उत्तराखंड राज्य में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने पर्यटन पर विशेष ध्यान देने पर जोर दिया है जिसमें पर्यटकों के बीच होम स्टे कॉन्सेप्ट को लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जा रही है. पलायन की वजह से राज्य में लगभग 1700 भूतिया गॉंव (घोस्ट विलेजे) व 1000 गांव ऐसे रह गए हैं जिनकी जनसंख्या 100 से भी कम है. इन गॉंवों को एक बार पुन: आबाद करने व स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए होम स्टे का कॉन्सेप्ट काफी हद तक कारगर साबित हो सकता है. राज्य का लगभग 26 प्रतिशत जीडीपी पर्यटन से ही आता है इस लिहाज से पर्यटन पर ध्यान देना व राज्य के अविकसित व अल्पविकसित गंतव्यों को पर्यटकों तक पहुँचाना राज्य सरकार की प्राथमिकता सूचि में होना चाहिये. Basa Homestay in Pauri is the Future of Uttarakhand Tourism
कोरोना काल के दौरान यह देखने में आया है कि महानगरों से लाखों की संख्या में प्रवासी वापस अपने गॉंवों की तरफ लौट आए हैं. पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने अपने एक बयान में कहा कि “रिवर्स माइग्रेशन को लेकर किये गए हमारे प्रारंभिक सर्वे में यह सामने आया है कि राज्य में पलायन की मार झेल रहे लगभग 550 गाँवों में लोग वापस आए हैं.” लोगों का वापस आना खुशी की बात है लेकिन रोजगार की समस्या व मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलने ये लोग कोरोना संकट से उबरने के बाद भी गॉंवों में टिके रहेंगे इस पर संशय है. Basa Homestay in Pauri is the Future of Uttarakhand Tourism
रोजगार को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे स्कीम को लोगों तक पहुँचाना व सरकारी ऑफिसों के चक्कर काटने से बचने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम लागू करना राज्य सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल रही. उत्तराखंड टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड के आँकड़ो पर नजर डालें तो पाएंगें कि वर्ष 2019 में मार्च महीने तक राज्य के विभिन्न जिलों के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 1022 यूनिट्स ने स्वयं को होम स्टे स्कीम के तहत रजिस्टर करवाया.
राज्य सरकार की तरफ से पौड़ी- गढ़वाल के जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल की पहल पर जिले के खिर्सू ब्लॉक में स्थानीय लोगों को होम स्टे के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से ‘बासा होम स्टे नाम से एक होम स्टे खोला है. स्थानीय भाषा में बासा का मतलब रात होता है. इस लिहाज से बासा होम स्टे का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘रात में ठहरने का घर’. राज्य सरकार ने ब्लॉक द्वारा आवंटित जमीन पर ही 4 कमरों का यह होम स्टे और ईको पार्क बनाया है जिसकी कुल लागत लगभग 2.76 करोड़ रूपये है. बासा होम स्टे की शुरूआत जनवरी 2020 में ही हुई और इसकी देख-रेख करने वाले स्थानीय लोगों ने बताया कि कोरोना से पहले यह होम स्टे हर दिन लगभग भरा रहता था लेकिन कोरोना के बाद से बहुत ही सीमित संख्या में पर्यटक यहॉं आने लगे हैं लेकिन जैसे ही स्थिति सामान्य होगी लोग फिर से होम स्टे का रुख करने लगेंगे.
समुद्र तल से लगभग 1700 मीटर की ऊँचाई पर बसा खिर्सू अपने खुशनुमा मौसम के लिए जाना जाता है. बांज, देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा खिर्सू एक ठेठ पहाड़ी गॉंव का अनुभव देता है. चिड़ियों की चहचहाहट के बीच दूर बर्फ से ढके पहाड़ों के मनोरम दृश्य पर्यटकों को सहसा अपनी ओर खींचने लगते हैं. पर्यटकों के आकर्षण व मनोरंजन के लिए एक ईको पार्क का निर्माण भी यहॉं किया गया है.
स्थानीय पत्थरों व लकड़ी से निर्मित बासा होम स्टे पर्यटकों को गढ़वाली जीवन शैली का अनुभव देने के उद्देश्य से बनाया गया है जहॉं पर एक कम्यूनिटी किचन है जिसमें बने गढ़वाली खाने को पर्यटकों की थाली में परोसा जाता है और किचन में बैठाकर ही चैसा, काफली, मढ़ुवे की रोटी, झंगोरे की खीर, रायता आदि स्थानीय व्यंजनों का स्वाद पर्यटकों तक पहुँचाया जाता है. यह होम स्टे उन्नति महिला समूह द्वारा संचालित है जिसमें 15 महिलाएँ काम करती हैं. यह होम स्टे न सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया करवाता है बल्कि उनके द्वारा उत्पादित स्थानीय उत्पादों की बिक्री के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म भी उपलब्ध कराता है.
3 टाइम के खाने के साथ डबल बैड के एक कमरे का किराया 3000 रूपये है. होम स्टे में काम करने वाले एक शख्स ने बताया कि स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए होम स्टे स्कीम बहुत ही कारगर है. इसमें मुनाफे का 15% सरकार को देना होता है और बाकी का मुनाफा होम स्टे संचालित करने व इसमें काम कर रहे लोगों की तनख़्वाह में खर्च किया जाता है. बासा होम स्टे की तर्ज पर ही 8-9 कमरों का एक और होम स्टे बासा-2 बनाया जा रहा है जिसे निकट भविष्य में स्थानीय लोगों को सौंप दिया जाएगा. Basa Homestay in Pauri is the Future of Uttarakhand Tourism
सरकार को होम स्टे स्कीम से भविष्य में पर्यटन के बढ़ने की बहुत उम्मीदें हैं लेकिन अभी भी उत्तराखंड में कई दुर्गम गॉंव ऐसे हैं जहॉं मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और लोगों को होम स्टे स्कीम का ज्यादा पता नहीं है. साथ ही केरल या राजस्थान के लोगों की तरह उत्तराखंड के स्थानीय लोगों को पर्यटन उद्योग की समझ ही नहीं है. सरकार को गाँवों तक मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना चाहिये तथा लोगों को पर्यटन से होने वाले फायदों से अवगत कराना चाहिये साथ ही आतिथ्य सेवा के महत्व व उसके लिए आवश्यक स्किल हेतु स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना चाहिये. तब जाकर लोग पर्यटन रोजगार में रुचि लेंगे और पलायित होने की जगह राज्य में ही स्वरोजगार के अवसर तलाशेंगे. Basa Homestay in Pauri is the Future of Uttarakhand Tourism
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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