समाज

असल पहाड़ी प्रकृति के उपकारों को कभी नहीं भूलता : विश्व पृथ्वी दिवस विशेष

प्रकृति उत्तराखंड के लोकपर्वों का अभिन्न हिस्सा है. उत्तराखंड के हर छोटे-बड़े त्यौहार में प्रकृति किसी न किसी रूप में आराध्य का स्थान रखती ही है. हरेला, फुलदेई, बसंत पंचमी, आठों जैसे अनेक पर्व हैं मुख्य आराध्य प्रकृति ही रहती है. उत्तराखंड में ऐसे अनेक जंगल हैं जिनको कुछ वर्षों के लिये देवताओं को समर्पित किया जाता है और इन वर्षों में वहां से एक पत्ता तक नहीं उठाया जाता है. प्रकृति के संरक्षण का यह तरीका दुनिया भर में सराहा जाता है. विश्व पृथ्वी दिवस पर जानिये उत्तराखंड के कुछ लोकपर्व और प्रकृति से उनका नाता:
(Uttarakhand Tradition and Environment)

हरेला

उत्तराखंड में एक बरस में तीन बार हरेला बोया जाता है. हरेला पर्व के दिन बुजुर्गों द्वारा दिये जाने वाले आशीर्वाद में पूरी तरह प्रकृति का ही वर्णन देखने को मिलता है:

जी रया, जागि रया
अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया
स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो
हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक
यो दिन, यो मास भेटने रया  

हरेला पर्व पर विस्तृत रिपोर्ट यहाँ पढ़ें: प्रकृति के करीब है पहाड़ का लोक पर्व – हरेला
(Uttarakhand Tradition and Environment)

फूलदेई

पहाड़ में बच्चों का सबसे पंसदीदा त्यौहार फूलदेई है. इस दिन बच्चे बंसत का स्वागत करते हुये घर की देहली कफ्फू, भिटोर, आडू-खुमानी आदि के फूलों से पूजते हैं और गाते हैं :

फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार…फूल देई-छ्म्मा देई.
फूल देई माता फ्यूला फूल
दे दे माई दाल-चौल.

प्रकृति से जुड़े पहाड़ की इस बेजोड़ परम्परा के विषय में यहां पढ़े:  उत्तराखंड में फूलदेई

सातों आठों

भादों के महीने में कुमाऊं क्षेत्र में सातों आठों की धूम रहती है. सातों आठों में गौरा और महेश को पूजा जाता है. गौरा-महेश दोनों की घास से बनी आकृति को महिलाएं बड़े हर्षोल्लास के साथ पूजती हैं. सातों आठों के विषय में अधिक यहां पढ़ें: उत्तराखंड में मनाये जाने वाले सातों-आठों पर्व की कहानी

बसंत पंचमी

बंसत पंचमी का दिन उत्तराखंड में सबसे पवित्र दिनों में एक माना जाता है. स्थानीय भाषा में इसे सिर पंचमी भी कहा जाता है. घर के मंदिर में पूजा के बाद घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर (स्तम्भ के दोनों ओर) गोबर के साथ जौ की हरी पत्तियों को लगा दिया जाता है. बहुत से गावों में बिना गोबर के जौ की पत्तियों को रखा जाता है. कुछ जगहों में घर की मुख्य देली पर सरसों के पीले फूल भी डाले जाते हैं. अपने ईष्ट देवता के मंदिर में भी सरसों के पीले फूल चढ़ाये जाते हैं. जौ की हरी पत्तियां घर के प्रत्येक सदस्य के सिर अथवा कान में रखे जाते हैं और उसे आर्शीवचन दिये जाते हैं. पहाड़ों में जौ की हरी पत्तियों को सुख और सम्पन्नता का सूचक माना जाता है.
(Uttarakhand Tradition and Environment)

पहाड़ में बसंत पंचमी से जुड़ी परम्पराओं पर अधिक पढ़ें: पहाड़ों में बसंत पंचमी से जुड़ी परम्परायें

वट सावित्री

जेठ मास की अमावस्या को सुहागन स्त्रियां अपने पति  के दीर्घ जीवन की कामना से बट सावित्री का उपवास रखतीं. बट वृक्ष, पीपल, केले या आम के पेड़ की पूजा करती. पेड़ पर तीन बार रक्षा धागा लपेटा जाता. पहाड़ में महिलाओं द्वारा रखे जाने वाले उपवासों में एक महत्वपूर्ण उपवास बट सावित्री का भी है. वट सावित्री के विषय में अधिक यहां पढ़ें: आज है आंचलिक त्यौहार वट सावित्री

आमल और तुलसी का पूजन

चैत के महिने में शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी का वपन किया जाता है. फागुन में शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘आमल की एकादशी’ कही जाती. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करते.  

इन सभी के अतिरिक्त ऐसे ढ़ेरों लोकपर्व हैं जहां पहाड़ के लोग पूरी प्रकृति को अपने साथ लेकर चलते हैं. पहाड़ के लोग कभी अकेले नहीं चलते उनके साथ चलते हैं उनके आस-पास के जानवर उनके आस-पास के पेड़-पौंधे. एक असल पहाड़ी बाशिंदा प्रकृति के उपकार को कभी नहीं भूलता.
(Uttarakhand Tradition and Environment)

-काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

माँ का सिलबट्टे से प्रेम

स्त्री अपने घर के वृत्त में ही परिवर्तन के चाक पर घूमती रहती है. वह…

25 mins ago

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

2 days ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

3 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

3 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

4 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

4 days ago