आज मकर संक्रांति के दिन जागेश्वर धाम में ज्योतिर्लिंग को घी से ढकने के परम्परा पूरी की गयी. प्रत्येक वर्ष…
सौ बरस पहले 14 जनवरी की सुबह बागेश्वर की फ़िजा में अलग गर्मी थी. आज सरयू कल-कल के बजाय दम्मू…
उत्तरायणी में कौवो को खिलाने की परंपरा के बारे में कई जनश्रुतियां एवं लोककथाएँ प्रचलित हैं. इनमें से एक लोक…
मकर संक्राति की सुबह कड़-कड़ाती ठंड में स्नान के साथ समाप्त होता जियारानी का मेला. इससे पिछली रात रानीबाग़ में…
घुघुतिया पहाड़ियों का सबसे प्रिय त्यौहार है. बिरला ही ऐसा कोई होगा जिसके भीतर घुघितिया की भीनी याद न होगी.…
असौज का सारा कारोबार समेटकर जाड़ों में जब सारे काम निबट जाते तो हमारी बुब (बुआ) कुछ समय के लिए…
बीती रात दीप जोशी नहीं रहे. अल्मोड़ा नगर की पत्रकारिता के पर्याय माने जाने वाले दीप लम्बे समय से 'अमर…
1857 की क्रांति में गढ़वाल भू-भाग में पूरी तरह शांति रही. इतनी कि तत्कालीन कमिश्नर रैमजे को गढ़वाल भ्रमण पर…
हमारे शरीर में प्राणतत्व के होने की बुनियादी वजह हमारा सांस लेना है. जब तक हम सांस ले रहे हैं…
मंच से वह कभी पहाड़ी बोलने का आग्रह नहीं करते थे बल्कि आदेश के साथ कहते अपुण पहाड़ी में बुल्लान…