कला साहित्य

जयंती, शिक्षा विभाग और चाय-नमकीन

अपने मुल्क में बड़े लोगों की जयंती मनाए जाने का चलन आम है. बहुत बड़े लोगों की पुण्यतिथि भी मनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि सामान्य जन इन आयोजनों से प्रेरणा लेकर उनके टाइप बनने का प्रयास करेंगे. विशेषकर बच्चे. ये अलग बात है कि बच्चों के लिए मुख्य आकर्षण आयोजन का कोई अन्य पहलू  हो सकता है. जैसे हाफ हॉलिडे या लड्डू.  तब भी ये कार्यक्रम स्कूलों में अवश्य होते हैं. (Education Teacher Transfer Satire)

शिक्षा विभाग को लगता है कि बड़ा आदमी वो तैयार नहीं करेंगे तो क्या आबकारी विभाग करेगा! उनके द्वारा लागू पाठ्यक्रम आदमी या इंसान बनाने का कार्य तो करता है किंतु बड़ा आदमी बनाने की टेक्नोलॉजी आज तक ईजाद नहीं हुई. अतः इसके लिए विभाग को प्रयासरत रहना होता है. प्रयासों के क्रम में उसकी दृष्टि सर्वप्रथम विभागीय कर्मचारी, अध्यापक, प्रधानाचार्य आदि पर पड़ती है पर दुर्भाग्य से वो वेतन, छुट्टी, प्रमोशन, तबादले और आपस की लड़ाई लड़ते हुए पहले ही देश के काम आ चुके होते हैं.

“हैलो, हैल्लो सर मैं भौर्सा सुगम, पूर्व दुर्गम इंटर कालेज से सहायक अध्यापक एलटी, के. के. पांडे बोल रहा हूँ. सर अगले माह मेरा रिटायरमेंट है, पूरा कैरियर दुर्गम में सेवा देते कटा है, अब तक पहले प्रमोशन को प्रतीक्षारत हूँ ..”

“हलो, हलो पांडे जी आपकी आवाज़ कट-कट कर आरी है. मैंने पहचाना नहीं.”

“सर दुर्गम में नेटवर्क की प्रॉब्लम रहती है, अभी मैं पेड़ पर चढ़ा हुआ हूँ. मैं कमला कांत हूँ सर आपके स्वागत समारोह में मंचित ‘नाटक जारी है’ में बच्चा गुरधनदास का रोल किया था. आपने मुझे कंबल प्रदान कर पुरस्कृत किया था और कहा था कि मैं बहुत तरक्क़ी करूंगा.”

“हाँ-हाँ याद आ गया, याद आ गया. तुम अगले महिने तीन-चार दिन की छुट्टी लेकर देहरादून आ जाओ. तुम्हारा केस दिखवाते हैं पर इसका प्रचार मत करना. हाँ, नैनीताल से दो किलो नमकीन उधार उठा लाना, भुगतान लौट कर करोगे.” (Education Teacher Transfer Satire)

जो स्वयं न कर पाए हों, दूसरों को उसे हासिल करने के लिए प्रेरित करना शिक्षा के टॉप उद्देश्यों में आता है. जब विभाग के महानिदेशक की आत्मा ख़ुद को आवाज़ लगाने से रोक नहीं पा रही होती, उसी पल दूरस्थ अवस्थित स्कूल में एक शिक्षक कुछ बीड़ा उठा लेता है. उसकी कर्तव्यनिष्ठता और विभाग की दूरदृष्टि अब  एकाकार होकर आने वाली पीढ़ी पर केंद्रित हो जाती है. पीढ़ी, जिसके सम्मुख छमाही-सालाना परीक्षा पास करने की चुनौती होती है. इस कारण वो थोड़ा-बहुत एक्स्ट्रा कॅरिकुलर करने में भी रुचि दिखाते हैं. इस भावना का फ़ायदा उठाते हुए एस यू पी डब्लु शिक्षक उनमें से चार-छह को राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाने हेतु चुन लेता है. जिनको आगे चलकर उसे डिबेट वगैरा में मदद करनी होती है. इस महत्वपूर्ण दायित्व को कंधोधार्य करते ही त्याग और तपस्या के शेष गुण शिक्षक के मस्तिष्क में घुस कर खलबली मचा देते हैं. अब कमी होती है मात्र एक कार्ययोजना की. वो तुरंत जयंती आदि आयोजनों की रूपरेखा बना कर प्रधानाचार्य के माध्यम से विभाग को प्रेषित कर देते हैं.

विभाग वर्ष भर के आयोजनों की तिथि के साथ ही बजट तय कर देता है. बजट में प्रधानाचार्य का भी दखल रहता है जिस कारण शिक्षक बेलगाम होकर गांधी या नेहरू बनाने का अटेम्प्ट नहीं करता बल्कि पत्रकार जैसा कुछ बनाने का प्रयत्न करता है. विभाग के लिए भी यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि कितने ‘सुपर’ बने, उसकी चिंता होती है आयोजन को समाचार पत्रों में मिले कॉलम. जिसके लिए बजट में प्रावधान और प्रधानाचार्य को फ़ोन किया होता है महानिदेशक ने. आख़िर यही कटिंग तो मंत्री के पास जाती है. कार्यक्रम सम्पन्न होते ही विभाग को ख़ुशी मिल जाती है. यह ख़ुशी मिलती चली जाती है जब आयोजन सालों-साल सफलतापूर्वक संपन्न होता जाता है. अख़बार वाले फ़ोटो सहित स्कूल की ख़बर छापते हैं हालांकि यह पता कभी नहीं चलता कि कितने बच्चे चाचा नेहरू या दादा कोंडके बने.

दूसरा पक्ष वो है जिनकी जयंती या पुण्यतिथि मनाई जाती है. उनमें कुछ उभयनिष्ठ खोजें तो वो स्कूल ही होता है. जिन महानुभावों का स्कूल-कालेज या शिक्षा का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध न हो शिक्षण संस्थानों में उनकी जयंती मनाये जाने में अराजक तत्वों द्वारा रायता फ़ैलाया जा सकता है. इस संभावना के मद्देनज़र ये नये आकांक्षी कुछ उटपटांग कर गुज़रते हैं. साथ ही अपने रसूख का इस्तेमाल कर वो उक्त वर्णित आयोजनों के मुख्य अतिथि बनते हैं. कार्यक्रम के दौरान वो टेंट हाउस से आई कुर्सी पर पसरे-पसरे सरस्वती वंदना और आशुभाषण इत्यादि प्रस्तुतियों के प्रभाव में उनींदे हो जाते हैं. कई तो खुली आँखें मेंटेन करते हुए खर्राटे भरते पाए जाते हैं. अपने भाषण पर बजने वाली संभावित तालियां ही उनका एकमात्र मोटिवेशन होती हैं. आख़िर वो उठते हैं, उनका भाषण होता है, स्काउट ताली बजती है और वो पुनः स्थापित हो जाते हैं. राष्ट्रगान की ख़ातिर एक बार फ़िर कुर्सी छोड़ टेढ़े-मेढ़े खड़े होते  हैं, तभी मीडिया उनका इंटरव्यू लेने आ जाता है. वो पुनः बैठ जाते हैं. (Education Teacher Transfer Satire)

“सर आप अपने व्यस्त कार्यक्रम से बच्चों के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं ?”

“देखिए निकालने का क्या है, समय तो बहुत छोटी चीज़ है, इच्छा हो तो आदमी कुछ भी निकाल सकता है..”

“जी, इसमें कितनी सच्चाई है कि बाल दिवस पर आप घर पर विशेष आयोजन करते हैं?”

“आपने बहुत अच्छा सवाल किया है..बाल दिवस का क्या है कि इसे नेहरू के नाम से जोड़कर एक ऐतिहासिक भूल की गई है, हम उस दिन बच्चों के बीच हनुमान चालीसा वितरित करवाते हैं.”

“आपको जो आईडिया आते हैं वो इतने अच्छे कैसे होते हैं ?”

“सच बताऊं आपको तो.. हमें बचपन से ही आईडिया देने का अभ्यास है. इतने लोग आईडिया लेने आते थे कि हमें स्कूल जाने का भी समय नहीं रहता था.”

“सर आप आज के दिन कोई प्रभावशाली संदेश देना चाहेंगे ?”

“देखिए ..आपका नाम भूल रहा हूँ..”

“जी, चप्लू सर !”

“देखिए चप्लू सर, हम कभी ऐसा कुछ नहीं देते जो  प्रभावशाली न हो. हम कहेंगे कि युवाओं को निश्चित रूप से ऐसे संदेशों से बचना चाहिए जो प्रभावशाली न हों. महत्वपूर्ण है कि आज अगर रात होती तब भी हम यही संदेश देते. थैंक्यू. (Education Teacher Transfer Satire)

चलते-चलते वो प्रधानाचार्य को स्कूलों में ऑटोग्राफ़ कल्चर की कमी उजागर करते हैं. द्वार पर खड़े अपने ड्राइवर को हाँक लगा कर पूछते हैं ‘चाय-नमकीन मिला कि नहीं?’ वो कहता है ‘कोई  नहीं सर !’ शिक्षक अपराध बोध से ग्रस्त नतमस्तक दिखते हैं.

 –उमेश तिवारी ‘विश्वास’

इसे भी पढ़ें: टीवी है ज़रूरी: उमेश तिवारी ‘विश्वास’ का व्यंग्य

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

1 day ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

1 day ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

5 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago