पिछली कड़ी : पिथौरागढ़ जिले का नामकरण
प्रथमतः पिथौरागढ़ के नामकरण को पढ़ने के बाद अब उसकी प्राचीनता की ओर बढ़ते हैं. पिथौरागढ़ को सोर घाटी कहा जाता है यहां यह जान लेना भी उचित होगा कि आखिर ये सोर नाम की उत्पत्ति कैसे हुई? इसके सम्बन्ध में भी कुछ मत प्रचलित हैं सर्वमान्य मत कि सरोवर के नाम से इसका नामकरण हुआ से तो आप सब विदित ही होंगे इसके अलावा दो अन्य मत भी है जिन्हें जान लेना चाहिए फिर कुछ ऐतिहासिक संदर्भो पर प्रकाश डाला जायेगा :
पिथौरागढ़ क्षेत्र का प्राचीन नाम सोर था. सोर शब्द का प्रथम प्रयोग राजा आनन्दमल के बास्ते – रई अभिलेख (1430-1442) में मिलता है. क्षेत्र के बाहर के विवरणों में द्युतिवर्मा के तालेश्वर ताम्रपत्र में सोर शब्द का उल्लेख प्राप्त होता है.
चूंकि सोर क्षेत्र के नामकरण में बम जाति का नाम जुड़ता है अतः आज सर्वप्रथम क्यों न सोर मे बसे बम जाति के बारे में जान लिया जाय –
वर्तमान महाविद्यालय एवं राजकीय इंटर कालेज परिसर को घुड़साल कहा जाता था, जो सम्भवतः बमों का अस्तबल था. वर्तमान पौण व पपदेव का क्षेत्र उच्चाकोट कहलाता था. आज उच्चोकोट के साक्ष्य के रूप में सोर क्षेत्र में जन्में बच्चों की जन्म कुण्डलियां भी अहम हैं क्योंकि अब भी उनमें लिखा जाता है ‘उच्चाकोट समीपे’ जानकारी जुटाने पर स्पष्ट होता है कि उक्त वर्तमान क्षेत्र ही उच्चाकोट था. उच्चाकोट के ऊपर का टीला बम शासकों का आवास था जिसे उदयपुर कहा जाता है. उदयपुर में अभी भी बम राजाओं के कोट के अवशेष उपलब्ध है.
सम्भवतः प्रथम बम राजा कराकील बम था. प्राप्त साक्ष्यों में सर्वाधिक नाम विजय बम का मिलता है. बमों के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण स्त्रोत :
उदयपुर का अवशेष- माना जाता है कि बमों ने शत्रुओं से बचे रहने के लिए तीनों ओर से खड़ी चढ़ाई वाली ऊंची चोटी पर इस किले का निर्माण किया गया था. विजय बम के समकालीन गंगोली में मणिकोटी राजवंश का शासन था जो उदयपुर को जीतना चाहता था, लेकिन उसे हराना संभव नहीं था अतः मणिकोटी राजा ने विजयबम के दरबार में बिगुल बजाने वाले कौली को अपने पक्ष में कर लिया, जिसने विजयबम के शिकार करने वाले दिनों में मणिकोटी राजा को आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया. विशाल सेना के साथ आये मणिकोटी राजा ने उदयपुर को नष्ट कर दिया. बाद में विजय बम ने इसका बदला लिये जाने की कथा भी प्रचलित है. इसका विवरण हमें प्राप्त होता है क्षेत्र में पूजित छुरमलनाथ, सिद्धनाथ, सिरपलि तथा गोरखनाथ नामक देवों के जागरों में जो घरपाल जोगी के रूप में बम दरबार में थे.
रावल पट्टी में हाट गांव में बना एक हथिया नौला- प्रचलित गाथाओं तथा जनश्रुति के अनुसार बम राजा ने इस नौले का निर्माण जिस मिस्त्री से करवाया था उससे प्रसन्न होकर मुँहमांगा ईनाम मांगने को कहा था. मिस्त्री ने रानी की माँग की तो राजा ने रूष्ठ होकर उसका एक हाथ कटवा दिया जिससे वह मिस्त्री एक हथिया के नाम से जाना गया. इस नौले को हाट का नौला या रानी का नौला भी कहते है. वही मिस्त्री बाद में बम राज्य से बाहर जाकर चम्पावत में चन्द राजाओं के अधीन नौले का निर्माण किया जिसे भी एक हथिया नौला कहा जाता है.
विजयबम एवं ज्ञानचन्द का सेलौनी ताम्रपत्र- सलौनी गांव से प्राप्त ताम्रपत्र में विजय बम का दान का वर्णन किया गया है, जिसमें विजयबम चन्द राजा ज्ञानचन्द के समकालीन माना गया है.
विजयबम का मझेड़ा ताम्रपत्र- चण्डाक के निकट मझेड़ा गांव से प्राप्त यह ताम्रपत्र 1427 ई0 का है.
छाना ताम्रपत्र- 1458 ई0 का जिसमें शक्तिबम एवं प्रताप बम का नाम उल्लिखित है.
सोर परगने का प्रथम बन्दोबस्त कर्ता श्री जैदाँ किराल की प्रचलित कहानी- बम शासन काल के कर्मचारी जैदाँं किराल जो कि किरगांव का निवासी था ने सोर क्षेत्र में प्रथम बन्दोबस्त कराये जाने की कहानी प्रचलित है. इसमें कहा गया है कि लोगों ने कर से बचने के लिए जमीन छिपाई थी जिसे किराल ने बन्दोबस्त में उल्लिखित कर दिया तथा उनका कर बड़ा दिया. जिससे खफा लोगों ने कुछ क्षेत्रों में विद्रोह शुरू कर दिया. ऐसे ही किसी विद्रोह का दमन करने गये जैदाँ के सम्बन्ध मे अफवाह फैला दी गई कि विद्रोह दमन के समय उसका निधन हो गया. इस तरह की अफवाह लेकर लोग उसकी पत्नी के पास गये और उसे बताया गया कि जैदाँ की अंतिम इच्छा थी कि वह सारे बन्दोबस्त के कागजात लेकर सती हो जाये. जैदाँ की पत्नी ने वैसा ही किया और इस तरह लोगों ने प्रथम बन्दोबस्त के लिखित इतिहास को साक्ष्य बनने से पहले ही दफन कर दिया.
बमों की राजधानी-
1. चण्डाक/देचूला पहाड़ 2. पपदेव का डांडा (उदयपुर) 3. बमधौन/ठुला कोट
वर्तमान में द्वौत गांव में बमजाति के लोग रहते हैं जो स्वयं को बम राजवंश से जोड़ते हैं.
स्त्रोत-
सोर/पिठौरागढ़़ – पदमादत्त पंत
मध्य हिमालय का इतिहास – मदन चन्द्र भट्ट
उत्तराखण्ड का राजनैतिक इतिहास – अजय रावत
धरोहर पिथौरागढ़ – राजेश मोहन उप्रेती
पिथौरागढ़ जनपद का इतिहास – आशा जोशी
स्थानीय जनश्रुतियां
( जारी )
– भगवान सिंह धामी
मूल रूप से धारचूला तहसील के सीमान्त गांव स्यांकुरी के भगवान सिंह धामी की 12वीं से लेकर स्नातक, मास्टरी बीएड सब पिथौरागढ़ में रहकर सम्पन्न हुई. वर्तमान में सचिवालय में कार्यरत भगवान सिंह इससे पहले पिथौरागढ में सामान्य अध्ययन की कोचिंग कराते थे. भगवान सिंह उत्तराखण्ड ज्ञानकोष नाम से ब्लाग लिखते हैं.
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आप ने सही लिखा है। मैं उस क्षेत्र का निवासी हूँ। इस संदर्भ में कुछ बातें साँझा करना चाहता हूं। बचपन मे गाँव की बुजुर्ग आमा से सुना था- पपदेव के सामने जहाँ राजाओं की न्यायालय (कोर्ट) लगती थी, उस जगह को उचकोट कहते हैं। उचकोट की बनावट इस प्रकार से हैं, कि फरियादी सीधे आता था और राजा के सम्मुख अपनी परेशानी बताता था, बाहर आने जाने का कोई दूसरा कोई रास्ता नही होने के पीछे कारण बताया जाता है कि राजा उस व्यक्ति की फरियाद सुन कर न्याय जरूर दिलाएगा, न्याय दिलाने के अलावा को कोई विकल्प नही था, इसी लिए केवल एक रास्ता बना है, राजा के पास भी न्याय करने के अलावा कोई दूसरा मार्ग नही था, उसे फरियादी को न्याय दिलाना ही होता था। उचकोट की पहाड़ से कुछ नीचे की ओर उस पत्थरो में बनी ओखली (अखोल) भी हैं।
पपदेव के उत्तर-पश्चिम छोर पर चंडाक की ओर स्थित पहाड़ को उदयपुर कहते हैंचपन में जब हम बुजुर्ग आमा से पूछते थे की उस ओखली का मूसल कहाँ है, तो अम्मा बताती थी की राजा-रानी का घर उदयपुर (चंडाक) के जंगलों में है, वही जंगलों में मिलेगा। अगर तुमने कभी खोज लिया तो उसके साथ खजाना भी होगा। जब कभी उदयपुर (चंडाक) की ओर के जंगल से वर्षा वाले बादल आते थे (अभी जिन्हें हम पश्चिमी विक्षोभ वाली बारिश) तो उसका मतलब होता था बे मौके बरसात, यानी बाहर रखा समान/ खेतो के अनाज आदि जल्दी जल्दी समेटने का समय। धन्यवाद।
यह जानकारी काफी ज्ञान व्रृधक है..हमारे पित्रो ने भी यही सुनाया है तथा गोरंगघाटी मे भी वहा के जागरो मे भी इसका उल्लेख होता है..राजा विजय बम का शासन काल बेहद वैभवशाली था...
सोर गाव मे सावद / साउद जाति के लोग रह्ते है या नहि ।