मुख्यमंत्री का चेहरा बदलकर जवाबदेही से भाग नहीं सकती भाजपा

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को हटाकर भाजपा जवाबदेही से भाग नहीं सकती. बहस को केवल त्रिवेन्द्र रावत पर फोकस नहीं किया जा सकता, जिसकी कोशिश हो रही है. उत्तराखंड की जनता ने डबल इंजन की सरकार को वोट दिया था. त्रिवेन्द्र रावत को नहीं. भाजपा भूल रही है कि उत्तराखंड की जनता चेहरे पर कभी वोट नहीं देती. उसे राजनीतिक दलों की समीक्षा करना आता है. कांग्रेस और उत्तराखंड क्रांति दल की दुर्गत इसका बड़ा उदाहरण हैं. चेहरे पर वोट दिया होता तो कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हरीश रावत को दो-दो सीटों से मुंह की नहीं खानी पड़ती. उत्तराखंड की लड़ाई का नेतृत्व करने वालों में एक काशी सिंह ऐरी आज राजनीतिक वजूद के लिए न भटक रहे होते. उत्तराखंड की जनता कड़े फैसले लेने से गुरेज नहीं करती ये इस बात का उदाहरण हैं. (BJP Changing Face of Chief Minister)

पहाड़ पर जिंदगी बसर कर रहे लोगों को दिल्ली-देहरादून वालों ने हमेशा सीधा ही समझा. वे सीधे जरूर हैं लेकिन जानते हैं कि बीस साल से प्रदेश की सरकारें दिल्ली से ही संचालित हो रही हैं. बस उसके पास तीसरा विकल्प नहीं है.

भाजपा को जवाब देना होगा कि प्रदेश जब ऋषिगंगा की जलप्रलय से मिले दर्द से छटपटा रहा था तब कुर्सी की सियासत में कैसे उलझा जा सकता है? तबाह हुए परिवारों को जो लाशें मिली उनकी चिता अभी ठंडी नहीं हुई है और यहां ताजपोशी की तैयारी हो गई. केदारनाथ जैसा जख्म झेलने के बाद दोबारा हुई ये घटना संवेदनहीन सरकारों की पोल खोलती है. ये तैयारी की हमने केदारनाथ के बाद? बात आपदा के थपेड़ों तक ही सीमित नहीं है.

सवाल साल 2020 के रोजगार वर्ष मनाने पर भी उठाए जा रहे हैं? यही वह साल था जब बेरोजगारी दर करीब 14 प्रतिशत तक आंकी गई. हम जैसे लोगों को भी अर्थशास्त्र कुछ-कुछ समझ में आ गया. भाजपा की सरकार चला रहे त्रिवेन्द्र रावत ने एक साल में इसे 4.2 से 14 तक पहुंचाया था. उत्तराखंड के हमउम्र छत्तीसगढ़ में भी बेरोजगारी दर महज दो फीसदी है.

कोरोना काल ने बेरोजगारी दर के इस घाव को और गहरा किया. देशभर से लुट-पिटकर घर पहुंचे परिवारों का जो जुलूस निकला उसका हिसाब चेहरा बदलकर कतई नहीं दिया जा सकता. बैंकों से कर्ज के लिए भागते युवाओं की भीगी कमीज का हिसाब डबल इंजन की सरकार में अकेले त्रिवेन्द्र सिंह रावत से लेना ठीक नहीं होगा. कोविड काल से पहले 5.1 प्रतिशत पर चल रही विकास दर को शून्य तक लाने की जिम्मदारी भी भाजपा को सामूहिक तौर पर ही उठानी पड़ेगी. अकेले त्रिवेन्द्र को इसके लिए जिम्मेदार मानना उत्तराखंड की जनता की बड़ी राजनीतिक भूल होगी. अनुशासित पार्टी को भी ये भूलना नहीं चाहिए.

राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक  हैं.

जाते-जाते त्रिवेंद्र सिंह रावत एन. डी. तिवारी का नाम कर गये

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Sudhir Kumar

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