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बच्चों के लिये पारम्परिक धुनों में लोकवाद्यों के बेहतरीन प्रयोग के साथ उत्तराखण्ड परिचय गीत श्रृंखला

यह सुखद संयोग है कि भारत सरकार द्वारा  जिस समय नयी शिक्षा नीति को स्वीकृति प्रदान की गयी ठीक उसी समय उत्तराखण्ड के अकादमिक संस्थान SCERT ने उत्तराखण्ड विषयक आधारभूत सूचनाओं को स्थानीय भाषा गढ़वाली में गीतों के रूप में तैयार कर यूट्यूब पर रिलीज़ किया है. गौरतलब है कि नयी शिक्षा नीति का एक प्रमुख बिन्दु प्रारम्भिक स्तर पर स्थानीय भाषा के माध्यम से शिक्षण भी है.
(Uttrakhand Parichaya Geet Shrinkhala)

ये गीत इतिहास, नदियाँ, ग्लेशियर, पर्वत-शिखर, दर्रे, ताल-झील, वनस्पति व जीव-जंतु, जनजातियां, मेले-उत्सव, प्रमुख नगर, वीर सैनानी, पर्यटन स्थल, धार्मिक स्थल, सामान्य जानकारी पर तैयार किए गए हैं.

कर्णप्रिय, पारम्परिक धुनों में लोकवाद्यों के बेहतरीन प्रयोग के साथ ये गीत ओम बधाणी, सुधा ममगांई, डाॅ  शिवानी राणा चंदेल और साथियों ने गाए हैं जबकि संगीत-संयोजन रणजीत सिंह का है. इन गीतों की एक खासियत यह भी है कि इनका लेखन, संपादन, गायन और तकनीकी पक्ष सभी का निर्वहन विद्यालयी शिक्षा विभाग के शिक्षकों-अधिकारियों द्वारा ही किया गया है.

प्रदेश के विद्यालयी शिक्षा विभाग की दूरदृष्टि और रचनात्मक समृद्धि का भी ये प्रयास परिचायक है. निश्चित रूप से परिश्रम का भी क्योंकि एक वर्ष से अधिक का समय इस निर्माण-प्रक्रिया में लगा है. इस अवधि में लेखन, संपादन, संगीत कार्यशालाओं का आयोजन किया गया, रिकाॅर्डिंग की गयी और फिर यूट्यूब पर रिलीज़ किया गया. गीत और शिक्षण में इनके प्रयोग को लेकर ईबुक भी तैयार की गयी है जिसे शीघ्र ही SCERT की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा.

गीत न सिर्फ़ स्कूली बच्चों के लिए उपयोगी हैं बल्कि प्रौढ़ भी इन गीतों को दो-चार बार सुन लें तो उत्तराखण्ड विषयक आधारभूत जानकारी से खुद को अपडेट कर सकते हैं. सुर-संगीत और स्वस्थ-मनोरंजन के हिसाब से भी गीत उपयोगी हैं. बच्चों को बिना ये बताए, कि आपको कुछ सिखा रहे हैं, भी बहुत कुछ हँसते-गाते-नाचते-खेलते सिखाया जा सकता है. बचपन में  गीतों से सीखे हुए इस ज्ञान की अहमियत उन्हें आगे चलकर तब और भी अधिक पता चलेगी जब वे प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी करेंगे.
(Uttrakhand Parichaya Geet Shrinkhala)

ये प्रोजेक्ट अकादमिक निदेशक सुश्री सीमा जौनसारी के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ जिसमें सर्वश्री अजय नौड़ियाल, प्रदीप कुमार रावत, राय सिंह रावत आदि अधिकारियों ने भी महत्वपूर्ण-सक्रिय भूमिका निभाई. प्रोजेक्ट का निर्देशन-संपादन साहित्यकार और लोकमर्मज्ञ डाॅ नंदकिशोर हटवाल द्वारा किया गया है. प्रोजेक्ट के अगले चरण में कुमाऊंनी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी इस तरह के गीत तैयार किए जाने की संस्थान की योजना है.

आप एक बार सुनेंगे तो अपने जानने वालों को भी अवश्य सुनने के लिए प्रेरित करेंगे. आखिर अपनी बोली-भाषा में  कुछ सार्थक सुनने को जो मिलेगा. वैसे हिन्दी-पट्टी के सभी श्रोताओं के लिए इन्हें समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी क्योंकि गीतों में प्रयुक्त भाषा, सायास आसान और हिन्दी की निकटवर्ती रखी गयी है. उत्तराखण्ड परिचय नाम की इस गीत श्रृंखला के कुल 14 गीतों में  से 5 के लिंक यहाँ व शेष के कमेंट में दिए जा रहे हैं.
(Uttrakhand Parichaya Geet Shrinkhala)

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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी अंगरेजी में परास्नातक हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं.

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