उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में है सबसे बड़ा बुग्याल. बुग्याल ट्री लाइन और साल में ज्यादातर समय बर्फ से ढंके रहने वाले वनस्पतिविहीन हिमालय के बीच के उस क्षेत्र को कहा जाता है जहाँ 6 माह के लिए बर्फ पिघल जाती है. इस दौरान यहाँ पर हरी मखमली घास और छोटी झाड़ियों को पनपने का मौका मिलता है. इन बुग्यालों में कई बेशकीमती जड़ी बूटियां भी उगती हैं. यहां मोनाल, कस्तूरी मृग आदि जानवर भी पाए जाते हैं. उत्तराखण्ड के कई बुग्याल मशहूर हैं जैसे— पवालीकंठा, गुरसों, औली, हर की दून, दयारा, चौपटा आदि. बेदिनी बुग्याल इन सब में बड़ा और सुरम्य है. बेदिनी बुग्याल के ऊपर धार के दूसरी तरफ है आली बुग्याल.
बेदिनी बुग्याल जाने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, कर्णप्रयाग, थराली, देवाल, लोहाजंग, वाण होते हुए जाया जा सकता है. दूसरा रास्ता हल्द्वानी, कौसानी, ग्वालदम, देवाल, लोहाजंग होते हुए वान तक का है. वाण के बाद 13 किमी का पैदल ट्रैक बेदिनी बुग्याल के लिए जाता है. हल्द्वानी से वाण की दूरी 230 किमी है. मतलब शाम होने तक आप आसानी से वाण पहुँच जाते हैं.
वाण चमोली जिले का दुर्गम गाँव है. वाण से 10 किमी पहले लोहाजंग से भी एक पैदल रास्ता आली बुग्याल होते हुए बेदिनी बुग्याल तक जाता है. लोहाजंग तक के लिए दिल्ली से सीधी बस सेवा भी है. हल्द्वानी से ग्वालदम तक बस और टैक्सियाँ चला करती हैं. लोहाजंग से वाण तक का रास्ता अपनी गाड़ी या दिन में चलने वाली कुछेक जीपों से तय किया जा सकता है. वाण में रुकने के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम और वन विभाग के रेस्ट हाउस के अलावा स्थानीय ग्रामीणों के लाउंज भी हैं.
वाण एक बड़ा और खासी आबादी वाला गाँव है और नंदा राजजात यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव भी. हर साल होने वाली नंदा जात बेदिनी बुग्याल के बेदिनी कुंड में जाकर संपन्न हो जाती है. 12 सालों में एक बार होने वाली नंदा राजजात बेदिनी से रूप कुंड होते हुए होम कुंड में संपन्न होती है. नंदा यात्रा के दौरान वाण में ही नंदा का मायका ख़त्म हुआ माना जाता है और उनका ससुराल यानि शिव का घर शुरू होता है. यहाँ से नंदा के धर्म भाई लाटू देवता ही यात्रा के साथ आगे चलते हैं. वाण में लाटू देवता का पौराणिक मंदिर भी है, यह साल में सिर्फ एक दिन ही खुलता है.
वाण से बेदिनी बुग्याल के लिए 13 किमी का कठिन चढ़ाई वाला पहाड़ी रास्ता शुरू होता है, इसे खच्चर पर लदकर भी तय किया जा सकता है. वाण कैल नदी के किनारे बसा हुआ है. यहाँ पर देवदार, बांज, बुरांश आदि का सुरम्य जंगल है. वाण से बेदिनी का रास्ता इसी घने जंगल से होकर गुजरता है. इस रास्ते की चढ़ाई ट्रैकर की अच्छी परीक्षा लेती है.
इस रास्ते पर 4 किमी चलने पर अंतिम गाँव रणकाधार मिलता है. रणकाधार के बाद किसी किस्म की कोई भी आबादी नहीं है. थोड़ा आगे चलने पर साफ़-सुथरी कैल गंगा नदी मिलती है. इसके बाद बेदिनी बुग्याल तक पानी नहीं मिलता. बेदिनी बुग्याल से 6 किमी पहले गैरोली पातल में जरूर पानी मिलता है लेकिन रास्ते से कुछ दूर जाकर. गैरोली पातल में यात्रियों के सुस्ताने के लिए एक शेड बना है. गैरोली पातल नंदा राजजात यात्रा का अहम पड़ाव भी है.
गैरोली पातल से आगे आप ट्री लाइन की तरफ बढ़ने लगते हैं, पेड़ों का आकार छोटा होता जाता है और फूल अपनी रंगत बदलने लगते हैं. लाल बुरांश यहाँ आते-आते गुलाबी, बैगनी और फिर सफेद दिखने लगता है.
बेदिनी बुग्याल से कुछ पहले चारों तरफ निगाह दौड़ाने पर पहाड़ की बीच वह क्षैतिज रेखा स्पष्ट दिखाई देती है जिसके निचले हिस्से में पेड़ हैं और ऊपरी हिस्से में सिर्फ घास और छोटी वनस्पतियां. बेदिनी बुग्याल से थोड़ा पहले एक छोटा सा पत्थर का बना मंदिर मिलता है, यहाँ से रास्ता लगभग समतल हो जाता है. वैसे इस पूरे रास्ते पर जहाँ भी थोड़ा समतल मैदान और सुस्ताने की जगह हो वहां गांव वालों ने एक छोटा सा मंदिर बना रखा है.
13 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद बेदिनी बुग्याल में मखमली घास के समतल मैदान के दीदार होते हैं. समुद्र तल से बेदिनी बुग्याल की ऊंचाई लगभग 11,000 फीट है. यहां धार्मिक महत्त्व का एक पौराणिक नंदा देवी मंदिर भी है. पत्थर से बना यह मंदिर एक प्राकृतिक कुंड के किनारे बना है जिसे बेदिनी कुंड कहा जाता है.
बेदिनी बुग्याल में घास के अलावा कई प्रजातियों के छोटे जंगली फूल और जड़ी-बूटियां भी पाए जाते हैं. बेदिनी बुग्याल से चौकम्भा, नीलकंठ, बंदरपूंछ, आदि पर्वत, नंदा घुंटी आदि हिमालयी चोटियों का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है. मार्च से अक्तूबर तक का वक़्त यहाँ पहुँचने के लिए बेहतरीन है. इसके बाद यहाँ बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है. वैसे आजकल बर्फ़बारी के मौसम की शुरुआत और आखिर में भी पर्यटकों के यहां आने का सिलसिला शुरू हुआ है. पहले यहाँ पर रुकने के लिए वन विभाग के हट्स और स्थानीय लोगों के टेंट हुआ करते था. उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस पर रोक लगा दी गयी है. अब गैरोली पातल में रुकने की व्यवस्था की जाती है.
बेदिनी से आगे यही रास्ता कैलुआ विनायक, पातर नचौनिया, भगुआबासा होते हुए रूप कुंड के लिए चला जाता है.
-सुधीर कुमार
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