अर्बन नक्सल बनाम उदारीकरण

भीमा कोरेगांव मामले में लम्बे समय बाद हाल ही में गिरफ्तार किये गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, दलित कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारियों के दिन से ही एक शब्द सोशल मीडिया में लगातार गूंज रहा है –अर्बन नक्सल.

अब तक नक्सलवादियों-माओवादियों के हथियारबंद आन्दोलन को ग्रामीणों आदिवासियों और गरीबों से जोड़कर देखा जाता रहा है. लिहाजा जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया या किया जाएगा उनके लिए एक नया शब्द और परिभाषा गढ़ी जा रही है. यह शब्द है अर्बन नक्सल.

थोड़ा गौर से देखा जाये तो इसकी शुरुआत कांग्रेस के कार्यकाल में ही हो गयी थी. 1991 में आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीति लागू की गयी. मजदूरों, किसानों आदिवासियों और सार्वजनिक उपक्रम के कर्मचारियों के लिए इन नीतियों के परिणाम बहुत बुरे होने वाले थे. इन कमजोर, अस्थिर सरकारों की छोटे दलों पर निर्भरता तथा विपक्ष के चुनावी विरोधों के चलते यह प्रक्रिया धीमी गति से ही आगे बढ़ी. 2014 की मनमोहन सरकार निजीकरण की अपनी कोशिशों को वामपंथी दलों पर निर्भरता के कारण परवान नहीं चढ़ा सकी.

अपने 2009 के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस वामपंथियों के बिना ज्यादा मजबूत स्थिति में थी सो उसने निजीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी ‘स्पेशल इकॉनामिक जोन’ बनाये गए, यहाँ श्रम कानूनों की कोई बाध्यता नहीं थी. खनिज खनन के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए खोल दिए गए, धड़ल्ले के साथ नए ओएमयू साइन किये गए. आद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की काम कि स्थितियां बदतर होती गयीं. खनिज के अकूत भण्डार आदिवासी क्षेत्रों में थे. आदिवासी अपनी मान्यताओं में प्रकृति के कई रूपों को आराध्य मानते थे, लिहाजा प्राकृतिक सम्पदा के दोहन में वे बहुत बड़ा अवरोध बनते चले गए. आंध्र में कमजोर कर दिए गए नक्सली यहाँ अपना आधार फैलाते गए. इस तरह सरकार के सामने दोहरी चुनौती पेश हुई.

ठीक इसी वक़्त मनमोहन सरकार ने देश की आतंरिक सुरक्षा नीति में व्यापक फेरबदल किया. नक्सलवादियों-माओवादियों को देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती घोषित किया गया. अभी तक कश्मीर और उत्तर पूर्व के हिंसक आन्दोलन को देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जाता था. दोनों ही जगह सेना का इस्तेमाल किया जा रहा था और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून लागू था. अब पहली बार झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में भी सेना के इस्तेमाल की बात होने लगी और ऐसा हुआ भी. किसी भी हिंसक आन्दोलन के खिलाफ यह देश की जनता को स्वीकार भी था.

आदिवासियों की अपनी समस्याएँ भी थीं और खनन के खिलाफ प्रतिरोध भी. आदिवासियों के बीच सामाजिक, ट्रेड यूनियन, मानवाधिकार, पत्रकार तथा अन्य गतिविधियाँ चलाने वाले लोग भी थे, जो नक्सली नहीं थे मगर आदिवासियों के बीच कई सुधार और सेवा की योजनाएं चलाते थे. बाधा बनने पर उन्हें भी नक्सली बताकर गिरफ्तार किया जाने लगा. इस तरह गिरफ्तार सभी लोगों को न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता रहा है. किन्तु इस प्रक्रिया में उनके दो-चार साल नष्ट हो जाते हैं, जिससे उनका और परिवार और शुभचिंतकों का मनोबल टूटता या कमजोर होता है. मीडिया अपना ट्रायल चलाकर एक माहौल बनाता है और इन्हें हमेशा के लिए दोषी की नजर से देखा जाने लगता है.

यही फार्मूला शहरों में भी लागू कर दिया गया. फर्जी मुठभेड़ों का विरोध करने वाले, किसानों-मजदूरों के मुक़दमे मुफ्त लड़ने वाले, निचली जातियों के उत्पीड़न के खिलाफ उनके साथ खड़े होने वाले, आदिवासियों के पैरोकार, अपने छोटे अखबार, पत्रिकाएँ निकालकर सरकार की जन विरोधी नीतियों की पोल-पट्टी खोलने वाले, सभी को देशद्रोह का मुकदमा ठोंककर फंसाया जाने लगा.

मोदी सरकार ने इस नुस्खे को नयी ऊँचाइयों तक पहुंचा दिया. उन्होंने खुद से असहमति रखने वाले छात्रों तक को नहीं बख्शा. फिर क्या सरकारी तंत्र के खिलाफ आवाज उठाने वाला, विरोध का हर स्वर देशद्रोही और अब अर्बन नक्सल घोषित किया जाने लगा है. इस मुक़दमे की दो सुनवाई हुआ करती हैं. एक अदालत में और एक न्यूज़ चैनलों के स्टूडियो में. अदालत में अभी चार्जशीट भी दाखिल नहीं हुई होती है और स्टूडियो में फैसला भी सुना दिया जाता है. अदालत से बाइज्जत बरी हो जाने के बाद इन देशद्रोहियों, नक्सलियों, माओवादियों और अर्बननक्सल घोषित कर दिए लोगों के लिए मीडिया के पास कोई सफाई नहीं होती.

सुधीर कुमार हल्द्वानी में रहते हैं. लम्बे समय तक मीडिया से जुड़े सुधीर पाक कला के भी जानकार हैं और इस कार्य को पेशे के तौर पर भी अपना चुके हैं. समाज के प्रत्येक पहलू पर उनकी बेबाक कलम चलती रही है. काफल ट्री टीम के अभिन्न सहयोगी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

3 days ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

3 days ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

6 days ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

1 week ago

उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने

-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…

1 week ago

नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार

आम चुनाव आते ही नैनीताल के दो चुनावजीवी अक्सर याद आ जाया करते हैं. चुनाव…

1 week ago