पर्यावरण

विश्व हाथी दिवस के मौक़े पर जानते हैं इनके बारे में

12 अगस्त, 2020 को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व हाथी दिवस’ मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य हाथियों के संरक्षण, उनके गैर-कानूनी शिकार और उनके दाँतों के लिए होने वाली तस्करी को रोकने, उनके कम होते गलियारों के संरक्षण और हाथी-मानव के बीच होने वाले संघर्ष को कम करने के लिए जागरूकता प्रदान करना है. (world elephant day 2021)

इसके अलावा इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य जंगली हाथियों की संख्या उनकी बेहतरी और प्रबंधन के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना भी है. आईयूसीएन की रेड लिस्ट में एशियन हाथी विलुप्त होती हुई प्रजाति के रूप में दर्ज है.

इस दिवस की शुरुआत कनाडा की फिल्म निर्माता पेक्ट्रीका सिम्स और केनाज वेस्ट पिक्चर्स के माइकल क्लार्क ने आधिकारिक रूप से 12 अगस्त, 2012 को किया था.

वर्तमान में देश के 14 राज्यों में लगभग 65000 वर्ग किलोमीटर में हाथियों के 30  रिजर्व हैं और एशियाई हाथियों की वैश्विक आबादी का 60 प्रतिशत से अधिक भारत में है.

उत्तराखंड में लगभग 2026 हाथियों की मौजूदगी है जिसमें वयस्क नर और मादा हाथी का लैंगिक अनुपात 1:2.50 है जो एक बेहतर अनुपात माना जाता है. हालाँकि एक समय इनकी आबादी में कुछ कमी आ गई पर अच्छी बात ये है कि वह अब बढ़ चुकी है.

कॉर्बेट पार्क की बात करें तो यहाँ लगभग 1270 हाथियों का बसेरा हैं और ये हाथियों का सबसे बड़ा वास स्थल है. यहाँ के विशाल घास के मैदान हाथियों को आकर्षित करते हैं और इनका पसंदीदा चारागाह हैं. परंतु पिछले कुछ सालों से इन घास के मैदानों को न जलाने के कारण इन घास के मैदानों से इनका पलायन हुआ है.

पहले फ़रवरी के माह में इन घास के मैदानों को चरणबद्ध तरीक़े से जलाया जाता था और जब मार्च में नयीं कपोलें फूटती तो हाथियों का जमावड़ा होना शुरू हो जाता था और मई जून के महीने में तो पूरे घास के मैदान हाथियों के झुंडों से से पटे रहते थे पर अब गिने-चुने ही हाथियों के झुंड दिखायी देते हैं.

मानव जनसंख्या बढ़ने के कारण हाथी कॉरीडोर्स इन सालों में सिकुड़ गए जिस वजह से हाथी इंसानी बस्तियों के करीब पहुंच गए. इन कॉरीडोर के बाहरी इलाकों में रह रहे लोगों ने सालों से जंगली हाथियों से बचने के लिए एक तरीका अपनाया, वे कॉरीडोर के बाहरी क्षेत्रों में मिर्ची पाउडर के बैग रखते और जब वे हाथियों का झुंड देखते तो मिर्ची को हवा में उड़ा देते, जिसके बाद हाथियों को पीछे हटना पड़ता. बाद में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाथियों को खदेड़ने के लिए उन पर लाल मिर्च या मिर्चीबम का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया. राज्य में 11 हाथी कॉरीडोर के बाहरी इलाकों में रहने वाले लोग हाथियों को भगाने और इंसानों पर उनके हमले की घटनाओं को कमकरने के लिए मिर्ची पाउडरों और मिर्ची बम का उपयोग करते थे.

नेपाल के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र के हाथी रामनगर, कॉर्बेट और कोसी नदी पहुंचकर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 121 का हिस्सा पार करते हैं, जहां तीन हाथी कॉरीडोर — कोटा, चिलकिया-कोटा और दक्षिण पटलिदुन-चिलकिया स्थित हैं.

मेरा मानना है कि हाथियों की संख्या, उनकी बेहतरी और प्रबंधन में सबसे बड़ी अड़चन इनका मानवों के साथ होने वाला टकराव और बंद होते हुए हाथी गलियार रहें हैं. जब तक शासन द्वारा आवंटित खत्तों का पुनर्वास और जंगलो के समीप किए गये अवैध क़ब्ज़ों को हटाया नहीं जाता स्थिति जस की तस बनी रहेगी.

खत्तों में रहने वाली आबादी पूर्ण रूप से जंगलो पर निर्भर रहती है और इनका जलोनी लकड़ी, घास और पशु चारे के लिए जंगलों में जाना पड़ता है जहाँ हर समय संघर्ष की सम्भावना बनी रहती है.

दूसरा ऐसे राजस्व गाँव जो जंगल से सटे हुए हैं वहाँ ख़ासकर के गेहूं की फसल पकने के समय पलायन करने वाले हाथियों का रुख़ गाँव की तरफ़ हो जाता है और ये समय दोनों पक्षों के लिए काफ़ी तनाव भरा रहता है. जहाँ कभी-कभी जानमाल का भी नुक़सान हो जाता है.

मानव- वन्य जीव संघर्ष को कम करने को हज़ारों योजनाएँ बनती तो हैं पर काग़ज़ों में ही सिमट कर रह जाती है, धरातल पर काम ही उतर पाती है. ज़्यादा ध्यान बजट लाने और उसे ठिकाने लगाने पर ज़्यादा रहता है.

फोटो : दीप रजवार

विभाग को चाहिए कि ऐसे खत्ते और गाँव जो जंगल से सटे हुए हैं उनसे कुछ दायरे पर जल स्रोतों को बढ़ाने, प्रचुर मात्रा में बांस और रोहणी के पेड़ हाथियों के भोजन के रूप में लगाये ताकि उनका रुख़ आबादी की तरफ़ कम हो. हाथियों के प्राकृतिक आवास में सुधार हो और इनके साथ इंसानी टकराव भी कम हो.

मानव-हाथी संघर्ष के कारण पिछले तीन वर्षों में 301 हाथियों और 1401 मनुष्यों की जान चली गई, यह बहुत ही विचलित करने वाला आँकड़ा है. हाथी मनुष्य का बेहद करीबी प्राणी है और हमारा पर्यावरण मित्र भी है. लेकिन जंगलों की घटती संख्या की वजह से हाथियों पर संकट गहराने लगा है. जंगलों के विनाश की वजह से हाथी इंसानों की बस्ती तक पहुँच रहें हैं जिसकी वजह से मानव और हाथियों में संघर्ष बढ़ रहा है. 

इंसान प्रकृति पर नियंत्रण चाहता है जबकि वह सामंजस्य स्थापित नहीं करता. इसी कारण से हम प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना कर रहें हैं. कभी बाढ़, सूखा, भूस्खलन, आँधी-तूफान, अम्फन, निसर्ग, भूकम्प, टिड्डी दल और कोरोना जैसी महामारी इंसान को निगल रहीं है.

केंद्र और राज्य सरकार को वन्यजीवों की रक्षा के लिए और कठोर कदम उठाने चाहिए और समाज के लोगों को भी जंगली जानवरों केप्रति अपना नजरिया बदलना होगा अभियान चला कर समझाना होगा कि जंगल और जानवर हमारे लिए कितने खास हैं इसके साथ पशु- प्रेमियों और अधिकारवादियों के साथ इस तरह की सामाजिक संस्था चलाने वालों को समाज में जागरूकता फैलानी होगी तभी विश्वहाथी दिवस मनाने के असल मायने होंगे.

रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.

काफल ट्री फेसबुक : KafalTreeOnline

इसे भी पढ़ें : खुद में ही पूरा बैंड हैं उत्तराखण्ड के दीप रजवार

कहानी जंगल की : एक शानदार दिन

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago