अल सुभह गांव के चौराहे वाले चबूतरे पर ननकू नाई उकड़ूं बैठकर अपने औजारों की सन्दूकची खोजने ही जा रहा…
बचपन से ही में मुझे शिकार खेलने का बहुत शौक था जो किशोरावस्था तक आते-आते और भी चरम सीमा पर…
कुमाऊँ मंडल विकास निगम शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, कालाढूंगी चौराहा, हल्द्वानी के द्वितीय तल पर स्थित रमोलिया हाउस कल पूरा दिन गुलज़ार…
‘रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए...’ ज़िया जालंधरी की ग़ज़ल के इस मुखड़े को हक़ीक़त बनते देखना हो…
‘काली वार काली पार’ पुस्तक के लेखक शोभाराम शर्मा की एक दो कृतियां बहुत पहले पढ़ी थी, जिनमें उनके जनप्रतिबद्ध…
(प्रकृति करगेती की यह कहानी उनके कहानी संग्रह ‘ठहरे हुए से लोग’ में शामिल है. कहानी संग्रह को अमेजन से…
वो औरतेंलम्बा टीका लगाती हैंजो नाक के पहाड़ सेमाथे और माँग के मैदान तक जाता है वो औरतेंचढ़कर, उतरकरऔर फिर…
एक बार की बात है, एक छोटी सी बच्ची अपने माता-पिता के साथ एक गांव में रहती थी. वह अपने…
पिछली कड़ी - सासु बनाए ब्वारी खाए घुघूती-बासूती…क्या खांदी?दुधु-भाती!मैं भी दे…जुठू छकैकू?मेरू!तेरी ब्वै कख?ग्वोठ जायीं.क्या कर्न?दूधु द्धेवणा!ग्वोठ को छ?गाय-बाछी.बाछी कन…
बैंगनी, भूरे और नीलम पहाड़ियों के बीच रूपा नदी ने एक सुरम्य घाटी बना दी थी. हरे-भरेधान के खेतों के…