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उत्तराखंड : आगम और व्यय की कदमताल

कहते हैं कि कविताओं में बड़ी धार होती है. उत्तराखंड के भाबर तराई और पहाड़ के लिए किये जाने वाले खर्च का ब्यौरा देता 2022-23 का बजट आखिर में गाता चलता है अटल जी की कविता, “कदम मिला कर चलना होगा “.
(Uttarakhand Budget 2022)

अभी ऋणों का बोझ है.हर बार जो नया ऋण है उसके दो तिहाई के बराबर पुरानी उधारी और उस पर पड़ रहे ब्याज को चुकाने का झमेला है. कैग की रपट में कहा गया है कि सरकार जो भी ऋण ले उससे ‘ऐसेट -फार्मेशन’ होना चाहिए. वैसे भी भारी ऋण ले कर सरकार इसी मनोदशा में रहती है कि कैसे वह कर बढ़ाये और खर्च को सीमित करे. हालांकि इस साल के बजट में कोई नया कर नहीं है और व्यय भी पिछले वर्षों से ज्यादा रखा गया है पर कैग ने इस बात पर आश्चर्य किया है कि उत्तराखंड के बीस विभाग ऐसे रहे जिन्होंने अपने कुल बजट का करीब दो तिहाई सिर्फ मार्च के महीने में व्यय किया अर्थात मार्च में सत्ताइस सौ करोड़ रूपये खर्च कर दिए गये . मूल बजट और अनुपूरक बजट के बीच भी पंद्रह सौ पचास करोड़ से अधिक का अंतर रहा. ऐसे में कई योजनाएं आधी अधूरी रह जातीं हैं और साथ है उनकी लागत भी बढ़ जाती है.

2021-22 में उत्तराखंड की विकास दर शून्य से नीचे ऋण चार दशमलव चार दो प्रतिशत तक गिर गई थी. इस साल अनुमान है की यह छह प्रतिशत बढ़ेगी.. अभी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में खेती बाड़ी, दूधारू पशु, खनन इत्यादि जैसे प्राथमिक क्षेत्र के उपादान का योगदान 12 प्रतिशत है तो द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्र लगभग 44 व 43 प्रतिशत अर्थात व्यापार, परिवहन, विनिर्माण व निर्माण, भण्डारण, होटल व रेस्टोरेंट के साथ संचार और प्रसारण की अधिक बड़ी भूमिका है. राज्य की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के संकेत हैं पर यह पडोसी हिमाचल से कहीं कम है. गरीबी के पैमाने पर उत्तराखंड देश में पंद्रहवें पायदान पर है. नगरों में सबसे गरीब चम्पावत तो गावों में हरिद्वार जनपद है. कुल में सबसे ज्यादा गरीबी अल्मोड़ा जनपद में है. वहीं महंगाई बढ़ने में इसका देश में आठवां स्थान है. जब से राज्य बना तब से यहां के उद्योगों में पांच गुने , विनियोग में बीस गुना व रोजगार में आठ गुने से अधिक की वृद्धि हुई. अभी उद्योगों में छह सौ से अधिक एमओयू हो चुके हैं जिनमें सात हजार से अधिक इकइयों को मंजूरी भी मिल चुकी है. वहीं कर संग्रह भी छप्पन गुना ज्यादा बढ़ गया है पर आर्थिक संकट बरकरार है.

बेकारी की दर अब 5.3 प्रतिशत से आगे है जो देश के ग्यारह राज्यों से ज्यादा है तो शहरी बेकारी के संकेत इसे देश भर का अगुआ बना दे रहे हैं. सरकारी विभागों और निगमों में कुल जमा बयासी हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं जबकि पंजीकृत नौ लाख से अधिक हैं. हज़ारों पदों पर भर्ती खुले तो और गहरे वित्तीय संकट का भय. वैसे भी विपक्ष का सीधा आरोप है कि सरकार ने ‘ऋण ले कर घी पियो ‘ की ऐसी नीति अपनाई है कि उसकी उधारी और देन दारी पांच हजार करोड़ रूपये हो गई है यानि हर आदमी यहां एक लाख रूपये के उधार और इस पर पड़े करीब बारह हजार करोड़ की ब्याज अदायगी में रह विकास के दिवा स्वप्न देख रहा है.सरकार के बत्तीस सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में जो चार निगम व अट्ठाइस सरकारी कंपनियां हैं उनमें से नौ कंपनियों के विनियोग का लेखा अभी तक प्रस्तुत ही नहीं हुआ है.वहीं केएमवीएन, जीएमवीएन, सिडकुल, ईटीडीसी, यूबीवीवीएन व यूएकेडब्ल्यू वीएन जैसी बड़ी नामधारी कंपनियों ने पिछले तीन साल से अधिक के अपने लेखे दिए ही नहीं हैं.

कैग की रपट में कहा गया है कि राज्य को अपने अतिरिक्त कोष के प्रयोग में अधिक सावधानी रखनी होगी और उसके बजट अनुमान भी व्यवहारिक हों ऐसी कुशलता भी दिखानी होगी. सब कुछ आगम और व्यय के समझदारी भरे आंकलन पर निर्भर करता है. इनमें कदमताल कैसे हो जब सरकार 2017 से 2021-22 के किसी भी वित्त वर्ष में अपने बजट का करीब एक तिहाई खर्च ही नहीं कर पा रही है.इस साल भी पिछले से कहीं अधिक व्यय की घोषणा है जिसमें एक तिहाई के करीब तो केंद्र पोषित योजनाएं ही हैं. जहां तक अंतरसंरचना के निर्माण की नीति है तो उसके लिए पहले से चल रही केंद्र और वाह्य सहायता से चलने वाली योजनाओं पर चलते रहने की गति ही ठीक मानी गई है.

ध्यान रहे कि बजट का आधे से जरा कम हिस्सा तो सरकारी कर्मचारियों के वेतन उनकी पेंशन और पहले लिए गये उधार के ब्याज में ही खर्च हो जाने की नियति है. ऐसे में इस बजट की खास बात यह है कि सरकार ने कोई नया कर नहीं थोपा है और न ही राजस्व के घाटे का कोई अनुमान लगाया गया है. फिर भी राजकोषीय उत्तरदायित्व व बजट प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत आठ हजार पांच सौ करोड़ रूपये से अधिक का तो घाटा होगा ही.

खेती बाड़ी पर ध्यान देते और इसे शुभ लाभ से जोड़ने के लिए सरकार आधुनिक तकनीक और फसल सुरक्षा के साथ बाजार के फैलाव पर ध्यान देने की बात कह रही है जो राज्य का सबसे कमजोर क्षेत्र है खास कर पहाड़ी इलाकों में.वैसे तो जैविक राज्य बनाने के लिए पिछले पांच साल से ‘जैविक कृषि अधिनियम’ लागू भी किया गया है और ये दावा किया गया है कि इस अवधि में जैविक खेती का इलाका बढ़ा है तो आर्गेनिक क्लस्टर भी. वहीँ इनकी मार्केटिंग के लिए आउटलेट भी बढ़े हैं. सरकार का कहना है कि कृषि और बागवानी के साथ जैविक और एरोमा खेती बाड़ी को वह प्राथमिकता देगी. खेती को जंगली जानवरों से भी बचाएगी और प्राकृतिक आपदा से भी. चिंता इस बात की है कि जंगल वाले गावों के साथ शहरी रिहायशी इलाकों के पास तक तेंदुए और बाघ दिन दहाड़े कई गलों को च्याँप चुके हैं पहले इन्हें कुकुरी बाघ कह सिर्फ कुत्तों को घसीट कर ले जाने वाला माना जाता रहा.अब दिखाई तो यह दे रहा कि ‘ससटेंड -डेवलपमेंट’ के नाम पर जो क्रिया कलाप हुए हैं उनसे बनीं आपदा का कहर ज्यादा प्रभावी है और जिसे भोगना हर बारिश के बाद की नियति.

बजट में यह आश्वाशन तो दिया ही गया है कि अधिक से अधिक किसानों को आपदाओं से राहत वाली बीमा योजना में शामिल कर दिया जायेगा. ‘पीएम कृषि सिंचाई योजना’ पर ‘ड्राप मोर क्रॉप’ योजना में सब्सिडी को भी सत्तर फीसदी से बढ़ा कर अस्सी फीसदी कर दिया जायेगा. यहाँ के प्रवासी पहाड़ से ज्यादा यहां की स्थानीय फसलों पर ज्यादा लार टपकाते रहे हैं,इसलिए स्थानीय उपज प्रोत्साहित करने को ज्यादा रकम खर्च की जाएगी. इनका खूब प्रचार-प्रसार हो, ये शहर के बड़े मॉल व ऑनलाइन पर रुतबा हासिल करें इसलिए मंडवा, झिँगोरा, लाल चावल, काले भट्ट, पहाड़ी दाल, पहाड़ी मिर्ची, के साथ बेरीनाग चाय, चौलाई, माल्टा जूस और बुरांश के जूस को जी आई टैग मिलेगा. गाँव के किसान जब इनकी पुटली पाटली लबटोर कस्बे के बाजार तक ले ही आते हैं,जहां से शहर के ट्रक इनको बड़े बाजार के लिए औने पौने दाम में सटका ले जाने के लिए तत्पर हैं तो इस प्रवृति पर रोकथाम अभी हो नहीं पायी है. अब वो कस्बे के लाला हों या विकास को बेचैन एनजीओ वाले असली उत्पादक के हाथ में क्या टिका रहे और खुद क्या बटोर रहे का अंतर तो छायाँकित क़ीमतों जैसी ही जटिल है. ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशन’ की आंचलिक विशेष की सूची के अन्य स्थानीय उत्पादों में मुंसियारी का राजमा, भोटिया दन, थुलमा, कुमाऊं के ऐपण, ताँबे के बर्तन, रिंगाल से बने सजावटी सामान भी शामिल कर दिए गए है.

फलों की ज्यादा आवक के लिए यह कहा गया है कि चौबटिया, रामगढ़ और धनोटली के राजकीय उद्यान ‘होर्टिकल्चर टूरिज्म’ के रूप में विकसित होंगे तो चौबटिया और भरसार में सगंध पौध केंद्र के दो क्षेत्रीय कार्यालय भी खुलेंगे. दूध दन्याली की बेहतरी के लिए पहाड़ी इलाकों में सस्ती घास की भी योजना है. इस बार गेहूं के भाव से ज्यादा भूसे के भाव बढ़ गये. गांव गांव तक कपिला पशु आहार के कट्टे पहुँच गये. अपने खेत से ही बटोरे जानवरों के अन्न को पीस -उबाल- चारा पानी देने वाले बस पुराने ही हाथ हैं जिनके हड़तोड़ परिश्रम से घबरा अब नई नवेलियाँ  पैकेट वाले दूध में ज्यादा स्वाद पा रहीं. लगन ऐसी जगह ठहरे जहां शहर हो इसके लिए सोमवार और बीपै का बर्त रख रहीं. अभी गो सदन भी स्थापित होने हैं. आवारा पशुओं ने रहा बचा छोड़ ताजा उगा चर जाने के लिए युद्ध की मुद्रा बना ली है. सीढ़ीदार खेतों में भी दौड़ रहे निगरगंड!

 निजी उपक्रमी चड्डा कैसे नई बायो टेक्नोलॉजी का बेहतर और कारगर प्रयोग कर डालता है और नैनीताल के नवोन्मेशी जिलाधिकारी धीरज गर्बयाल की सोच में जादू का कौन सा तड़का है यह तो लोगों को खुद ही समझना होगा .सरकार कब तक बुढ़िया की घुट्टी पिलाएगी. इसे शायद पहले के दौर में समझा भी गया हो जब एक सिलसिले से क्लस्टर योजना के विविध उत्पाद और बोरे-कट्टे-डोकों के बारे में डॉ आर एस टोलिया ने कई योजनाएं सामने रख दी थीं और नैनीताल की प्रशासनिक अकादमी स्थानीय उत्पादन, उसके स्वरुप, किसान के हितलाभ पर संवाद भी करतीं थी. आईसीमोड भी नेपाल का पहाड़ी मॉडल उत्तराखंड की सरजमीं देख बना डालता था गाड़ गधेरों के बरामासी पानी से मडुआ गेहूं पिसने के साथ बन रही बिजली के तार भी आँगन गोठ तक पंहुच उजाला करेंगे की योजना बनती थी. बाकी बिजली पडोसी के काम आ जाएगी जैसी सोच भी थी. फिर यही सोच सूर्य ऊर्जा के साथ हुई.पहाड़ की सामाजिक आर्थिकी के व्यवहारिक मुद्दों पर श्री नृप सिंह नपाच्याल का दृष्टिकोण आम खेतिहर और उसके सामने साल दर साल आ रही परेशानियों को समाधान का मार्ग दिखाता था तो पांगती जी फीजेबल या दृश्य हल देने में उस्ताद थे. ये सभी वरिष्ठ नौकरशाह पहाड़ की उपज की तरह उसके हर डाने काने, गाड़ गधेरों की थाह रखते थे. वहीँ लाल बहादुर प्रशासन अकादमी में बर्मन साहिब भी ऊँची कुर्सी पर विराजमान थे जो स्थानीय परिस्थितियों व आंचलिक दशा को तराई भाबर हो या पहाड़ की तलाऊं उपरांउ धरा के लिए डमी वेरिएबल बना देते थे.

फिलहाल खेती के औजारों के लिए पहाड़ी इलाकों में फार्म मशीनरी बैंक और मैदानों में कस्टम हायरिंग सेंटर खोलने की बात की गई है. सरकार से अपने सटीक योगदान से पद्म पुरस्कार प्राप्त किये  अनिल जोशी के मॉडल भी दृश्य या फीजबल रहे पहाड़ में और महेंद्र सिंह कुंवर के विविध काम भी जिन्होंने मिलजुल कर स्थानीय उत्पाद की श्रृंखलाओं के फलने फूलने पर अपना जीवन लगाया.सत्तर के दशक में स्वामी माधवाशीष भी थे जिन्होंने मिरतोला में अपने प्रयोग खेती बाड़ी, पशुपालन और फल सब्जी पर किये. और पूरे पहाड़ में उनके ऑपरेशनल होने का व्यवहार बताया. प्लानिंग कमीशन में एक्सपर्ट की हैसियत थी उनकी.वहीँ आ कर डॉ जैकसन ने ‘धारक क्षमता’ जिसे कैरींग कैपेसिटी कहा गया पर बड़ा ही प्रभावी मॉडल लिखा,जो हर इलाके की उत्पादन दशा का सटीक मूल्यांकन कर सकने में समर्थ था.पंतनगर वाले डॉ शंकर लाल साह और अब डॉ वीरसिंह ने भी खूब लिखा जो किसान के मतलब का था.’बीज- बचाओ ‘पर भी काम था तो सूखी बंजर पहाड़ियों पर आपसी तालमेल और युक्ति से बारिश का पानी प्रयोग कर हरियाली लहलहा देने का उपक्रम भी. आपसी सहयोग और सहायता से समूह बना इलाके में चमत्कार की सुर्खियां भी खूब बटोरी जा रहीं थी पर अब कितने ऐसे एनजीओ हैं जिनके प्रभावी योगदान से आम जन भी कुछ सीख लेता है यह बताना बड़ा मुश्किल है. जानी तो हर बात आम खेतिहर, शिल्पी और कारीगर तक है. खेती बाड़ी में नाबार्ड जैसी संस्थाओं ने बेहतर फंडिंग के रास्ते खोल दिए ,अब हुईं तो योजनाएं ही, मशीन मंगाई, प्रशिक्षण दिया, कुछ माल बना जिसका प्रचार भी जम के हुआ.वही पहाड़ी हल्दी जो सौ रूपये किलो के भाव मंडी में बिकती दिखती अब सौ सौ ग्राम के आकर्षक पॉलिथीन में संस्था द्वारा पचास रूपये की बेची गई. कह दिया इसमें तो हल्दी का तेल भी है. अब जाँच किसने की. की भी तो ऑन रिकॉर्ड कहाँ हैं.सरस के मेले ठेलों के स्टाल में ऐसे कई उत्पाद आये जो एक समय पैक किये गये और फिर योजना खतम होने कद बाद विलुप्त भी हो गये. पहाड़ की पीली लाल मिर्ची के किसान को तो अभी भी खुस्याणी बेचने पर सत्तर -अस्सी रुपए हर किलो के भाव मिल रहे तो खुदरा में आते आते ये ढाई तीन सौ की हो जा रही. सेकुआ-जम्बू-गंधरेंण-तिमूर-भांगे के पचास ग्राम के पैकेट इनके प्रेमियों के हाथ सौ-सौ में आ रहे और बिक भी जा रहे.पहाड़ी माल पर प्यार जो ठेहरा. मॉल में मडुवे का आटा अस्सी-सौ है तो झींगुरा एक सौ अस्सी-दो सौ. अब मालामाल कौन हो रहा इस पर विचार करना खाली टेंशन पैदा करना है. यह बजट का काम थोड़ी है.बजट में कोई कर न लगे यही उसकी सफलता होगी.
(Uttarakhand Budget 2022)

बड़ा अच्छा हुआ कि अब पटवारियों की बाइक के लिए बजट में वित्त का प्रावधान हुआ. कुछ गांव गैर आबाद हुए होंगे पर जो आबाद हैं उनमें अभी भी पुलिस का काम कर रहे ये बिचारे ऊँची- नीची जगह जाती पगडंडियो को पार करते रहे. तलाऊं- उपरांऊँ में पैमाइश का काम भी हुआ और तहसीलदार साब- कानूनगो जी को रिपोर्ट भी करनी हुई. क्या पता कब नये नये आये अति उत्साही डी एम साब,एस पी साब ही धमक जाएं गांव में. मोटर साइकिल फ़टफटाने से कभी तो किसी बीमार लाचार को लाद कर उसको शहर के अस्पताल रिफर किया जाने का पुण्य लाभ मिलेगा.

व्यापारियों को भी खुश किया जायेगा जो ‘दुर्घटना- बीमा’ की जद में आ रहे.वैसे कई खुदरा किराने के छोटे दुकानदार अब क्या करें हो? वाली मुद्रा में हैं. जो नये बड़े मॉल हैं, ऑनलाइन वाले हैं भले ही आपसी लड़ाई -झगडे में कुछ बंद भी हो जाएं फिर नई पहचान के साथ सामने आ जाएं,उन्होंने इस थोक महंगाई के चरम में भी, एमआरपी के हाफ रेट में बिस्कुट और फलों के रस बेच दिए. चेहरा चमकाने वाले ब्रांडेड साबुन तो सत्तर -अस्सी फी सदी सस्ते कर दिए.ब्रांडेड आटा, बासमती, सोना मसूरी, चीनी -चाय सब सस्ते और इतनी वैरायटी जो मोहल्ले की गुमटी में अपनी जान पहचान वाले पडोसी दुकानदार के यहाँ कहाँ मिलेगी. एक दुकानदार तो चुपके से बता रहा कि होल सेल से न उठा वह मॉल से माल भर ला रहे.अभी हमारे इलाके में पेंशनर ज्यादा हैं तो स्मार्ट फोन कम,फिर शाम सुबे बतियाने की आदत भी हुई पड़ोसियों को.हर जगह नैनीताल, अल्मोड़ा उत्तरकाशी थोड़ी होती है कि एक चक्कर लगाओ और सबसे भेंटघाट हो जाये .

काफी साल पहले ही सिन्हा साहिब ने उत्तराखंड में यू एन डी पी की सोच के बहुत सारे रेशे छोड़े थे. कयास था कि आई टी सेक्टर की मजबूती इस प्रदेश की काया पलट कर देती. हाय रे पहाड़ तेरी नियति कि जब अधिकारी अपने पद से उच्च प्रतिनिधायन या प्रमोशन पर चले जाते हैं तब वह पूरा सिलसिला ही धराशायी दिखता है जिसने दिवास्वप्न दिखाए थे. तकनीकी आदाओं में श्रृंखलाएं ऐसे नये उपादानों में कमजोर ही पड़ी रह जातीं हैं पर स्थिर पूंजी में काफी निवेश कर दिया गया होता है. उत्तराखंड की शिक्षा -चिकित्सा -उद्योग -संचार में ही निर्माण व यँत्र उपकरण के स्टॉक पर अगर नजर डाली जाए तो यह साफ दिखाई देता है कि बड़ी महंगी मशीन तो हैं पर इन्हें चलाने वाले ऑपरेटर रखने में कभी संविदा तो कभी अनुरक्षण का झोल.फिर तकनीक इतनी तेजी से बदल रही कि विकसित देश अपने यहां पुरानी पड़ गई प्रोद्योगिकी को तकनीकी हस्तानंतरण के नाम पर ठेल देते हैं. कदम ताल होती रहती है.
(Uttarakhand Budget 2022)

अब उत्तराखंड में भी आधारभूत अंतरसंरचना के विकास के लिए ‘राज्य गति शक्ति’ मास्टर प्लान बनेगा. इसके अंतर्गत राज्य की परिसंपत्तियों की ‘जीएसआई’ मैपिंग की जाएगी जिनको गतिशक्ति के पोर्टल पर अपलोड कर कार्ययोजना बनेगी. यह माना गया है कि इससे सभी संसाधनों के बारे में पूरी जानकारी होने से परियोजनाओं में जो विनियोग किया जायेगा वह ‘लागत -लाभ’ के लिहाज से अनुकूलतम उत्पादन करने में समर्थ होगा. फिर ‘एकल -खिड़की’ योजना तो है ही जिससे परियोजनाओं को वित्तीय स्वीकृति मिलेगी. इसके साथ ही नवाचार के विचार भी हैं जिन्हें कारोबार में बदलना है. यह सोचा जा रहा है कि इस प्रक्रिया को गति देने के लिए ‘स्टार्ट अप’ को प्रोत्साहन राशि दी जाए व नये इंक्यूबेटर केंद्र खोले जायें. बजट में ‘महिला- स्टार्टअप’ को भी स्थान दिया गया . माइक्रो प्लान से छोटे व्यवसाय करने वालों को ‘मुख्यमंत्री स्वरोजगार सूक्ष्म योजना’ से पचास हजार रूपये का ऋण भी मिलेगा . राज्य से निर्यात बढ़ाने की नई नीति होगी. जिसके लिए ‘लोजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम’ को व्यवहारिक बनाया जायेगा.इन सबके साथ सरकारी सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी संभव बनाने के लिए ‘उन्नत सहायक वितरण मॉडल’ बनाया जायेगा.इसमें जानवरों के लिए हरी भरी घास भी है. आदत से मजबूर पहाड़ की औरतें अपनी रस्सी -दातुली पकड़ घा काटने, लकड़ी लाने जंगल जा बाघ -तेन्दुए से बची रहें इसलिए शहर के पास वाले कुछ जंगल वाले गावों में फेंसिंग भी लगने लगी है. इससे जंगल भी पनपेंगे और जानवरों का शहर में प्रवास भी थमेगा.

पहाड़ से पलायन की समस्या की रोकथाम व रिवर्स पलायन के लिए ‘मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना’ हेतु बजट प्राविधान किये गये हैं. अब वर्क फ्रॉम होम के सुअवसर बढ़े तो गावों में भी बेहतर नेट देने की पहल के अधीन पिछत्तर ऐसे गांव होंगे जिन्हें कनेक्टिविटी के साथ ही बिजली, पीने का पानी और आने जाने के लिए खड़ंजे- पड़ँजे, पगडंडी यानि संपर्क मार्ग की सुविधा उपलब्ध होगी. साथ ही सीमांत क्षेत्र का विकास कार्यक्रम भी है जिसमें पिथौरागढ़, चम्पावत, उधमसिंह नगर, उत्तरकाशी व चमोली जनपद के नौ विकासखंडो में अंतरसंरचना निर्माण हेतु विविध कार्यक्रम चलाये जाएंगे. इन ग्रामीण क्षेत्रों में खेती बाड़ी, फल सब्जी, जड़ी बूटी, पशु, डेरी मछली इत्यादि का बेहतर उत्पादन हो और इनकी बिक्री की गुंजाइश बनी रहे. गांव और बेहतर हो सकें इसके लिए ‘राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका मिशन’, ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूबर्न मिशन’, ‘राष्ट्रीय ग्रामस्वराज अभियान योजना’ व ‘मुख्य मंत्री महिला स्वयं सहायता समूह सशक्तिकरण योजना’ हेतु बजट प्राविधान किये गये हैं. ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’ में पचीस हजार युवक युवतियों को प्रशिक्षित किया जायेगा तो गरीब परिवारों की एकसठ हजार से अधिक बेटियों को ‘नंदा -गौरा योजना’ का लाभ मिलेगा. पिछले साल एक भी बेटी को यह लाभ नहीं मिल पाया था. अब यह कहा गया है कि पहले छूट गई बेटियों को समय से यह लाभ मिलेगा. गरीब घर में जन्म पर ग्यारह हजार और इंटर पास करने पर कन्या को एकावन हजार रूपये का नेग दिया जाना है जिससे वह आगे की पढ़ाई कर सके. साथ ही ‘मेघावी बालिका प्रोत्साहन योजना ‘ है तो अल्पसंख्यक समुदाय के कौशल विकास, प्रशिक्षण और रोजगार के लिए ‘मुख्यमंत्री हुनर योजना’ को भी बजट से धनराशि आवंटित हुई है.

 ‘अंत्योदय कार्ड ‘वालों को अब साल में तीन भरे गैस सिलिंडर मुफ्त दिए जायेंगे इस सोच के साथ कि इससे औरतें आत्मनिर्भर हो जाएंगी.’आयुष्मान योजना’ और उसका कैशलेस इलाज साथ में ‘गोल्डन कार्ड’ जारी रहेगा इसके बजट प्रविधान हैं. सरकार की मंशा है कि दूर दराज के पहाड़ी इलाकों में किडनी मरीजों को निशुल्क या मामूली दरों में डायलीसिस की सुविधा मिले. सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क पेथेलोजीकल जांचे हों. पौड़ी, चमोली, उत्तरकाशी,टिहरी, अल्मोड़ा, चम्पावत और पिथौरागढ़ में ‘डे केयर कैंसर यूनिट’ बने जो कीमोथेरेपी भी घर -आंगन -गोठ के पास दे सकें. अभी अस्पताल पदों से कहीं कम डॉक्टर, तकनीशियन, नर्स, वार्डबोय व सफाई कर्मचारियों के अभाव ग्रहण की बेला में हैं तो मेडिकल कॉलेज भी. ‘प्रधान मंत्री जन औषधि परियोजना’ से बहुत उम्मीदें थीं तो इसकी दुकानों में आवक बडी कम है जबकि ‘ब्यूरो ऑफ़ फार्मा पब्लिक सेक्टर’ की बनी दवाओं में हजार से कहीं ज्यादा की मूल्य सूची है. फिर जन औषधि केंद्रों के अगल बगल ही इतनी दुकानें हैं कि उनमें पंजीकृत फर्मों का हर प्रोडक्ट मिलेगा. कसबों -गावों में रुड़की भगवानपुर से सप्लाई नकली माल भी इफरात से है. धर पकड़ की खबरें भी हैं तो नशे के इंजेक्शन व मूड एलीवेटर गोलियां भी चलन में आ गईं हैं.बस इनका मैदान से पहाड़ चढ़ने का सफर है तो जरा रिस्की,तो उतना ही मोटा मुनाफा भी. उतार में विशुद्ध गांजे और अतर की आवक भी बनी रहती है अखबार बताते रहते हैं कि इनके वाहक पंद्रह साल से पिछत्तर साल तक के हैं जो यह जोखिम उठा ही डालते हैं. अब कैसे कहें कि पहाड़ में रिस्क टेकिंग कैपेसिटी का अभाव है. इन्नोवेशन का टोटा है.
(Uttarakhand Budget 2022)

चुनौतियों का अम्बार है अपने ऊर्जा प्रदेश में, पर्यटन प्रदेश में. भीषण गर्मी में कूलर चलें,पंखे हवा काटें, पानी पंप से चढ़े कारोबारी फैक्ट्री कारखाना चले,इसके लिए बिजली विभाग को हाड़तोड़ परिश्रम करना पड़ता है. सिंगल फेज में दो- दो, तीन -तीन, ऐसी लगा बैठ जाते हैं लोग.अब वोल्टेज नब्बे वाट से भी नीचे डिप हो तो इलेक्ट्रॉनिक वोल्टेज स्टेबिलाइज़र भी हांफ जाये,खट -खट करना भूल जाये. अब सरवो लगाने की औकाद हर मध्य वर्गी की कहाँ होती है? बिजली विभाग ऊँची दरों पर बिजली खरीद रोस्टर कर जैसे -तैसे अपनी साख बचाने का जतन कर रहा. बड़ी परियोजनाओं के समर्थन में हमेशा यह आप्त वचन रहा कि अब बिजली बेची जाएगी.जल के साथ सूर्य व पवन ऊर्जा योजनाएं भी बहुत कुछ संभाल लेंगी पर अब ये साल तो भारी ही पड़ा.

बड़े प्रयासों से कोविड थमा,उसके अस्पतालों के टेंट अब डिसमेन्टल हो रहे,तदर्थ सेवा दाता बरी हो रहे. लोगों के चेहरे बिना नकाब फिर से दर्शनीय हो रहे और सारी कसर निकालने को मसूरी नैनीताल की ओर कारों का कारवां दौड़ रहा. होटल मालिक नाराज हैं कि प्रशासन पर्यटकों के मौन जैसे झुण्ड को आने नहीं दे रहा. कहीं रानीचौरी से तो कहीं काठगोदाम से एसयूवी, डीलक्स जाम में फंसी हैं. बीच में एम्बुलेंस भी. पुलिस बहुत सहनशीलहै वाकई मित्र बनी है पर उसे भी जाम को रेंग कर आगे ठेलने में घंटों लग रहे. अब नैनीताल और मसूरी में तो अंग्रेज ऐसा हाईडेंसिटी का चुम्बक लगा गये कि लोग वहीँ आएं और तमाम मैदान का माल पहाड़ की हवा की ब्लेंडिंग के साथ खरीदें. खूब अजैविक वेस्ट भी छोड़ जाएं.

जो पुराना लोक और उसका चलन था वह कौन याद रखे कि ये वही फ्लैट है जिसमें हॉकी होती थी, टूर्नामेंट होते थे आल इण्डिया . शहर का हर परिवार जिसे देखने राजभवन की सड़क और लौंडे मोंडे तो ऊपर पेड़ में चढ़ जाते थे.अपने घरों की खिड़की तक रिज़र्व हो जाती थीं मस्जिद से नगरपालिका और गोल घूम कैपिटल सिनेमा तक.जहां रामसिंह का बेंड बजता था. पर्यटक भी ‘तीले धारो बोला ‘ गुनगुनाते थे. फ्लैट की बची कई जगहों पर शाम से रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं , बाहर भीतर की नाट्य मण्डलियां अपनी प्रस्तुतियाँ दे रही हैं. जीमखाने का पागलखाना भी हो रहा है .भोटिया बाजार से नये फैशन का आगाज़ होता था. दुर्गा पूजा में बंगाल के हर प्रान्त की झलक. ऐसी ही आकर्षण स्थली बनती थीं पहाड़ों की रानी अपनी मसूरी.

अब भी रोमांचक पर्यटन को और रुमानी बनाने के प्रयास पर्वतमाला योजना के अंतर्गत केंद्र को दिया गया है इसमें मुख्य भूमिका का निर्वाह रोप- वे करेंगे.धर्म -योग -पर्यटन की महंगी नगरी हरिद्वार से इसकी शुरुवात हो चुकी है. सुरकंडा देवी तक भक्त जन बिना पैदल चढ़े जा रहे हैं फटाफट आशीर्वाद पा रहे हैं. बस ये साल गुजरने दीजिये ऋषिकेश से नीलकंठ, ऑली से गौरसौं, गौरीकुण्ड से केदारनाथ, गोविंदघाट से हेमकुण्ड साहिब, पंचकोटी से नई टिहरी, और खलिया टॉप से मुंसियारी तक रोप -वे डालने का करार ‘नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड’ से किया जा चुका है तो पर्वतमाला योजना में भी पेंतीस नये रोप वे डाले जायेंगे. कुछ तो दुश्वारियां सिमटेंगी.

प्रदेश के वित्त मंत्री ने बजट से पहले बहुत होम वर्क कराया. उन्होंने इस बजट में जनता की भागीदारी करवाई.चिकित्सा के बाद पहाड़ के ग्राम विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता मिली. फिर कल्याण योजनाएं, पुलिस व जेल,लोक निर्माण, जलपूर्ति व नगर विकास, अनुसूचित जाति कल्याण, सिंचाई और बाढ़, शिक्षा, खेल और युवा रहे. तालमेल जैसी बातें भी रहीं जिनमें सामुदायिक फिटनेस उपकरण या ओपन जिम की सुविधा ग्राम पंचायत स्तर के साथ शहरी स्थानीय निकायों तक पहुँचाने की कोशिश है. नगरपालिका में भी पार्क और ओपन जिम के लिए रकम दी है. युवा इनका फायदा ले फिटनेस बढ़ाने में अग्निपथ के लायक तो बन सकते हैं. विरोध कर लाठी डंडे खाने से बेहतर विकल्प तो यही होगा. अब कदम ताल तो सबको करनी होगी आखिर आपके ही दिए कर से इतना विशाल बिना कोई नया कर लगाए बजट पेश करने का साहस कर सकता है.
(Uttarakhand Budget 2022)

प्रोफेसर मृगेश पाण्डे

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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