उत्तराखण्ड के इतिहास में यदि हम समाज को देखना शुरू करते हैं तो पाते हैं कि वर्तमान भेदभाव पूर्ण नितियां या वर्तमान जाति व्यवस्था का आंकड़ा यही कोई 4-5 सौ सालों पहले फिट बैठाया गया होगा. वीर भड़ों के रूप में कहें या पद/स्थान नामों से इसके प्रचलन का पता चलता है. प्रेम व श्रृंगार का समावेश तो फिर धार्मिक एवं चैती गाथाओं मं भरपूर मिलता ही है. हम वैश्विक परिदृश्य में रोमियों-जूलियट, हीर-रांझा जैसे कई किस्से पढ़ते या सुनते रहते हैं आज हम राज्य क्षेत्र में प्रचलित प्रमुख प्रेम गाथाओं का अध्ययन करेंगे :
(Great Love Saga of Uttarakhand)
यह गाथा सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रचलित लोकगाथा है. यह बैराठ के राजा दुलासाह के पुत्र मालूसाह तथा भोट के राजा सुनपति शौका की पुत्री राजुला की प्रेम गाथा है. यूँ तो इस रोचक गाथा को कम शब्दों में पिरोना मुश्किल हैं किन्तु फिर भी कथा यह है कि दुलासाह तथा सुनपति शौका सन्तान विहीन थे जो सन्तान की कामना हेतु बागनाथ मंदिर बागेश्वर में मिलते हैं तथा तय करते हैं कि कन्या या पुत्र कुछ भी होने की दशा में एक-दूसरे से विवाह करायेंगे.
कहा जाता है कि दोनों ही अपने वादे को भूल गये थे किन्तु राजुला और मालूसाह स्वपनिल होकर एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे. मालूसाह जोगी का वेश बनाकर भोट देश पहुँचा जहाँ उसे विष देकर मार दिया गया तथा राजुला का विवाह हूण देश के राजा चंन्द्र बिखैपाल से करवा दिया गया. बैराठ में इस बात का पता चलने पर कत्यूर सेना भोट देश पहुँची तंत्रबल से मालूसाह को पुनर्जीवित किया गया तथा हूण राजा तथा सुनपति शौका को हराकर सम्मान सहित राजुला को बैराठ लाया गया.
(Great Love Saga of Uttarakhand)
यह गाथा कुमाऊँ अंचल में अत्यधिक प्रचलित है. डोटीगढ़ के राजा भवैचन का पुत्र कुंवर गंगनाथ अल्मोड़ा की सुंदरी भाना जोश्याणी को स्वप्न में देखता है तथा राजवैभव त्याग कर कई बाधाओं को पारकर जोगी के वेश में अल्मोड़ा पहुँचता है. भाना से मिलता है तथा भेद खुलने पर भाना उसके पेट में बच्चे तथा गंगनाथ तीनों ही मारे जाते है तब से ही भूत बनकर ये शत्रुओं से बदला लेते हैं. वर्तमान में देवरूप में पूजित है.
इस गाथा के अनुसार गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू बगड़वाल का आधिपत्य था. कहा जाता है कि अपनी तांबे खानों के कारण उसका व्यवसाय तिब्बत तक विस्तारित था. जागर कथा है कि एक बार जीतू अपनी बहन सोबनी को लेने उसकी ससुराल रैथल गांव पहुंचा जहां वो भरणा से मिलता है. भरणा सोबनी की ननद थी और जीतू की प्रियसी.
एक दिन जीतू बांसूरी बजाता रैथल के जंगल से गुजर रहा था यह रैथल का जंगल खैट पर्वत के क्षेत्र में है कहा जाता है कि वहां परियों का वास है. जीतू की बांसूरी से मोहित आंछरियां वहां आई और जीतू को अपने साथ ले जाने की तैयारी करने लगी. जीतू उन्हें वचन देकर कहता है कि वह अपनी इच्छानुसार रोपणी के दिन आंछरियों के पास चले आयेगा. अंततः वह रोपणी के दिन आंछरियों के साथ चले जाता है और भरणा और जीतू की प्रेम कथा अधूरी रह जाती है.
(Great Love Saga of Uttarakhand)
टिहरी गढ़वाल के भरपूर गढ़ का गढ़पति था अमरेदव सजवाण वह बड़ा वीर था जिसकी गिनती मल्लों में की जाती थी. गढ़वाल राजा के कहने पर इसने भद्योंगढ़ के भद्यो असवाल ठाकुर को पराजित किया था. अमरदेव सजवाण एवं तिलोगी तड़ियाल की प्रेम गाथा प्रचलित है. कहा जाता है कि नागराजा मंदिर सिल्सू गांव में बिखोत के पर्व में इनकी मुलाकात हुई थी. तिलोगा किसी बुटोला जाति के युवक की मंगेतर थी किन्तु अमरदेव सजवाण से वो प्रति रात्रि चोरी-छिपे मिलने लगी.
कहा जाता है कि मिलने के लिये दोनों ने रांका (मशाल) जलाकर सूचना देने की तरकीब निकाली थी, रात्रि को वे दोनों मिलने के लिए संकेतों का का प्रयोग करते थे. दोनों ही अपने महलों में रांका जलाते थे और जब अमरदेव अपने महल से निकलता तो अपने निकलने का संकेत मशाल बुझाकर देता था और उधर तिलोगा उसका इंतजार करती तथा रास्ता साफ होने की सूचना मशाल बुझाकर देती थी.
(Great Love Saga of Uttarakhand)
एक बार किसी बुजुर्ग ने इन संकेतों को समझ लिया फिर तड़ियालों ने बुटोलाओं के साथ मिलकर अमरदेव सजवाण को रंगे हाथों पकड़ लिया. अमरदेव को दौड़ा-दौड़ा कर पत्थरों से लाठी-डंडों से पीटकर मारा गया. सौंल्या नामक स्थान पर दफना दिया गया. उधर तिलोगा ने अपने भाई-बन्धुओं द्वारा अपने प्रेमी को मारे जाने पर नौले में अपने स्तन काटकर डाल दिये तथा श्राप दिया कि उन्हें पाप लगे इस नौले का पानी के बदले मेरी खून को पींये. कहते हैं कि उक्त नौले का पानी तड़ियाल नहीं पीते न हीं गलती से भी वहां जाते हैं. अब भी सजवाण लोग अमरदेव सजवाण का तथा तड़ियाल लोग तिलोगा का रणभूत नचाते हैं.
कहानी है उत्तरकाशी क्षेत्र के गजे सिंह की जो कि भीतरी-दोणी का रहने वाला एक भेड़ पालक है, जबकि मलारी एक खूबसूरत युवती होती है जो कि दोणी गांव के थोकदार मौणया सौन्दण की बेटी है मलारी की ही तरह सुंदर उसकी छोटी बहन सलारी भी है. जागर कथानुसार जब सलारी व मलारी दोनों बहनें जंगल में घास काटने जाती है तो वह एक आदमखोर बाघ उन पर हमला करता है तभी गजे सिंह वहा पहुंचता है और मलारी की जान बचाता है, जहां दोनों की नजरें मिलती हैं.
(Great Love Saga of Uttarakhand)
गजे सिंह मलारी के रूप रंग को देखकर मलारी के प्रेम में इस तरह डूब जाता है कि अपने सपनों में भी उसे देखने लगता है गजू के दोस्त भिमु व मानी को उसके मलारी से प्रेम होने का एहसास हो जाता है, गजू अपने दोस्तों के साथ जंगलों से वापस घर आ रहा होता है तो तम्बाखू लेने के लिए उसे दोणी गांव जाना पड़ता है जहां धारे में पानी लाने आई दोनों बहने सलारी व मलारी से फिर उसकी मुलाकात होती है और वहां वह मलारी को नैटवाड़ के मेले में मिलने को कहता है.
जब दोनों बहनें मेला घूम रही होती है तो दोणी गांव का रणु उसे परेशान करने लगता है गजे सिंह उसे देखता है तो वह रणु की पिटाई कर देता है बदले में रणु मलारी को सारे गांव में बदनाम कर देता है, जिसकी भनक जब थोकदार मौणया सौन्दण को लगती है तो वहां मलारी का घर की चैखट से बाहर निकलना बंद कर देता है. मलारी गजू के वियोग में दुःखी रहने लगती है और बीमार पड़ जाती है. अंत में थोकदार मौणया सौन्दण को एहसास होता है की उससे भूल हुई है और वह मलारी के कहने पर गजू को बुलाता है. परंतु तब तक बहुत देर हो जाती है गजू आता है और मलारी अपना दम गजू की बाहों में तोड़ देती है.
(Great Love Saga of Uttarakhand)
– भगवान सिंह धामी
मूल रूप से धारचूला तहसील के सीमान्त गांव स्यांकुरी के भगवान सिंह धामीकी 12वीं से लेकर स्नातक, मास्टरी बीएड सब पिथौरागढ़ में रहकर सम्पन्न हुई. वर्तमान में सचिवालय में कार्यरत भगवान सिंह इससे पहले पिथौरागढ में सामान्य अध्ययन की कोचिंग कराते थे. भगवान सिंह उत्तराखण्ड ज्ञानकोष नाम से ब्लाग लिखते हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…