समाज

च्यूरे का एक ही पेड़ घी, शहद और गुड़ का इंतजाम कर सकता है

पहाड़ों को प्रकृति ने अनमोल चीजों से सजाया है. पहाड़ों में एक ही वृक्ष में न जाने रोजमर्रा की जरूरतों का क्या-क्या मिल जाता है आज शहर की चकाचौंध ने पहाड़ वीरान कर दिए हैं. एसे ही अनमोल वृक्षों मे एक है च्यूरा.
(Chyura Uttarakhand)

हमारे घर के पास एक बहुत बड़ा च्यूरे का पेड़ था. न जाने कितने साल पुराना होगा. कुछ सौ साल का रहा होगा. कुछ बड़े-बूढे कहते हैं इसे कई पीढ़ियों पहले नेपाल से आई हमारी आमा ने लगाया था. एक बड़े पीपल के पेड़ के बराबर उसकी लंबाई व चौड़ाई थी. वह पेड़ बहुत से लोगों का साझा हुआ करता था. ऊंचा पेड़, तिरछी शाखाएं 8-10 सीढीदार खेतों को ढके रखती थी और कितने बच्चों के झूले (बाल्ली) बनती थी, वे शाखाएं. सितंबर में जब पेड़ में फूल आते, सुंदर, सफेद, चांदी जैसे फूल, गुच्छे में पिरोए हुए जिसे झुक्का कहते थे.

च्यूरे के फूल रस से भरे रहते, जिसे च्यूरे का शहद कहते हैं. जब हम शहद निकालने जाते, तो पत्तों से पूड़े बना लेते थे. एक झुक्की में से एक पूड़ा (लगभग एक गिलास) शहद निकल आता था, फिर डब्बों में भरकर शहद घर ले आते और भरपेट खा लेते थे. इस शहद से गुड़ भी बनाते थे. जाड़ों में खाने के लिए मौने जो च्यूरे के फूलों से शहद बनाते हैं, इस कार्तिक मास के शहद को कातिका मौ यानी कार्तिक का शहद कहा जाता है, जो कि औषधीय गुणों से युक्त होता है.
(Chyura Uttarakhand)

साल में एक पेड़ से 10-20 गट्ठर सूखी लकड़ियां मिल जाती थी. इन लकड़ियों के धुऐं से मक्खी मच्छर सब भाग जाते थे. पत्ते गाय भैंसों के खाने के काम आ जाते थे. गर्मियों में च्यूरे के फल पक जाते है, फल बिल्कुल छोटे बेर के आकार के होते हैं जिन्हें भिणा कहते हैं. भिणा के अंदर से दूध के जैसा सफेद व मीठा रस निकलता है और इसे चूसकर खाया जाता है. इसकी गुठली (खुल्युला) से घी भी बनता है.

हम लोग खुल्युला को बड़ी-बड़ी कढ़ाई (तौलों) मे पकाते. पकाने का सही तरीका भी आना जरूरी होता है. फिर सिलबट्टे में हल्के हाथों से पीस लेते. उनके अंदर से बिल्कुल काजू के समान फल (दिलौला) के दानों को निकालते. इन फलों को सुखाने और भुनने के बाद कोल्हू में पेल कर घी बनाते थे. उस घी के पूरी, पराठे बहुत स्वादिष्ट बनते थे. हाथ पैर में लगाने के लिए वह वैसलीन से भी अच्छा काम करता था. कहा जाता है, एक च्यूरे के पेड़ की उम्र कम से कम 200 से 300 साल होती है. एक ही पेड़ लगाने पर साल भर के लिए घी, शहद और गुड़ का इंतजाम हो सकता है.

हमारे पहाड़ों में कितनी ही ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में आज की पीढ़ी को पता  ही नहीं है. आज भी हम जैसे लोग पहाड़ के ऐसे लम्हों को फिर से जीना चाहते हैं.
(Chyura Uttarakhand)

पार्वती भट्ट

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

4 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago