दादी तू ये बता कि शिवजी भगबान ओ दूर बरफ़ वाले पहाड़ में क्यों रहते हैं.उनके पास हमारे जैसा घर क्यों नहीं है. तू तो कहती है भगवान सब कुछ कर देता है. सबको शिवजी ही देते हैं. अपने लिए तो उसने एक घर भी नहीं बना सका. पार्वती, गणेश नंदी सब उतने जाड़े में उडियार में कैसे रहते होंगे बिचारे. ऐसा होता है कोई भगवान जो अपने लिए घर ही ना बना सक रहा है.
दादी ने मेरी पीठ में जोर से एक फ़टाक मारी. चुप छोरी ऐसे मत बोल. गिच्ची बंद कर. ऐसे बोलते हैं लोग भगवान के लिए. भगवान गुस्सा हो जायेगा. तब तक छोटी बहन रीता बोली, हाँ दादी ये भगवान की चुगली खा रही है. इसके मुँह में कोढ़ हो जायेगा. मैंने जोर से छोटी बहन के बाल खींचे चुप तू होगी कोढी.
दादी ने मेरे हाथ से उसके बाल छुड़ाए और बोली चुप हो जाओ दोनों. अगर झगड़ा किया तो कथा नहीं लगाउंगी. हम दोनों को दादी ने अपने दायें-बाएं लिटा दिया.
थोड़ी शांति होने पर मैंने पूछा दादी तू ये बता कि कोढ़ क्या होता है?
दादी ने फिर मेरे सिर में एक फटाक मारी चुप लबरा छोरी. जब देखो तब इसकी लबर लबर जुबान चलती रहती है.
जादा न बोल तू कथा लगा, चुप रहने के बदले मैंने जिद की.
तो सुनो बाबा आज शिवजी भगवान की कथा ही सुनो.
एक दिन क्या हुआ पार्वती माता का सुनसान कैलाश पर्वत में मन ऊबने लगा. वे शिवजी से बोलीं, तुम अपने आप तो रोज तीनों लोक में घूमने चले जाते हो. गणेश अपने मूसे के साथ इस नंदी बैल को लेकर दिन भर जाने कहाँ-कहाँ घूमते रहता है. एक मैं ही अकेली घर में पडी रहती हूँ. अब से मैं भी तुम्हारे साथ तीनों लोक घूमने जाऊँगी.
दादी ये तीनो लोक क्या होता है? मैं कथा रस के बीच में कूदी. रीता ने दादी की पीठ पीछे से हाथ बढ़ा कर मेरे हाथ में जोर से चुंगनी (नोचना) दी. चुप साली! कथा सुनने दे. इधर से भी तीर तलवार छूटते पर दादी ने बीच बचाव किया.
अरेरे… कथा लगानी बंद करूँ क्या.
न न न… तू लगा तो… हम दोनों ने अपने मुँह में ऊँगली रखकर ये जताया कि अब दोनों चुप हो गए.
हाँ तो तीन लोक हुए अगास लोक,पताल लोक अर जहाँ हम रहते हैं वो मृत्यु लोक.
पर आकाश में तो खाली बादल, सूरज ,चन्दा मामा और तारे रहते है. वही जिन्हें तू गैणा कहती है.
और इस बात पर हम दोनों खी खी करके हंसने लगे.
हाँ, त बाबा तेरे बूढ़े दादा जी का नाम था न फलाने. तभी तो मै गैणा कहती हूँ. रिवाज है कि अपने जेठ,ससुर का नाम ब्वारियां कभी नहीं लेती उनकी उमर घटती है बल.
अच्छा तो बूढ़े दादा जी का नाम तारा था.
पूरा बोल छोरी दत्त भी, दादी ने बात पूरी की.
सूरज भगवान, जून अर गैणो के घर बच्चे भी तो रहते होंगे वहां आकाश में. दीखता कुछ नहीं है न. हमने खुद ही बात पूरी की.
अर पताल लोक में पानी रहता है. उसमे कई फणों वाला शेषनाग अपने पूरे कुटुंब के साथ रहता है. तुम कथा आगे सुनो.
त पार्वती अपनी जिद पर अडी रही.अब शिवजी बेचारा क्या करता. जनानी की जिद के आगे हार गया. चले दोनों झणे.
अगास के रास्ते. भगवान ही हुए. उनके लिए रास्तों की क्या कमी. सारे बादल बिछ गए और बन गया रास्ता. ऊपर से तीनों लोक दिखाई दे रहे थे. अब भगवान को तो तीनो लोकों की रक्षा करनी होती है.
फरर फरर हवा चल रही थी. कहीं फूल खिले थे तो कहीं एकदम सूखी धरती माता. कुछ लोग बने ठने रंग बिरंगे कपडे पहने बड़े-बड़े घरों में बावन व्यंजन खा रहे थे. कुछ लोग खेतों में काम करते पसीने से भीगे थे. कुछ लोग लूले, लंगड़े, अंधे, बीमार बिना घरबार भूख से तड़फ़ रहे थे.
कहीं नदियां पानी से लबालब भरी थी, तो कहीं पानी की एक एक बूँद के लिए लोग, पशु, पक्षी तड़फ़ रहे थे. ये सब देख कर पार्वती रोने लगी. उसका मन दया से भर गया. वो शिवजी से बोली तुम कैसे भगवान हो. किसी को इतना दे दिया कि वो खा नहीं सक रहा है और कोई दाने-दाने को तरस रहा है.
देखो न जो सुखी है वो भी कह रहा है हे भगवान! जो दुखी है वो भी हे भगवान! हे भगवान! बोल रहा है. तुम्हें दया नहीं आती सभी लोग तो तुम्हारे भगत हैं.
शिवजी बोला तू समझती जानती तो कुछ है नहीं. इसीलिये तो मैं तुझे साथ में नहीं लाता. इनमें से बहुत सारे लोगों के कर्म ही ऐसे हैं.
पार्वती बोली तुम बेकार की बात मत करो. भगवान तो सबका भला करता है. बीमार, भूखा, नंगा, बेघर कौन रहना चाहेगा.
शिवजी गुस्सा हो कर बोले. तू देखना चाहती है तो खुद ही देख ले. उन्होंने एक साधारण आदमी का रूप धरा और चल दिए मृत्यु लोक. एक ऐसे घर के आगे खड़े हो गए जो बहुत टूटा हुआ था. घर के आगे बैठे लोगो से हाल चाल पूछने लगे.
उनमें से एक आदमी बोला हम गरीबों के हाल-चाल क्या होंगे. हमसे तो भगवान भी रूसा गया. शिवजी बोले, अरे नहीं, भगवान सब जानता है. मुझे भगवान ने तुम्हारी मदद के लिए भेजा है.
बताओ तुम्हे क्या मदद चाहिए. भेष बदले शिवजी बोले.
न घर है, न खाना,कपडे सारे फट गए. सब एक साथ बोले.
शिवजी बोले तुम सब ऐसा करो कुछ मेरे साथ जंगल चलो. वहां से घर बनाने के लिए मिट्टी, पत्थर, लकड़ी सब मिल कर सार लेंगे और घर की मरम्मत कर देंगे. कुछ लोग वहां चले जाओ जहाँ पर खेतों में फसल की कटाई हो रही है. घर बनाने का सामन भी आ जायेगा और कुछ खाने पीने के लिए अनाज भी मिल जायेगा.
वहां पर बैठे सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे. एक बोला तुझे दिखाई नहीं देता हम सब कई दिनों से भूखे हैं. अगर तू मदद के लिए आया है तो ये काम तुझे करने चाहिए. शिवजी ने सोचा बात तो सच्ची है. भूखे हैं बिचारे. वो जंगल गए और बहुत सारी मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ला कर उन गरीबों के घरों के आगे ढेर लगा दी.
जहाँ फसलें कट रही थी वहां पर काम करके धान का ढेर ले कर आ गए. लोग बैठे ही रहे. अब शिवजी बोले अनाज भी आ गया. घर बनाने का सामन भी आ गया. वहां पर बैठा एक कमजोर सा आदमी फिर बोला धान तो तू ले आया पर इसे कूटेगा कौन. हमारी ताक़त तो भूख ने ख़त्म कर दी.
जब भगवान ने तुझे मदद के लिए भेजा है तो पूरी मदद कर. चल ज़रा धान कूट दे. शिवजी ने धान कूट दिया और बोले अब तुम लोग अपना काम करके रखना. मैं जल्दी ही दुबारा आऊंगा.
पार्वती ये देख कर बहुत खुश हो गयी बोली भगवान आज तुमने सच्ची में भगवान होने का काम किया है. दोनों खुशी से कैलाश अपने घर आ गए. कुछ दिनों बाद पार्वती फिर बोली. चलो आज तुम्हारे साथ मैं भी चलती हूँ. अब तो लोग सब सुखी होंगे. उनको देख आएं.
शिवजी मुल-मुल हंसे और बोले चल तू आज देख ही ले अपनी आँखों से. दोनों झणे घूमते-घामते फिर उसी गांव में पंहुचे. पार्वती क्या देखती है कि जो सामान शिवजी लाये थे उसकी जहां का तंहा छट्टी-बट्टी लगी है. जो धान शिवजी ने कूटा वो तो उन्होंने खा लिया बाकी बिना कुटे वैसे ही बिखरा है. शिवजी मुल-मुल वैसे ही हँसते रहे. उनको हँसते देख पार्वती को बहुत गुस्सा आया.
उसने? साधारण महिला का भेष धरा और पंहुच गयी उसी गाँव में. लोगों ने पुछा तू कौन? पार्वती बोली भगवान ने मुझे तुम्हारी मदद के लिए भेजा है. लोग खूब हंसने लगे. बोले एक पहले भी आया था भगवन का दूत, आज तू आ गयी. जब उसे भगवान ने भेजा तो पूरा काम करके क्यों नहीं गया. जो उसने किया वो तो हम भी कर सकते हैं.
अब तू दूती क्या फरकाने आई है. या तू भी उपदेश देकर चली जायेगी. पार्वती बोली तुम सब निकम्मे हो. तुम्हारी मदद भगवान भी नहीं कर सकता. और चल दी.
चलते चलते पार्वती को कराहने और रोने की आवाज सुनाई दी. वो रुक गयी और मृत्यु लोक में रोने, कराहने वाले व्यक्ति को ढूँढने लगी. देखती क्या है कि एक आदमी के दोनों हाथ-पैर रोग से गले हुए हैं. पीप बाह रहा है. घावों पर मक्खियाँ भिन-भिन कर रही हैं. उसने शिवजी को रोका. वो देखो बिचारा रोग का मारा उसकी मदद कर दो.
शिवजी बोले तू बोलती है तो कर देता हूँ. शिवजी रोगी को पकड़ कर लाये और पहाड़ी से बहते गदेरे में पानी से उसके सारे घाव साफ़ कर दिए. बण से जड़ी-बूटी पीस कर उसके घावों पर लगा दी.
रोगी बोला कौन है रे तू, भगवान ने तुझे मेरी मदद के लिए भेजा. शिवजी बोले मैं भगवान का दूत हूँ. अब तू इस गदेरे में रोज नहाना, अपने घाव धोना. और जड़ी-बूटी पीस कर घावों पर लगाना. ठीक हो जाओगे. और अंतर्ध्यान हो गए.
दो चार दिनों के बाद पार्वती बोली भगवान चलो उस बीमार को देख आते हैं. शिवजी ने बहुत आनाकानी के पर पार्वती बिल्कुल नहीं मानी. बोली जब मदद करनी है तो पूरी करो. अब बिचारा भगवान, घर गृहस्थी तो उसने भी चलानी ही थी. चल दिया पार्वती के साथ.
देखते क्या हैं वो रोगी तो एकदम चमचम कर रहा था. रोग, घाव सब ख़त्म. मस्त हो के एक बड़ी चट्टान के ऊपर घाम ताप रहा था. पार्वती ये देख के बहुत खुश हो गयी. उसके पास जा कर बोली अब बिकुल ठीक हो भाई. आदमी बोला हाँ बहन रोग तो ठीक हो गया पर खाने रहने की परेशानी है. लोग अभी भी कोढ़ी बोल के मुझ से छूत करते हैं. बीमारी के कारण बहुत दिनों से कोई काम भी नहीं किया, लोग दया करके दे देते थे. अब दिक्कत हो गयी.
भगवान चाहेगा तो सब ठीक होगा तुम चिंता मत करो. पार्वती उस आदमी को दिलासा दे आई.
भगवान तुम हर बार मेरी बात मानते बस इस बार और मान लो इस बिचारे के लिए कोई उपाय कर दो. पार्वती ने शिवजी की चिरौरी की.
शिवजी मुस्कराते हुए बोले तुमने कहा है तो जरूर करूँगा. उन्होंने बहुत सारे गहने, सोना, चांदी की एक फंची (पोटली) बनाई और रास्ते के बीच में रख दी जिधर से वो आदमी जा रहा था. फंची देख के पार्वती ने चैन की साँस ली, चलो अब बिचारे का भला हो गया.
वो आदमी अपनी धुन में चलता जा रहा था. अचानक उसके मन में आया की देखता हूँ अंधे कैसे चलते हैं.
उसने आँखे बंद की और जपके लगाता चलने लगा. अब आँखें तो उसकी बंद थी सामने रखी फंची कैसे दिखती. चलते हुए ठम्म लगी फंची पे ठोकर, फंची ये जा… और वो जा. गड़मंड-गड़मंड करती फंची नीचे गदेरे में लुड़क गयी. अर अंधे महाराज क्या है कि आँखी बंद करके चलते गए.
शिवजी पार्वती से बोले लै देख अब. उसको भी अभी अँधा बनना था. मैंने तो की न उसकी मदद पर उसे मेरी मदद मिली नहीं.
जो मेहनत करके अपना गुजारा करता है वो कभी अँधा नहीं बनेगा. और अगर होगा भी तो अपनी कमाई को रीज-बूज के रखेगा.
रात गहराने लगी थी और हमारे हुंगरे भी धीरे धीरे बंद हो गए थे. अब हम दूसरी कथा सुनने की तैयारी में सपनों में खो गए थे.
-गीता गैरोला
देहरादून में रहनेवाली गीता गैरोला नामचीन्ह लेखिका और सामाजिक कार्यकर्त्री हैं. उनकी पुस्तक ‘मल्यों की डार’ बहुत चर्चित रही है. महिलाओं के अधिकारों और उनसे सम्बंधित अन्य मुद्दों पर उनकी कलम बेबाकी से चलती रही है. काफल ट्री की नियमित लेखिका.
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