कोरोना महामारी के बीच बुलंद हौसलों की मिसाल बनी उत्तराखंड की महिलायें

भारत समेत पूरी दुनिया जब कोरोना महामारी के असीमित संकट से जूझ रही है और लॉक डाउन ने सारे कामकाज पर ताला लगा दिया है, ऐसे संकट काल में भी पहाड़ी महिलाओं के कदम निरंतर बढ़ रहे हैं. उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की पहाड़ी महिलाएं स्वयं सहायता समूह की मदद से न केवल अचार, मसाला, बांस के बने सामान और कालीन तैयार कर रही हैं बल्कि इससे होने वाली आय से परिवार की मदद कर आत्मनिर्भर भी बन रही हैं. उनके उत्साह और आत्मविश्वास को देखते हुए कई बैंकों ने लोन देने का प्रस्ताव भी रखा है. यह महिलाएं कोरोना संकट काल में भी अपने काम को रुकने नहीं दे रही हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह से पालन करते हुए कार्यों को अंजाम दे रही हैं. इस तरह जहां वह परिवार की आमदनी को बढ़ाने में मदद कर रही हैं, वहीं महाजन और साहूकारों के चुंगल से भी आजाद हो रही हैं.
(Self Helping Group in Uttarakhand)

केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी इंडिया इन फिगर्स 2018 की रिपोर्ट के अनुसार आज भी देश की 22 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है. निरक्षर और योजनाओं की समुचित जानकारियों के अभाव में देश के ग्रामीण लघु, सीमान्त कृषक, भूमिहीन मजदूर, शिल्पकार और दिहाड़ी मजदूर अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बैंकों से अधिक महाजनों और साहूकारों पर निर्भर रहते है. यह आवश्यकताएं छोटी-छोटी और अल्पकालीन परन्तु असमय हुआ करती हैं. ऐसी परिस्थतियों में बैंक भी इस वर्ग के ग्राहकों से व्यवहार करने में कठिनाई, लेनदेन की लागत व जोखिम के मद्देनजर किसी प्रकार का संपर्क करने में संकोच करता है.

इसके अलावा बैंक की ओर से किश्त अदायगी का मिलने वाला नोटिस इन ग्रामीणों के लिए अत्यंत कष्टकारी होता है. हालांकि ऐसा केवल उचित जानकारियों के अभाव और संवाद की कमी के कारण होता है. लेकिन इस प्रक्रिया ने भी कई बार निरक्षर गांव वालों को बैंक की बजाय महाजन और साहूकारों की दहलीज पर पहुँचाया है. आर्थिक तंगी और बैंक से मिलने वाली नोटिस से निबटने की प्रक्रिया ने ही लोगों को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूह की ओर प्रेरित किया. जो आगे चलकर छोटी-छोटी बचतों से एकत्र हुई धनराशि का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सदुपयोग करते हुए स्वयं ही बैंकों की तरह काम करने लगे. इस प्रकार समूहों की सफलता की अवधारणा गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे ग्रामीण समाज विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाओं के लिए विकास का मूलमंत्र बन गया.
(Self Helping Group in Uttarakhand)

आज देश का हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के स्वयं सहायता समूह से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है. एक आंकड़ों के अनुसार इस वक्त देश में करीब 60 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं. जिनसे तकरीबन छह करोड़ 73 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इनमें से करीब चार हजार स्वयं सहायता समूह उत्तराखण्ड में सक्रिय हैं. यह समूह राज्य के लगभग सभी जिलों के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं. जिन्हें कई बड़ी संस्थाएं सपोर्ट कर रही हैं. हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण संतुलन पर अग्रणी सेन्ट्रल हिमालयन एनवायरनमेंट एसोसिएशन, नैनीताल द्वारा वर्ष 2018 में सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय के परियोजनान्तर्गत अल्मोड़ा और नैनीताल जनपद में 33 महिला स्वयं सहायता समूहों को अंगीकृत किया गया. जिससे करीब 345 महिलाएं जुड़ी हुई हैं. जिन्होंने परियोजना के उपरान्त 4,75,000/- रूपए की बचत की है. यह अपनी बचत राशि से न केवल समूह बल्कि उत्पादकता से जुड़े कार्य अथवा घरेलू आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए गांव के लोगों को भी ऋण सहायता देती हैं.

तोली गांव की दीपा देवी बताती हैं कि स्वयं सहायता समूहों से जुड़ने से एक बड़ा फायदा ये भी होता है कि उनकी बैठकों में भाग लेने से गांव में चल रही सरकारी और गैर-सरकारी सभी योजनाओं की जानकारियां एक ही जगह एक समय में आसानी से मिल जाती है. ग्राम तोली के पार्वती स्वयं सहायता समूह की सदस्या पार्वती देवी समूह से जुड़ने से पूर्व अपने परिवार की आर्थिक स्थिति के बारे में बताती हैं कि पहले उन्हें अपनी और बच्चों की कई इच्छाओं और खुशियों को रुपयों की कमी के कारण मारना पड़ता था. उनका परिवार जो कमाता था, सब घरेलू  कार्यों में ही खर्च हो जाया करता था. बचत का कोई सवाल ही नहीं था. घर की ऐसी आर्थिक हालत पर कई बार उन्हें पीड़ा होती थी, लेकिन इसका उनके पास कोई ठोस उपाय नहीं था. परन्तु समूह से जुड़ने के बाद वह न केवल एक हुनर सीख गई हैं बल्कि इससे होने वाली आय से वह बचत करने में भी सफल हो रही हैं. इस बचत से वह अपने बच्चों के लिए खुशियां खरीदने में सक्षम हो गई हैं. उनकी इस मजबूत आर्थिक स्थिति के बाद आसपास की अन्य कई महिलाएंभी अब इस स्वयं सहायता समूह से जुड़ने लगी हैं. पार्वती देवी कहती हैं कि यदि गांव का विकास और घरातल पर कार्य को सफल करवाया जाना है तो स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से कार्यो को करवाया जाना चाहिए, क्योंकि वर्त्तमान में यही एक मात्र संस्था है जिससे ग्रामीण आसानी से जुड़ जाते हैं.
(Self Helping Group in Uttarakhand)

सरकार द्वारा समूहों के संगठित रूप को देखते हुए अब सीधे इन्हें बैंक से जोड़े जाने पर विचार किया जाने लगा है. हालांकि देश में यह प्रक्रिया काफी पहले से मौजूद है. लेकिन अब बैंक के साथ समूहों के दस्तावेजीकरण को सरल करते हुए स्वयं सहायता समूहों का बैंकों के साथ लिंकेज करवाया गया है. जिसमें समूहों को बैंक से ऋण दिये जाने का प्रावधान शुरू किया गया है. वर्त्तमान में कई बैंक समूहों को उनकी बचत धनराशि का चार गुना ऋण दे रही है. इससे समूह को दोहरा लाभ प्राप्त हो रहा है. एक ओर जहाँ समूह सदस्यों को कम ब्याज द्वारा अपनी बचत राशि पर आन्तरिक ऋण दे सकता है वहीं दूसरी ओर यदि आवश्यकता अधिक की हो तो बैंक से चार गुना ऋण ले कर अपने कार्यो को संचालित कर सकता है.  

वास्तव में स्वयं सहायता समूहों ने कामयाबी की ऐसी मिसाल कायम की है कि अब किसी भी सरकारी, गैर सरकारी संस्था या विभाग को यदि गांव में किसी परियोजना का संचालन करवाना होता है, तो वह सबसे पहले समूहों की ओर रूख करते हैं. उत्तराखण्ड की पर्वतीय महिलाओं को सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूहों का बहुत बड़ा योगदान है. बचत के माध्यम से वह न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि समाज में भी अपना सशक्त स्थान बनाने में सफल हो रही हैं. इतना ही नहीं वह अपने अस्तित्व को बचाने में भी सक्षम हो पायी हैं, जिसकी पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को अत्यन्त आवश्यकता भी है. देखा जाए तो स्वयं सहायता समूह ग्राम के निर्धन वर्ग के लिए घरेलू बैंक साबित हुआ है और सच में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के उद्यमियों को ऐसे ही बैंकों की आवश्यकता भी है जिसमें ऋण उनकी आवश्यकता के अनुरूप् व कम ब्याज देय हो, जो उनकी इज्जत भी करें और उन्हें आसानी से ऋण भी प्रदान करे.
(Self Helping Group in Uttarakhand)

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नैनीताल के नरेंद्र सिंह बिष्ट द्वारा ‘संजॉय घोष मीडिया फैलोशिप 2019’ के तहत लिखा गया यह लेख हमें चरखा फीचर्स द्वारा प्राप्त हुआ है

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Girish Lohani

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