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हमें अपने नायकों को नए सिरे से पहचानने और बदलने की ज़रुरत है

यह सेलेब्रिटी युग है. डेरा चलाने वाले बाबा से लेकर ड्रग एडिक्शन से जूझ रहा बम्बइया एक्टर और अबोध इंसान को जिंदा जला देने वाले अपराधी से लेकर रिमोट से चलने वाला कमोड फ्लश बनाने वाला आदमी तक सेलेब्रिटी बन जाता है.

सेलेब्रिटीज़ भयावह रफ़्तार से नायकों की जगह लेते जा रहे हैं. हमें लगने लगा है कि यह असल नायकों के अभाव का युग है. हमारी ज्ञान-ग्रंथियों को इस तरह प्रशिक्षित किया जा चुका है कि हम उसी को नायक समझ ले रहे हैं जो किसी भी तरह की तिकड़म या कारनामे से अपने लिए भला-बुरा कैसा भी नाम पैदा कर चुका है.

बड़े आदमी की परिभाषा बिलकुल उलटपुलट हो चुकी है. बेटी की शादी जैसे नितान्त घरेलू आयोजनों में किसी सेलेब्रिटी का आना स्टेटस सिम्बल बन चुका है. उसके नाम का ढिंढोरा पीटना गर्व का विषय होता है भले ही वह इंसान घोषित अपराधी क्यों न हो.

जिन उच्च मानवीय गुणों को नायकों के साथ जोड़ कर देखा जाता था, हो सकता है इस बदले हुए समय में वे आपको उन लोगों में दिखाई दे जाएं जिन्हें कोई नहीं जानता जैसे गरीब बच्चों को मुफ्त ट्यूशन देनेवाला कोई अध्यापक, मरीजों से हंसकर बात करनेवाला कोई डाक्टर, कोई ईमानदार पुलिसवाला, लाखो रुपयों से भरी थैली मिलने पर लौटा देने वाली कोई कामवाली बाई या रिश्वत न खाने वाला कोई निर्भीक पत्रकार. यह सूची बहुत लम्बी बनाई जा सकती है.

मीडिया से संचालित हो रहे युग में हमें अपने नायकों को नए सिरे से पहचानने और बदलने की ज़रुरत है. वे हमारे आसपास ही हैं!

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