Featured

पीछे छूटता पहाड़

आम लोगों के संघर्ष, आंदोलन और उनकी शहादत से जन्मा ‘उत्तराखंड’ हमारे देश के राजनैतिक मानचित्र में एक राज्य के रुप में उभरा तो जरुर है परन्तु सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से विकसित राज्य का सपना पाले आम जन के लिये राज्य निर्माण की सार्थकता उस स्तर पर कदापि नहीं दिखलायी पड़ रही़. Column by Chandrashekhar Tewari

पहाड़ के भूगोल पर इस राज्य की नींव रखे जाने के बावजूद भी गांवों के लगातार खाली होते रहने, परम्परागत खेती बाड़ी, बागवानी व कुटीर धन्धों के हाशिये पर चले जाने और पहाड़ से बाहर मैदानी भागों में बसने की प्रवृति कुछ ऐसे बड़े सवाल हैं जो निश्चित रुप से हर किसी को उद्वेलित करने में सक्षम हैं. Column by Chandrashekhar Tewari

राज्य बनने के बाद देखें तो सतत विकास के अर्थों में पहाड़ कहीं दूर, बहुत ही पीछे छूट गया है. यह महत्वपूर्ण सवाल उठना लाजिमी है कि पहाड़ के नाम पर बनाये गये इस राज्य़ को आखिर हासिल क्या हुआ? पहाड़ को उसके भूगोल के मुताबिक शिक्षा, स्वास्थ्य व पानी जैसी मूलभूत अवस्थापना सुविधाओं से संवारने और उनकी गुणवत्ता को बढ़ाने के प्रयास राज्य बनने के बाद क्यों नही किये गये? 

जगजाहिर है कि पहाड़ के गांवों की अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से खेती, पशुपालन ,बागवानी पर टिकी है. विषम भौगोलिक परिवेश और कमजोर उत्पादन तंत्र भले ही यहां की खेती बाड़ी के विकास में बाधक माने जाते हों पर यहां बहुत से ऐसे काश्तकारों के उदाहरण भी मौजूद हैं जिन्होंने अपने दम पर बंजर जमीन पर स्थानीय शाक-सब्जी, फल-फूल, मसालों व जड़ी-बूटी की फसल उगाने में सफलता पाई है.

यही नहीं तमाम ऐसे उद्यमी भी हैं जिन्होंने अल्प संसाधनों से ही मत्स्यपालन, पशुपालन, मौनपालन और फल व खाद्य प्रसंस्करण के जरिये पहाड़ में आय व रोजगार सृजन के द्वार खोले हैं. जैविक खाद्य उत्पाद, बारहनाजा फसलों के उत्पादन व चकबन्दी जैसे अन्य प्रयोग भी यहां सफल रहे हैं. उत्पादकता व जीविका से सीधे जुड़े इस तरह के माॅडलों से पहाड़ में सुदृढ़ अर्थव्यवस्था की प्रबल सम्भावनाएं बेशक बन सकती हैं.

पर्यावरण के लिहाज से राज्य का पहाड़ी भाग बहुत नाजुक है. भूस्खलन,भूधंसाव बाढ़, बादल फटने़ व भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कहर से यह इलाका अछूता नहीं रहा है. पिछले कई सालों से पहाड़ों में भीषण प्राकृतिक आपदा से तबाही का जो मंजर दिख रहा उससे सभी परिचित हैं.

बावजूद इसके यहां मीलों लम्बी सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण, ऑल वेदर रोड निर्माण, रेल लाइन परियोजना, नदी-गाड़-गधेरों के किनारे और संवेदनशील स्थानों से किये जाने वाले अनियंत्रित खनन कार्य तथा उच्च हिमालयी क्षेत्रों में  तीर्थाटन, पर्यटन के नाम पर हो रहे निर्माण कार्य तथा इस क्षेत्र में चोरी छिपे हो रहे दुर्लभ पादप प्रजातियों के दोहन व जैव विविधता पर छा रहे संकट आदि ऐसे महत्वपूर्ण सवाल हैं जिन पर सोचे जाने के साथ ही बेहद सख्ती से नियंत्रण करने की आवश्यकता समझी जा सकती है.

पारिस्थितिकी तंत्र में बेहद मददगार बांज व अन्य चौड़ी पत्तीदार वृक्षों के रोपण व जल संरक्षण के लिये चाल-खाल निर्माण को अहमियत देकर योजनाओं में शामिल करने व स्थानीय संसाधनों का उपयोग और उसका संरक्षण ग्रामीणों के हित में करने जैसे सार्थक काम महत्वपूर्ण समझे जाने चाहिए.

पहाड़ में जगह-जगह बंद होते स्कूल, खेती-बाड़ी व लोगों के बीच जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक, बढ़ती शराबखोरी, डॉक्टर व दवा विहीन अस्पताल, जमीनों की खरीद फरोख्त, बड़ी बांध परियोजनाओं व आल वेदर रोड से आ रही दिक्कतों, सिडकुल के तहत रोजगार की अव्यवस्था व अन्य भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को आमजन अपनी नियति मानने को मजबूर हो रहे हैं.

हांलाकि समय-समय पर सरकारों द्वारा पहाड़ में स्कूल, स्वास्थ्य, बिजली, पानी,सड़क और संचार जैसी जन सुविधाओं को उपलब्ध कराने के प्रयास जरुर किए गए हैं और तुलनात्मक तौर पर पहले से इनके आंकड़ों में वृद्धि भी दिखाई देती है परन्तु यथार्थ में गुणवत्ता में कमी,पलायन, और सरकारी अधिकारियों व कार्मिकों के पहाड़ में सेवा देने से कतराने जैसी समस्याएं अभी तक जस की तस है.

यह बात महत्वपूर्ण होगी कि पहाड़ के भौगोलिक परिवेश के अनुरुप ही नियोजनकारों, नीति निर्धारकों व प्रशासकों को महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी. इस दिशा में कृषि, वन, पर्यावरण, प्रौद्यौगिकी तथा भू-विज्ञान से जुडे़ संस्थानों व विश्वविद्यालयों का सहयोग लिया जा सकता है. बहरहाल जिन आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के साथ इस राज्य की परिकल्पना की गई थी उनके लिए अभी भी ईमानदारी से बहुत कुछ करना शेष है.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

चंद्रशेखर तिवारी. पहाड़ की लोककला संस्कृति और समाज के अध्येता और लेखक चंद्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, 21,परेड ग्राउण्ड ,देहरादून में रिसर्च एसोसियेट के पद पर कार्यरत हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

10 hours ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

13 hours ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

5 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

7 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago