अपने मुहल्ले के निकट वाले पार्क में बाबा बाल किशन जी की मूर्ति लगनी है. एक अदद मूर्ति के सिवाय सभी कुछ पहले से विद्यमान है इस पार्क में एक नशेड़ियों का कोना, आड़ के लिए झाड़, रंग-रोगन उखड़ी रेलिंग जिसके बीच से हाथ लंबा कर सटे हुए खोखे से चाय-पानी या ख़ाली गिलास पाने की सुविधा, इमरजेंसी मूत्र विसर्जन क्यारी और एक साथ भौंकने वाले चार-पांच कुत्ते.
(Umesh Tewari Vishwas Satire)
रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने बाबा बाल किशन की फ़ोटो युक्त एक पर्चा छपवाया है, जिससे पता चलता है कि अन्य सामान्य सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त उनका सबसे बड़ा योगदान विभिन्न प्रकार की मूर्तियों की स्थापना और उस अवसर पर विशाल भंडारे आयोजित करवाने का रहा है. बताया गया है कि उनके एक इशारे पर बोरे के बोरे आटा-सूजी और कनस्तर के कनस्तर तेल-घी इकठ्ठा हो जाता था.
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका रही. हल्द्वानी में उनके द्वारा आयोजित भंडारे के परसाद से, गिरफ्तारी से बच कर भाग रहे राज्य आंदोलनकारियों को भोजन मुहैया करवाया गया था, आदि.
पर्चे के अनुसार रेजिडेंट वेलफेयर सोसायटी और गो रक्षा कमेटी द्वारा उनकी पुण्यतिथि पर आज का यह ‘भब्य’ आयोजन किया गया है. फंड की व्यवस्था सोसाइटी की ओर से जबकि भाग-दौड़ तथा अन्य प्रशासनिक कार्य गो रक्षा कमेटी के हाथों संपन्न हुए हैं.
कुछ वरिष्ठ, रिटायर्ड लोग काफी पहले से आयोजन स्थल पर आकर जम गए हैं. पार्क की ट्रेड मार्क गंध, जो क्यारी और बाहर ठेले से आती भुटुवे की गंध के मिश्रण से बनती है, आज गायब सी है. शायद प्रतिष्ठित सदस्यों के शरीर पर उदारता से झोंके गए डियोड्रेंट से न्यूट्रलाइज हो गई हो या अभी हवा ‘क्यारी’ से अधिककोण बनाते बह रही हो.
सामने के चबूतरे पर बाबा बाल किशन जी की मूर्ति को ढक कर रखा गया है. उससे सटा कर टेंट हाउस वाले ने छोटा सा मंच बना दिया है. मूर्ति के दोनों तरफ स्टैंड पर 2 लाइटें लगाई गई हैं जिनका फोकस मूर्ति पर है. सामने लगभग 50-60 कुर्सियां लगी हैं और दाहिने हाथ की तरफ एक टेबल है जिस पर मूर्ति अनावरण के बाद वितरण को प्रस्तावित चार लड्डू वाले डिब्बे सजा कर रखे हैं. आज बाबा होते तो भंडारा भी अवश्य होता, तथापि मिष्ठान द्वारा भंडारे की भरपाई का विनम्र प्रयास किया गया है.
मूर्ति अनावरण का पुनीत कार्य संपन्न करने हेतु एक स्थानीय नेता जी को आमंत्रित किया गया है जो सत्तारूढ़ दल के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री बताए जा रहे हैं. माइक आदि की व्यवस्था पूरी हो गई है और थोड़ी देर में यह कार्यक्रम सोसाइटी के चुनिंदा सदस्यों के भाषण के साथ आरंभ हो जाएगा.
आखिरकार माइक की चिंघाडू चीं चूं, जिसके प्रभाव से रेलिंग के पार टहलते सांड अपने स्थान पर जड़ हो गए हैं, के साथ गोधूलि बेला में कार्यक्रम आरंभ हुआ है. मुख्य अतिथि महोदय मंच पर विराज चुके हैं. चार बच्चों ने समझ न आने वाला स्वागत गीत प्रस्तुत किया है क्योंकि बोल संस्कृत में हैं और साउंड सिस्टम का सपोर्ट सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे विधायकों जैसा है.
शायद कुर्सियां काफी खाली रहने की आशंका से पास के सरकारी स्कूल के दूसरी पाली में पढ़ने वाले बच्चों को बुलाकर बिठा दिया गया है. मिठाई के डिब्बे भी 100 से कम क्या ही होंगे!
साउंड की अराजकता के साथ बाबा बाल किशन जी की प्रशस्ति में दो-चार भाषण संपन्न हुए हैं. उधर स्टैंड पर लगी लाईट्स जिनका फ़ोकस मूर्ति पर है ठीक-ठाक जल गई हैं. कैमरे वाले भाई इधर-उधर घूम कर फ्लैश चमका रहे हैं. बच्चे धैर्यपूर्ण छवि धारण किए प्रतीक्षारत हैं, शायद लड्डू प्राप्ति हेतु.
(Umesh Tewari Vishwas Satire)
बंद गले का कोट पहन कर आए अंकिल के निवेदन पर तालियों की बौछार के साथ मुख्य अतिथि ने मंच के कोने पर जाकर अनावरण डोरी खींच दी है. अब वह मूर्ति के अस्तित्व के प्रति उदासीन हो गए हैं और डोरी के साथ फोटोग्राफर को पोज़ दे रहे हैं.
उधर डोरी खिंचने से मूर्ति पर पड़ा साटन का पर्दा हट गया है… अरे-अरे घोर आश्चर्य ! जो मूर्ति अनावृत हुई है वह बाबा बाल किशन की नहीं महात्मा गांधी की निकल आई है.
अजीब सा कोलाहल और अफरातफरी मच गई है. महिलाएं दो-दो के जोड़े बनाकर आपस में जोर-जोर से बातें करने लगी हैं. एक अंकिल मुंह से झाग सा निकालते शायद किसी को फ़ोन पर गाली वगैरा दे रहे हैं. कोहराम सा मच गया है. स्कूली बच्चों ने मिठाई के डिब्बों पर हमला कर दिया है, वो डिब्बे उठाकर भाग रहे हैं. गांधी मुस्कुरा रहे हैं पर किसी को उनसे मतलब नहीं है.
(Umesh Tewari Vishwas Satire)
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हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.
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