समाज

इस तरह काठगोदाम से मायावती आश्रम पहुंचे स्वामी विवेकानंद : पुण्यतिथि विशेष

26 दिसम्बर 1900 के पत्र में स्वामी विवेकानन्द कु. मैकलिआड को लिखते हैं – “कल मैं पहाड़ की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ.” इसी के साथ उन्होंने अपने आगमन की सूचना भी तार द्वारा मायावती भेज दी थी जो वहां विलम्ब से मिला. जबकि आश्रमवासियों ने उन्हें चलने से एक सप्ताह पूर्व सूचित करने को कहा था इसका कारण यह था कि उस समय पहाड़ में सर्दी का मौसम था और कुलियों तथा डोलियों की व्यवस्था में समय लगता था. स्वामी जी का तार 25 दिसम्बर को प्राप्त हुआ और स्वामी विरजानन्द सारी व्यवस्था में जुट गये. इधर स्वामी जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था. मगर उनका निश्चय अटल था. उन्हें अपने प्रिय हिमालय मठ को एक तीर्थ में बदलना था जहाँ शताब्दियों तक उनके पृथ्वी भर के अनुगामी व धर्म पिपासु आकर आत्मदर्शन हेतु आत्मनियोग कर सकें. अत: वे शरीर की परवाह किये बिना आत्मबल के सहारे 26 दिसम्बर को मायावती की ओर चल पड़े.
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

स्वामी जी के साथ थे उनके गुरुभाई शिवानन्द (महापुरुष महाराज) व उनके प्रिय शिष्य स्वामी सदानन्द (गुप्त महाराज). स्वामी जी को 29 दिसम्बर को काठगोदाम पहुँचना था. इधर स्वामी जी के आगमन की सारी व्यवस्था में लगे स्वामी विरजानन्द 65 कि.मी. मार्ग दो दिन में पूरा कर तथा गांव-गांव घूमकर कुलियों व डोलियों की व्यवस्था कर 28 दिसम्बर की रात काठगोदाम पहुँच गये थे. 29 दिसम्बर की प्रात: स्वामी जी जब काठगोदाम स्टेशन पर उतरे तो कालीकृष्ण महाराज को सामने खड़ा देख विशेष रूप से हर्षित हो उठे. स्वामी जी ने दखा कि कालीकृष्ण महाराज व कुली आदि मार्ग की थकान से उबरे नहीं है. अत: उन्होंने एक दिन काठगोदाम में विश्राम करने का निश्चय किया. इसी बीच अल्मोड़ा से लाला बद्रीशाह के भतीजे गोविंदलाल भी काठगोदाम पहुँच गये थे क्योंकि स्वामी जी ने अल्मोड़ा को भी तार द्वारा सूचित किया था कि यदि मायावती से कोई काठगोदाम नहीं पहुंचा तो वे अल्मोड़ा के रास्ते ही आयेंगे. बद्रीशाह द्वारा इसी कारण गोविंदलाल जी को भेजा गया था. अगले दिन जब स्वामी जी काठगोदाम से मायावती की ओर चल पड़े तो गोविंदलाल भी उनके साथ मायावती को चले.
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

पहले दिन उन लोगों ने सीधी चढ़ाई पार कर भीमताल में भोजन किया जहां से नैनीताल दिखाई पड़ता है. यह स्थान बहुत रमणीय है. रात्रि विश्राम के लिए वे लोग धारी के डांक बंगले में पहुँचे. परंतु इस शताब्दी की अंतिम रात्रि बड़ी विकट परीक्षा लेकर उपस्थित हुई. हुआ यह कि प्रातःकाल से वर्षा व आंधी तथा ठण्डी हवाओं ने आगे बढ़ने में कठिन चुनौतियां खड़ी कर दी. सारे रास्ते फिलसन से भर गये. मगर स्वामी जी ने कभी हार मानना तो सीखा ही न था. वे प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष करते-करते यहां तक पहुँच गये थे. भला प्रकृति कैसे उनके मार्ग को अवरुद्ध कर पाती. स्वामी जी इस विकट मौसम में भी डोलियों के श्रमिकों से हास-परिहास करते समय बिताते रहे. परंतु उनकी आगे बढ़ने की गति अवश्य धीमी हो गई थी.

स्वामी जी ने एक जन को, जो कुली था, पण्डित जी कहना शुरू कर दिया था. उसे चण्डी पाठ पूरा कण्ठस्थ था और वह स्वामी जी को सुनाता जा रहा था. उसने बताया कि उसके 12 विवाह हो चुके हैं पर सभी पलियां परलोक सिधार चुकी हैं. स्वामी जी के यह पूछने पर कि क्या वह अभी भी विवाह करने को तैयार है, उसने कहा, “खूब तैयार हूँ. परंतु देहेज के लिए रुपया कहां है. स्वामी जी भी छोड़ने वाले नहीं थे, वे बोले, “मान लो यदि मैं दे दूं.” यह सुनकर उसके खुशी का ठिकाना न रहा और वह बारम्बार स्वामी जी को प्रणाम करने लगा.

दिन के तीन बजे तक मात्र 7 मील दूर स्थिति पौरहापानी तक पहुँचना हुआ और इतनी ही दूरी पर स्थिति डांकबगंले मौरनौला पहुँचने के लिए अब तेजी से चलना आवश्यक था क्योंकि रात्रि निवास के लिए वहां सुविधा थी मगर कुली लोग तम्बाकू पीने में काफी समय बिता देते और ऊपर से स्वामी जी उन पर अतिरिक्त दया दिखाकर कहते, “तुम लोग कुछ खा लो, मैं पैसे दूंगा और कहां जाओगे?” इस प्रकार साढे पांच बज गये और अब डांकबंगले पर पहुंचना संभव न था. जहां स्वामी विरजानन्द जी ने लाला गोविंदलाल व स्वामी सदानन्द को भेजकर स्वामी जी के विश्राम की अंग्रिम व्यवस्था की थीं. मगर कुलियों व स्वामी जी की अवस्था देख स्वामी विरजानन्द ने सर पीट लिया. आखिर यह उस शताब्दी की आखिरी रात जो थी जो क्या ऐसे साधारण रूप से ही कट जाती?
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

निश्चय किया गया कि एक छोटी सी दुकान में रात्रियापन हेतु आश्रय लिया जाये. चौदह हाथ लम्बी और दस हाथ चौड़ी एक छोटी सी दुकान में दुकानदार अपने परिवार सहित रहता था. उसी के भीतर भोजन पकाने या आग जलाने की व्यवस्था होने से धुआं एक अलग आफत था. इसी झोपड़ी में विश्वविजयी विवेकानन्द एक अकिंचन संन्यासी के रूप में आश्रय के लिए ठहरे. स्वामी जी को धुएं से विशेष परेशानी हुई थी. स्वामी जी ने अपनी परेशानी को छिपाया नहीं वरन् एक बालक के समान शिकायत करते हुए वे कहने लगे- “सब मूर्ख हैं! यदि हिमपात की ही आशंका थी तो फिर मुझे यहाँ आने क्यों दिया? कालीकृष्ण तो अभी बच्चा है, परंतु तारकदादा (स्वामी शिवानन्द) तुम तो बूढ़े आदमी हो. तुम किस बुद्धि से इस आंधी के मौसम में मुझे अल्मोड़ा न ले जाकर यहां ले आये?” फिर वे कालीकृष्ण (स्वामी विरजानन्द) की ओर मुँह करके बोले, “काठगोदाम से तूने मुझे अल्मोड़ा न जाने देकर क्यों मायावती जाने के लिए दबाव डाला?”

किसी के पास स्वामी जी की उलाहना का कोई उत्तर नहीं था. मगर मन ही मन कालीकृष्ण इस अवस्था में पड़ने के लिए स्वामी जी को उत्तरदायी ठहरा रहे थे. कारण यह था कि कुलियों को ढील देकर उन्होंने ही इस दुकान पर इतना समय लगा दिया था कि वे डांकबंगले नहीं पहुँच सके. मगर स्वामी जी से कहे कौन और फायदा भी क्या था? अतः वे चुपचाप सुनते रहे. अंत में स्वामी जी शिशु के समान नीरव हो स्वयं कहने लगे, “अच्छा जो होना था सो हुआ. मैंने जो डांटा है उसका कुछ ख्याल मत करना. पिता भी तो पुत्र को डांटता है. चलो अब जैसे भी हो यहां रात बिताने की व्यवस्था की जाये.”

उस रात उन लोगों ने उस दुकानदार के हाथों बनी मोटी रोटियां खाकर रात बिताई. मगर रात भर कोई सो नहीं सका. प्रातः होने पर दुकानदार को चिंता लगी, कहीं ये लोग एक दिन और यहां ठहर न जायें मगर एक फुट बर्फ के ऊपर अपनी यात्रा को जारी रखते उन लोगों ने आगे प्रस्थान किया. जाते समय स्वामी जी ने उस आश्रयदाता को एक साथ बहुत सा रुपया देकर हतप्रभ ही कर डाला. मगर यह स्वामी जी का स्वभाव था. इसे कौन क्या समझ सकता था. अलगी रात मौरनौला डाकबंगले में सुव्यवस्था के साथ व्यतीत हुई और स्वामी जी को विश्राम का समय मिला जिससे उन्होंने बड़ी राहत का अनुभव किया.
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

चौथे दिन अर्थात् 2 जनवरी 1901 को विश्राम का स्थान था धूनाघाट का डाकबंगला. इस यात्रा में लाठी के सहारे स्वामी जी पैदल भी चले रेशम समय उन्होंने कालीकृष्ण महाराज से कहा था, “देखो, पहले बीस पनीर मील पैदल चलना मेरे लिये कुछ भी न था चलते ही कष्ट का बोध हो रहाका इस बात को आगे बढ़ाते उन्होंने यह कहकर कालीकृष्ण महाराज को चौंका दिया था, “देखो भाई, अब तो मैं अपने जीवन के अंतिम छोर पर आ गया हूँ.”

3 जनवरी से 18 जनवरी 1901 3 जनवरी 1901 यह वह दिन था जब उत्तराखण्ड हिमालय की देवभूमि पर स्थित मायावती के अद्वैत आश्रम को स्वामी जी ने अपनी चरण रज से पवित्र किया था. स्वामी जी का अपने चिर प्रतीक्षित स्वप्न के मूर्त रूप अपने प्रिय हिमालय मठ के शुभागमन हुआ था. स्वामी जी अपनी टोली के साथ पहाड़पानी से देवीधुरा होते हुए मायावती के नीचे उस स्थान पर पहुंचे जहां सेवियर का अंतिम संस्कार हुआ था. इसे गुरु शिष्य का अज्ञात मिलन ही कह सकते हैं. उन्होंने उसी स्थान में आश्रम के घण्टे में बारह बजने की आवाज सुनी. यह आश्रम में भोजन का समय था.

स्वामी जी ने घोड़े पर सवार होकर तेजी से साथ आश्रम में प्रवेश किया. उनके स्वागत के लिए आश्रम को पत्र पुष्पों से सजाया गया था. स्वामी जी के आश्रम के प्रवेश, उनके निवास तथा कुछ अन्य बातों के प्रत्यक्ष गवाह थे. लाला बद्रीशाह के भांजे  मोहनलाल शाह जो मायावती आश्रम के प्रारम्भ से ही उससे जुड़े थे. उन्होंने स्वयं उस समय मायावती आश्रम में निवास किया था. बाद में उन्होंने अपनी स्मृतियां व्यक्त की थी. शाह जी कहते है – सेवियर की अस्वस्थता के समय मायावती में कोई डॉक्टर, वैद्य आदि नहीं रहते थे. किसी प्रकार की चिकित्सा सुविधा संभव न थी. सेवियर साहब बड़े अस्वस्थ थे. मायावती आश्रम के प्रथम अध्यक्ष व स्वामी जी के शिष्य स्वरूपानन्द स्वामी ने मुझसे अल्मोड़ा जाकर डॉक्टर ले आने को कहा. शाम को पांच बजे मैं रनर के साथ जाने को तैयार बैठा था. सेवियर साहब पक्के वेदांती थे. स्वामी जी के ठीक-ठीक शिष्य थे. उन्होंने मुझे मना किया, किसी भी तरह जाने नहीं दिया. स्वामी जी के मायावती आगमन की स्मृति अब भी मेरे नेत्रों के समक्ष स्पष्ट प्रतिभासित होती है.

1901 के जनवरी का महीना था. उनके साथ महापुरुष महाराज (स्वामी शिवानन्द) और गुप्त महाराज (स्वामी सदानन्द) भी आ रहे थे. स्वामी जी आश्रम में आने वाले थे- हमारे आनन्द की सीमा न थी. ज्ञान महाराज और मैंने मिलकर स्वामी जी के लिए फूल का एक हार तैयार किया. आज कल जहां घण्टा लटका हुआ है, वहीं द्वार बना था. कालीकृष्ण महाराज (स्वामी विरजानन्द) बड़े अद्भुत पुरुष थे – स्वामी जी का स्वागत कर ले आने के लिए पैदल ही चले गये थे. कालीकृष्ण महाराज के लिए ही वह संभव था. मायावती में उस समय स्वामी विमलानन्द, स्वामी स्वरूपानन्द और बूढ़े बाबा निवास कर रहे थे. मायावती में उन दिनों कुछ मिलता नहीं था. सब लोग बड़ी चिंता में पड़े कि स्वामी जी आ रहे हैं और उस समय कुछ जुटा पाना संभव नहीं होगा. बूढ़े बाबा ने मुझसे कहा, “देखो स्वामी जी के लिए कुछ शाक-सब्जी की व्यवस्था हो सकती है क्या?” मैंने विभिन्न गाँवों में घूम-घूमकर जो भी मिल सका, जुटाया.
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

ठीक बारह बजे का समय था, टन-टन-टन आश्रम में भोजन का घण्टा बज रहा था. उस समय स्वामी जी ने मायावती में पदार्पण किया. मैं बड़े आनन्दपूर्वक दौड़कर गया और बंदूक से दो गोलियां दागीं. दो एक दिन मात्र स्वामी जी आश्रम भवन के ऊपर के कमरे में रहे. परंतु उसके बाद इतना भयंकर हिमपात होने लगा कि उस ठण्डक के दौरान स्वामी जी को ऊपर के कमरे में नहीं रखा जा सका. वहां आग जलाने की व्यवस्था नहीं थीं इसीलिए स्वामीजी आखिरकार नीचे के गोल कमरे में रहने लगे, उसमें आग जला रखने की व्यवस्था थी और सारे समय आग जलती भी रहती थी.
(Vivekananda’s visit to Mayawati Ashram)

यह लेख मोहन सिंह मनराल की किताब ‘उत्तराखंड में स्वामी विवेकानन्द‘ से साभार लिया गया है.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago