उस रात नौगांव में हम लोग एक मकान में योजना बना रहे थे कि पटवारियों ने हमें घेर लिया और 14 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. जब हमें दाडिमी गांव ले जाया गया तो गांव वालों ने हमें छोड़ देने के लिए कहा. नायब तहसीलदार ने हमसे गांव वालों को शांत करने को कहा और हमने शांत कर दिया था. किन्तु उन पटवारियों में से एक ने भीड़ पर अपनी बंदूक चला दी, जो शेरसिंह सेनोली के पेट में लगी गयी. अब भीड़ अनियंत्रित हो गयी. भीड़ ने अधिकारियों की बंदूकें छीन लीं और कुछ अधिकारियों की पिटायी हुई.
एक रिटायर्ड थानेदार ने जैंती स्कूल में दूसरा मोर्चा बांध रखा था. जनता ने घेरा डालकर वहां के भी सभी कर्मचारियों को पकड़ लिया. पुलिस के कपड़े व बिस्तर जला दिये गये. हमने कुल 31 बंदूकें बारूद व कारतूस सहित अपने अधिकार में ले लीं. पुलिस को निशस्त्र करके डाकघर को अपने नियंत्रण में ले लिया. स्कूल में गांधीजी का चित्र लगाया.
दूसरे दिन मिडिल स्कूल के प्रधानाध्यापक को सफेद कुर्ता और टोपी पहनाकर देशभक्ति के नारे लगाने को कहा. उन्होंने सौगंध ली कि भारत माता की जय बोलूंगा और नित्य तिरंगे झंडे के गीत छात्रों द्वारा गाये जायेंगे. वहां से हम बांजधार पटवारी के कमरे पर गये, जो पिछले दिन घायल होकर वहां से भाग गया था.
तीसरे दिन धामद्यो (धामदेव) में एक सभा हुई. सभी लाइसेंस धारियों की बन्दूकें जमा कर ली गयीं. उधर पटवारी साधू के वेष में अल्मोड़ा क्लक्टर के पास पहुंचा और उसने सालम की कथा उन्हें सुनाई. क्लक्टर ने तुरंत रानीखेत से गोरी फ़ौज बुलाई और उसकी एक टुकड़ी सालम भेजी. हमारा जुलूस और हजारों आदमी जैंती स्कूल के पास इकट्ठे थे.
गौरी फ़ौज की टुकड़ी के 75 सैनिक फायर करते हुये आगे बढ़े. जनता में भगदड़ मच गयी. फ़ौज के कमांडर और द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट की गोली से सर्वप्रथम घायल टीकाराम की अल्मोड़ा अस्पताल पहुंचने पर मृत्यु हो गयी. मुझे पकड़ लिया गया और बांधा गया. रायफल के कुन्दे से रामसिंह ‘आजाद’ को मारा गया और उनके सिर पर दो इंच का घाव हो गया.
अंत में नौगांव के लछमसिंह और बसगांव के नैनसिंह और मुझे जैंती स्कूल में कैद कर दिया गया. दूसरे दिन डिप्टी क्लक्टर भी अल्मोड़ा से जाट सैनिकों को लेकर पहुंच गया. उन्होंने दाड़िमी गांव में भीषण लूट-पाट की और संपत्ति को नीलाम किया तथा विविध प्रकार का आतंक फैलाया.
सभी स्त्रियां और बच्चे चालसी की तरफ भागे. जानवर गोठ में ही रह गये. सालम में कई लोगों को मारा-पीटा गया. फ़ौज तीसरे दिन सालम की भीषण तबाही के पश्चात् हमें अल्मोड़ा लायी. कुछ को सजा हुई कुछ को बेंत लगे.
मदन मोहन करगेती की पुस्तक स्वतंत्रता आन्दोलन और स्वातंत्र्योत्तर उत्तराखंड से साभार.
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