कर दो. लाटू ने उत्तर दिया कि राजा और रानी आपके अतिथि हैं, अतः उनका उचित सत्कार करना चाहिए न कि उन्हें नष्ट दिया जाय. परन्तु भगवती अपनी इच्छा पर दृढ़ थीं उन्होंने लाटू को आज्ञापालन करने पर कई बातों लालच दिलाया. वह बोली, “वत्स, मैं तुमको शाक्त से सम्पन्न कर दूंगी. राजा और रानी का काम तमाम कर दो तो मैं तुम्हें अपने दाहिने हाथ के माप स्थान दूंगी और भक्तगण तुम्हारी भी वन्दना करेंगे. प्रति वर्ष बैदिनी में तीर्थयात्री तुम्हें भोजन और उपहार चढ़ाया करेंगे. बड़े ‘यति’ में जब मेरे भक्त ‘ब्राह’ आयेंगे, उनमें से प्रत्येक तुम्हें कम से कम एक ‘तिमासी’ (तीन आने का एक सिक्का) भेंट करेगा. इन अवसरों पर मेरी सब बहनों की स्मृति में डोले निकलेंगे. मैं बैदिनी में तुम्हारी पूजा के लिए आज्ञा निकाल दूंगी. यदि तुम्हारे सेवक कोई वस्तु बलपूर्वक छीन लेंगे तो वह पाप नहीं माना जायगा.”
(Folk Stories about Roopkund)

इन सब लालचों के बावजूद राजा और रानी की हत्या के लिए लाटू तैयार नहीं हो रहा था. भगवती ने फिर इन शब्दों के साथ उसे मनाना चाहा, “मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूँ. भविष्य में तुम मेरे मुख्य गण रहोगे और सभी उत्सवों में तुम्हें ही मेरे आगमन को घोषित करने का सम्मान प्राप्त होगा. जाओ, अब चले जाओ. यतियों (ब्राह्मण भक्तों) को आने और विश्राम करने दो, परन्तु अन्यों को नष्ट कर दो क्योंकि उन्होंने मेरे पवित्र कैलास को कलुषित किया है. मेरे विश्वस्त सेवक, अविलम्ब जाओ क्योंकि आधी सेना रूपकुण्ड पहुँच चुकी है यद्यपि बल्पारानी स्वयं अभी गिंगटोली में ही है.”

लाटू ने आज्ञापालन किया और वह ज्योंरागली गया जहाँ उसने राजा को एक बड़ी सेना के साथ देखा. उसने पूछा आप लोग कौन हैं और उन्होंने उत्तर दिया कि हम भगवती के दर्शन के इच्छुक तीर्थयात्री हैं. उन्होंने यह भी बताया कि हम कन्नौज नरेश जसदल के सैनिक हैं. फिर लाटू ने पता लगाया कि उनमें कौन यती थे. यतियों में एक ऋषि थे, चन्द्र ऋषि. उन्होंने आगे बढ़कर यतियों की ओर संकेत किया और कहा कि वे यती और वह स्वयं राजा जसदल की सेना से सम्बन्धित नहीं थे.

लाटू ने चन्द्र ऋषि और यतियों को आगे बढ़ने की अनुमति दे दी किन्तु शेष को उसने दैवी दण्ड दिया. उसने राजा को बतलाया कि पवित्र कैलास को कलुषित करने के अपराध में ही उन लोगों को दण्ड दिया जा रहा है. काले बादलों ने आकाश को ढक लिया और सर्वत्र घोर तिमिर छा गया. वर्षा, मेघ ध्वनि, हिमपात ने मिलकर प्रलय ढा दिया. ऊपर से लाटू ने पत्थर और लोहे के टुकड़े बरसाना आरम्भ कर दिया. जो रूपकुण्ड पहुँच चुके थे वे भी शेष न रहे. गिंगटोली की नदियों में बाढ़ आ गई. बल्पा-सुलेड़ा जहाँ रानी ने शिशु को जन्म दिया था, बह गया. बाद में कुम्बागढ़ में ग्वालों को बल्पा रानी की अस्थियाँ मिली.
(Folk Stories about Roopkund)

सभी अपराधियों के विनाश के उपरान्त तूफान थमा और आकाश स्वच्छ हुआ. लाटू ने भगवती के पास वापस जाकर सारी घटना सुनाई. उन्होंने लाटू की प्रशंसा की. वहाँ पर यती भी उपस्थित थे. भगवती ने उनसे पूछा कि तुम लोग अब कहाँ जाओगे. उन्होंने कहा, “हम लोग व्यापार के काम से हूणदेश जायेंगे. हम लोग नमक, सोहागा, ऊनी वस्त्र, चार सींगों वाली गायें, ज्वापा बैल, हुंकारी बकरियाँ और च्याल्पू बकरियाँ खरीदना चाहते हैं.

भगवती ने कहा, “यदि तुम लोग व्यापार के काम से जाना चाहते हो तो जा सकते हो.” फिर उन्होंने उनको सबसे आसान मार्ग बताया और उपयोगी निर्देश दिए. “तुम्हें हुंकारी बकरियाँ पवित्र गंगा में मिलेंगी. वहाँ से तिब्बत चले जाना तो नमक और सोहागा पा जाओगे. तिब्बत में लामा हुणिया से तुम्हारी भेंट होगी. तिब्बत की स्त्रियाँ हुणादाम रेहना कहलाती हैं. ये ऊनी वस्त्र तैयार करती हैं, अतः ऊनी वस्त्र तुम वहाँ पर खरीद सकते हो.”

चन्द्र ऋषि और अन्य तीर्थयात्री हुणदेश गए और सभी वस्तुएँ खरीदने के बाद वे लौटकर त्रिशूली आए और वहाँ से शील समुद्र, गिंगटोली, बैदिनी, जनखल, गौखल, चाया-चोरी, दोबाचोरी होते हुए अंत में ऋषासुर पहुंचे जहाँ वे बस गए. वहाँ के निवासी इन व्यापारियों के पास इतनी सुन्दर वस्तुयें देखकर चकित रह गए. उन्होंने उनके साहस, उद्यम एवं अध्यवसाय की भूरि-भूरि प्रशंसा की. परन्तु भगवती ने तभी से इस व्यापारिक मार्ग को अवरुद्ध कर दिया है और अब तो उसका लेशमात्र चिन्ह भी शेष नहीं रहा.
(Folk Stories about Roopkund)

डी. एन. मजूमदार

डी. एन. मजूमदार का यह लेख पहाड़ पत्रिका के 18वें अंक से साभार लिया गया है.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

4 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago