समाज

द्रोणागिरि के लोग आज भी क्यों भगवान हनुमान से नाराज हैं : तीस साल पुरानी रिपोर्ट

प्रकाश पुरोहित जयदीप द्वारा लिखा गया ये आलेख बहुत लोकप्रिय है. नब्बे के दशक में लिखे गये इस आलेख के बाद द्रोणागिरि बहुचर्चित हो गया था. दर्जनों वेबसाइट्स, पोर्टल्स और पत्रिकाओं में इस आलेख की पंक्तियां यथावत दोहरायी हुई देखी जा सकती हैं. मूल आलेख को पाठकों के सामने लाने का उद्देश्य ये है कि वे 30 साल पुरानी उच्च हिमालयी जनजीवन की तुलना आज से कर सकें साथ ही पत्रकारिता की चुनौतियों की भी. आज के दौर में जो पीढ़ी देख रही है कि एक क्लिक में कितनी आसानी से, कई पृष्ठों की सामग्री, फोटोग्रैफ्स-वीडियो सहित दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच जाती है, उसके लिए कल्पना करना भी मुश्किल होगा कि कभी ये सब हाथ से लिख कर डाक से भेजना होता था. हस्तलेख का भी अत्यंत महत्व होता था. पठनीय हस्तलेख न होने पर संपादक आपकी महत्वपूर्ण सामग्री को भी कूड़ेदान में डालने में संकोच नहीं करता था. द्रोणागिरि ट्रैक को वर्ष 2017 में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा ट्रैक ऑफ़ दि इयर घोषित किया गया था. इस मुकाम तक पहुँचने में जयदीप के इस आलेख का भी महत्वपूर्ण हाथ है. आजकल दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले रामायण सीरियल में द्रोणागिरि-संजीवनी प्रसंग के बाद चमोली जनपद के सीमांत विकास खण्ड जोशीमठ स्थित द्रोणागिरि फिर चर्चा में आ गया है. द्रोणागिरि गाँव-पर्वत-ट्रैक की जानकारी प्रदान करता, प्रकाश पुरोहित जयदीप का लिखा यह ऐतिहासिक आलेख सर्वथा पठनीय है और संग्रहणीय भी : देवेश जोशी
Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat

बड़ी चीज होती है – विश्वास. पर जब उस पर चोट पहुँचती है तो पीड़ा देने वाले को बख़्शा नहीं जाता है. फिर चाहे वो देवता या भगवान ही क्यों न हो. जी हाँ! उत्तराखण्ड के दुर्गम पर्वतों पर बसा एक गाँव ऐसा भी है जहाँ के लोग आज भी रामभक्त हनुमान से सख्त नाराज हैं. कारण कि हनुमान ने उन लोगों के आराध्य देव पर चोट पहुँचायी है और सरासर अहित किया है. यह आराध्य देव कोई और नहीं स्वयं साक्षात ‘पर्वत‘ ही है. जिसका नाम है – ‘द्रोणागिरि’.

सभी जानते हैं इस पर्वत में संजीवनी बूटी विद्यमान होने से हनुमान इसका एक भाग तोड़कर ले उड़े थे. इसी पुराण-प्रसिद्ध द्रोणागिरि पर्वत की छाँव में बसे हनुमान से नफरत करने वाले गाँव का नाम है – द्रोणागिरि.

गढ़वाल में बदरीनाथ धाम से 47 किमी पूर्व सीमांत क्षेत्र का प्रमुख नगर पड़ता है – जोशीमठ. ऋषिकेश से लगभग ढ़ाई सौ किमी दूर. बारहों महीने यात्री व पर्यटक यहाँ आते रहते हैं, देश-विदेश से. जोशीमठ से एक सड़क बदरीनाथ जाने वाली सड़क से कटकर उत्तर की ओर चली जाती है. यह सड़क तिब्बत की सीमा से सटी हुई नीति घाटी तक चले जाती है. इसी मार्ग पर जोशीमठ से 30 किमी की दूरी पर एक छोटी बस्ती है – जुम्मा. जुम्मा से पैदल 10 किमी की भयावह विकट चढ़ाई के बाद द्रोणागिरि गाँव के दर्शन होते हैं.

गाँव की ऊँचाई है 12000 फीट. यकीनन गढ़वाल में सबसे ऊँचाई वाला यह एक अकेला गाँव है. इस प्राचीन गाँव के दक्षिण-पूर्व में 23170 फीट ऊँचाई पर प्रसिद्ध द्रोणागिरि चोटी स्थित है.

इस गाँव के आसपास बर्फानी नदियां व झरने उछल-कूद मचाते रहते हैं. कहीं-कहीं अलसाये हुए से ग्लेशियर पसरे हुए हैं. भोजपत्र के सुन्दर वृक्षों के झुरमुट में ठण्डी हवा बहती रहती है. जड़ी-बूटियों, जंगली फूलों से हरी-भरी ऊँची पहाड़ी पर स्थित है यह अनूठा गाँव. साल के 5-6 माह यह गाँव बर्फ की मोटी तह से ढका रहता है. तब यहाँ के लोग नीचे गर्म घाटियों में रहते हैं जहाँ इनके शीतकालीन गाँव होते हैं.

मई में जब बर्फ हट जाती है तब ये लोग अपने ढोर-डंगर, माल-असबाब सहित इस निर्जन पड़े गाँव में पहुँच जाते हैं. यूं तो अब कई परिवार निचली घाटियों में स्थायी रूप से बस गए हैं फिर भी द्रोणागिरि गाँव पहुँचते हैं 45-50 परिवार. Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat

ये लोग ‘भोटिया’ कहलाते हैं. यह एक जनजाति है. सन 1967 से इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल कर दिया गया है. भोटिया जनजाति में भी एक उपजाति है – तोलछा. इनका आखिरी गाँव है – द्रोणागिरि. ये मंगोल मुखाकृति के होते हैं. इतिहासकारों ने इन्हें मंगोल जाति के मूल का माना है. सच्चे मायनों में ये पराक्रमी पर्वत-पुत्र हैं. शौर्य, साहस और बहादुरी इन्हें विरासत में मिली है. ये प्राचीन समय से अत्यंत विकट हिमालयी दर्रों से गुजरकर तिब्बत के साथ व्यापार करते थे. यहाँ से वे गुड़, तमाखू, चावल, कपड़ा, बर्तन, तिब्बत ले जाकर उनकी जरूरत पूरा करते थे और तिब्बत से नमक, सुहागा, ऊन, याक की पूँछ, सोना व भेड़-बकरियों को लाते थे.

सीमा-व्यापार के कारण ये लोग तिब्बत के निकट बीहड़ पर्वत व घाटियों में बस गये. गढ़वाल व कुमाऊँ के सीमान्त क्षेत्र में 5000 मील के दायरे में बसे हैं – भोटिया जनजाति के लोग. पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा जनपद में ये लोग शौका व जोहारी उपनाम से जाने जाते हैं तो चमोली जनपद में  मार्छा व तोलछा उपनाम से. उत्तरकाशी जनपद में इन्हें जाड़ कहा जाता है. मुख्यतः यह व्यापारिक कौम रही है.

सदियों से चल रहे इस सीमा-व्यापार को करारा झटका लगा 1962 में. जब विस्तारवादी चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया. फिर तो यह व्यापार हमेशा-हमेशा के लिए बन्द हो गया. इस भारी आघात से भोटिया अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी. पर इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी. वे मेहनती थे. अपने ही देश में ऊन का कारोबार फैलाया, खेती शुरू की, कुटीर धंधे चलाये, व्यापार किया. फिर सरकारी सुविधाओं के कारण ये लोग समृद्ध होने लगे.

द्रोणागिरि से आगे नीति घाटी में दर्जनों गाँव आज भी आबाद हैं. यह बात दीगर है कि अब ये गाँव धीरे-धीरे खाली होते जा रहे हैं क्योंकि यहाँ आवागमन व अन्य सुविधाओं की कमी की तकलीफें बनी हुई हैं. साल के 4-6 महीने यहाँ बर्फ रहती है. कड़ाके की ठण्ड रहती है. नयी पीढ़ी के लोग तो अब निचली घाटियों में स्थायी तौर पर रहने लगे हैं. पुरानी पीढ़ी को अपने इस सीमांत क्षेत्र से बेहद लगाव, प्यार व अपनत्व है. उन्होंने ही इस सीमांत क्षेत्र को आबाद किया हुआ है.

नीति घाटी स्थित द्रोणागिरि पर्वत के बारे में सर्वविदित मान्यता है कि हनुमान जी इसी पर्वत से संजीवनी-बूटी ले गये थे. पौराणिक प्रसंग देखें तो लक्ष्मण जी को जब शक्ति लगती है व वैद्यराज की सलाह पर हनुमान संजीवनी-बूटी लेने हिमालय की ओर उड़ जाते हैं.

इस बारे में द्रोणागिरि गाँव में एक दूसरी ही मान्यता प्रचलित है.  बताते हैं कि जब हनुमान जड़ी-बूटी लेने के लिए इस गाँव में पहुँचे तो वे भ्रम में पड़ गये. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी-बूटी हो सकती है. तब इस गाँव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखायी दी. उन्होंने पूछा कि संजीवनी-बूटी किस पर्वत पर होगी तो वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया. हनुमान उड़कर पर्वत पर पहुँच तो गये पर बूटी कहाँ पर होगी यह पता न कर सके. वे फिर गाँव में उतरे व वृद्धा से बूटी वाली जगह बताने के बारे में अनुनय-विनय करने लगे.

जब वृद्धा ने कहा, ठीक है, मैं तुम्हें बताती हूँ तब हनुमानजी वृद्धा को हथेली में बैठाकर ले गये. वृद्धा ने बूटी वाला पर्वत दिखाया तो हनुमान ने उस पर्वत के काफी बड़े हिस्से को तोड़ लिया व वृद्धा को गाँव में छोड़कर वे पर्वतखण्ड को लेकर उड़ते बने. Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat

फिर तो द्रोणागिरि गाँव वाले हमेशा के लिए हनुमान से नाराज हो गए. बताते हैं जिस वृद्ध महिला ने हनुमान की मदद की थी उसको भला-बुरा कहकर गाँव से सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था. आज भी इस गाँव में किसी महिला का बच्चा होता है तो प्रसव के दौरान उस स्त्री को गाँव से अलग काफी दूर नदी के किनारे वाले स्थान में रखा जाता है. शिशु जनने के बाद ही वह गाँव में आ सकती है. इस दौरान उसका पति, सास व अन्य परिजन उसकी मदद करते हैं. नदी किनारे झोपड़ी या डेरा बनाया जाता है. इतनी पवित्रता रखी गयी है इस गाँव में.

इस गाँव का आराध्य देवता है तो पर्वत ही. लोग तभी तो हनुमान से नाराज हो गए जब उनके देवता के एक अंश को तोड़कर वह ले गए और देवता को चोट पहुँचायी. आज भी इस पर्वत का एक हिस्सा टूटा हुआ दिखता है. इस गाँव में आज भी पूजा होती है तो द्रोणागिरि पर्वत की.

इस पर्वत के प्रति इन लोगों में अटूट श्रद्धा-भक्ति है. श्रद्धा का इससे बड़ा क्या उदाहरण होगा कि गाँव में किसी की मृत्यु हो जाए तो ये लोग मृतक का दाह-संस्कार नहीं करते बल्कि उसे जमीन के अंदर गाड़ देते हैं. ये लोग मानते हैं कि मृतक को जलाने से पर्वत देवता पर धुआँ लग जायेगा व पवित्रता नष्ट हो जायेगी. पर्वत देवता के सहारे ही ये लोग 12000 फीट ऊँचाई पर कठोर विषम परिस्थितियों के बीच हँसते-गाते रह पा रहे हैं. कितने ही अंधड़-तूफान आये, ग्लेशियर टूट कर गिरे पर लोग हमेशा सुरक्षित रहे. कीाी कोई खतरा आया भी तो ये लोग पर्वत की पूजा में लीन हो गये.

आज भी ये पर्वत-पूजा करते हैं. साल में एक दिन भव्य पर्वत-पूजन त्योहार मनाया जाता है. उस दिन देवनृत्य होता है. देवता रोता भी है. अनाज का प्रसाद बँटता है. लोग नये-नये कपड़े पहनते हैं. हर घर के दरवाजे पर जंगली फूलों की कतार सजायी जाती है. अच्छा-खास मेला जुट जाता है. मेले का यह दिन गाँव के विद्वान-बुजुर्ग लगन के अनुसार अगस्त-सितम्बर माह के बीच में निकालते हैं.

पर्वत देवता का अवतारी प्रतिनिधि जो व्यक्ति होता है उसे पसवा कहते हैं. इस व्यक्ति को ही पर्वत देवता मान लिया जाता है. विशिष्ट पूजा के बाद जब पसवा काँपने लगता है तब समझा जाता है उसमें देवअंश ने प्रवेश कर लिया है. फिर पसवा नाचने लगता है. पसवा भोजपत्र की छालों को शरीर पर लपेटे रहता है. फिर वह अपना बाँया हाथ पीठ की तरफ मोड़कर सिसकता है. इससे यह भाव उजागर होता है कि हनुमान ने मेरा एक हिस्सा तोड़ लिया है. उपस्थित लोगों की आँखें नम हो जाती हैं. फिर पर्वत देवता शांत हो जाते हैं. अंत में पर्वत देवता सबको आशीर्वाद देता हुआ कठिन परिस्थितियों में उनकी रक्षा का वचन देता है.

देखने वाली बात ये है कि इस दिन इस पूजा में लोग महिलाओं के हाथ का दिया हुआ नहीं खाते हैं. न महिलायें इस पूजा में मुखर होकर भाग लेती हैं क्योंकि प्राचीन काल में इसी गाँव की वृद्ध महिला ने हनुमान की मदद की थी. Dronagiri Village Mountain Sanjeevni Parvat

प्रकाश पुरोहित जयदीप
यायावर-लेखक-चित्रकार जयदीप जिनकी प्रेरणा थी पहाड़ की घसेरियां

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago