कला साहित्य

बकरी और भेड़िये

अल सुभह गांव के चौराहे वाले चबूतरे पर ननकू नाई उकड़ूं बैठकर अपने औजारों की सन्दूकची खोजने ही जा रहा…

2 years ago

पहाड़ की ठण्ड में चाय की चुस्की

बचपन से ही में मुझे शिकार खेलने का बहुत शौक था जो किशोरावस्था तक आते-आते और भी चरम सीमा पर…

2 years ago

रमोलिया हाउस में रंगोत्सव : कलर्स ऑफ होप

कुमाऊँ मंडल विकास निगम शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, कालाढूंगी चौराहा, हल्द्वानी के द्वितीय तल पर स्थित रमोलिया हाउस कल पूरा दिन गुलज़ार…

2 years ago

रंग बातें करें और बातों से ख़ुशबू आए

‘रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए...’ ज़िया जालंधरी की ग़ज़ल के इस मुखड़े को हक़ीक़त बनते देखना हो…

2 years ago

राजी जनजीवन की झलक दिखाता एक बेहतरीन उपन्यास

‘काली वार काली पार’ पुस्तक के लेखक शोभाराम शर्मा की एक दो कृतियां बहुत पहले पढ़ी थी, जिनमें उनके जनप्रतिबद्ध…

2 years ago

कहानी : कैकेयी कंडक्टर और ‘बस-हो-चली-बुढ़िया’

(प्रकृति करगेती की यह कहानी उनके कहानी संग्रह ‘ठहरे हुए से लोग’ में शामिल है. कहानी संग्रह को अमेजन से…

2 years ago

कविता : नाक के पहाड़ से

वो औरतेंलम्बा टीका लगाती हैंजो नाक के पहाड़ सेमाथे और माँग के मैदान तक जाता है वो औरतेंचढ़कर, उतरकरऔर फिर…

2 years ago

नन्ही लाल चुन्नी की कहानी

एक बार की बात है, एक छोटी सी बच्ची अपने माता-पिता के साथ एक गांव में रहती थी. वह अपने…

2 years ago

घुघुति-बासूती

पिछली कड़ी - सासु बनाए ब्वारी खाए घुघूती-बासूती…क्या खांदी?दुधु-भाती!मैं भी दे…जुठू छकैकू?मेरू!तेरी ब्वै कख?ग्वोठ जायीं.क्या कर्न?दूधु द्धेवणा!ग्वोठ को छ?गाय-बाछी.बाछी कन…

2 years ago

तीन मोड़ : पहाड़ से एक कहानी

बैंगनी, भूरे और नीलम पहाड़ियों के बीच रूपा नदी ने एक सुरम्य घाटी बना दी थी. हरे-भरेधान के खेतों के…

2 years ago