अलकनंदा के तट पर बसा बद्रीनाथ धाम अत्यंत लोकप्रिय है. उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. सातवीं से नवीं सदी के बीच बना यह मंदिर चार धामों में शामिल है. बद्रीनाथ भारत के सबसे व्यस्त तीर्थस्थानों में से एक है.
(Badrinath Dham Bhog)
बद्रीनाथ में विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है. मंदिर में स्थापित मूर्ति के विषय में मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में पास में ही स्थित नारद कुण्ड से निकालकर इसे स्थापित किया था. मंदिर का प्रवेश द्वार नदी की ओर देखता हुआ है.
बद्रीनाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान बद्रीनारायण की १ मीटर (३.३ फीट) लम्बी शालीग्राम से निर्मित मूर्ति है. मूर्ति में भगवान के चार हाथ हैं – दो हाथ ऊपर उठे हुए हैं: एक में शंख, और दूसरे में चक्र है, जबकि अन्य दो हाथ योगमुद्रा (पद्मासन की मुद्रा) में भगवान की गोद में उपस्थित हैं.
(Badrinath Dham Bhog)
बद्रीनाथ मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित पांच संबंधित मन्दिरों में से एक है, जिन्हें पंच बद्री के रूप में एक साथ पूजा जाता है. यह धाम छह महीनों तक बन्द रहता है. मन्दिर के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर अप्रैल-मई के आसपास खुलते हैं और मन्दिर के कपाट भ्रातृ द्वितीया के दिन (या उसके बाद) अक्टूबर-नवंबर के आसपास सर्दियों के दौरान बन्द होते हैं.
इस मंदिर के कपाट खुलने के बाद एक अनूठी परम्परा वर्षों से देखी गयी है. मंदिर में भगवान बद्रीविशाल के लिये तो भोग बनता ही है साथ में यहां कॉकरोच, गाय और पक्षियों के लिये भोग बनाया जाता है. कॉकरोच, गाय और पक्षियों को प्रतिदिन चावल का भोग लगाया जाता है.
गोपेश्वर के प्रमोद सेमवाल ने अमर उजाला में लिखी अपनी रपट में बताया है कि भोग प्रक्रिया का बदरीनाथ मंदिर के दस्तूर में उल्लेख है. बदरीनाथ मंदिर के समीप गरुड़ शिला की तलहटी में कॉकरोच (गढ़वाली बोली में सांगला) दिखाई देते हैं, ये कॉकरोच सामान्य कॉकरोच से आकार में थोड़ा बड़े होते हैं. बदरीनाथ के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि बदरीनाथ जी को प्रतिदिन केसर का भोग लगाया जाता है, जबकि कॉकरोच, गाय और पक्षियों को भी प्रतिदिन एक-एक किलो चावल का भोग लगाया जाता है. वे बताते हैं कि धाम में कॉकरोच को भोग लगाने का उल्लेख बकायदा मंदिर के दस्तूर में लिखा हुआ है.
(Badrinath Dham Bhog)
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