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तेरह, तेरस और ट्रिसकाइडेकाफोबिया

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पहली बार छ: अंकों का रोल नम्बर मिला था, हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा के लिए. इससे पहले अधिकतम तीन अंकों के रोल नम्बर्स ही मिलते रहे थे. तब न पति थे और न ही कभी लाख धनराशि देखी थी. ये तो रोल नम्बर था, जो लाख से शुरू हो रहा था. इस तरह, लाख पहली बार सम्बंधी बन कर हमें लखपति की फीलिंग दे रहा था. इस फीलिंग का इज़हार हम हर किसी से उत्साह से करते थे. मसलन, कोई पूछता कि परीक्षा कब से शुरू हो रही है, तो हम सप्लीमेंट्री जानकारी के साथ उत्तर देते कि तेरह मार्च से. और हमारा रोल नम्बर है एक लाख…
(Trichophobia Column Devesh Joshi)  

एक सज्जन ऐसे भी मिले, जिनका सीधा सवाल ही सप्लीमेंट्री जानकारी के बाबत था. सवाल यह कि रोल नम्बर कितना है? एक लाख… अरे नहीं, बस लास्ट के दो अंक बताओ. आगे तो सबका एक-सा ही होता है. उत्साह को एक तरफ रख, रूखा-सा उत्तर दिया – तेरह. मान रहा था कि रूखे उत्तर से सज्जन अपना रास्ता नापने लगेंगे, पर उन्होंने दया-भाव से सर पर हाथ फेरते हुए कहा, भगवान भला करे.

सज्जन का दयाभाव मेरे लिए पहेली बन गया था. घर में पिताजी से चर्चा की तो उन्होंने लगभग टालते हुए कहा कि अनावश्यक बातों पर मत सोचा करो. कुछ पश्चिमी देशों का अंधविश्वास है, ये सब. अलग-अलग देश-समाज के विश्वासों में भी बहुत भिन्नता होती है. फिलहाल अपना विश्वास, पढ़ाई पर बनाये रखो.

पिताजी की इस दो-टूक ने मन को भ्रमित नहीं होने दिया और न ही मनोबल को डगमगाने. 1982 में यूपी बोर्ड परीक्षा में 67 फीसदी अंक दिलाने वाले अनुक्रमांक को अनलकी कौन मानेगा. एक चौंकाने वाले तथ्य ने फिर से ध्यान खींचा. वो यह कि कुल प्राप्तांक प्रतिशत के अंकों का योग भी तेरह ही था. हे भगवान! ये कैसी लीला है, ऐसा सोच ही रहा था कि ध्यान आया कि मेरे तो बर्थ इयर के अंकों का योग भी तेरह है. आगे चल कर एस्ट्रोलॉजी से कुछ परिचय हुआ तो पाया कि कुंडली में चंद्रमा और मंगल तेरह डिग्री पर विराजमान हैं, तो बुध तेरह के गुणज छब्बीस डिग्री पर. ये सोच कर संतोष की साँस ले रहा था कि चलो अच्छा हुआ मेरा नाम तेरहवें अक्षर M या क से शुरू नहीं हुआ. मन के किसी कोने में दुबके गणितज्ञ ने संतोष, ये कह कर छीन लिया कि, ये नहीं देख रहे हो कि रिकॉर्ड नेम में तो तेरह ही अक्षर हैं.

इस तरह एक स्थापित विश्वास के विरुद्ध मुझे ये विश्वास हो चला था कि तेरह संख्या मेरा लकी चार्म है. ट्रक-स्लोगन्स की भाषा में 13 मेरा 7 रहे. एक विभागीय प्रतियोगी परीक्षा  का प्रवेश-पत्र मिला तो देखा कि रोल नम्बर 58 था. अंकों का योग किया तो, प्रवेश-पत्र नहीं गारंटी-कार्ड मिलने की-सी अनुभूति हुई. एक कुटिया बनायी तो 13 की ओर जुमला उछाला कि कमरे तो 13 हैं नहीं. न ही पते का तेरह से कोई सम्बंध है. अब तेरा क्या होगा तेरे? 13 ने अपना उत्तर, नगर-निगम के मार्फ़त भिजवाया, जो घर के मेन-गेट पर हाउस नम्बर 256 लिख गये.

तेरह का डर या ट्रिसकाइडेकाफोबिया का एक प्रत्यक्ष प्रमाण तब मिला, जब चंडीगढ़ शहर भ्रमण में तेरह नम्बर का सेक्टर ही नहीं मिला. तेरह के डर के चलते ही विदेशी वास्तुकार ने किसी भी सेक्टर को 13 नम्बर दिया ही नहीं था.
(Trichophobia Column Devesh Joshi)

फ्रांस, इटली में 13 को शुभ माना जाता रहा है. अमेरिका की कॉलगेट यूनिवर्सिटी में भी 13 को भाग्यशाली माना जाता है. 13 प्रेयर्स और 13 अनुच्छेद वाली इस यूनिवर्सिटी की स्थापना 13 आदमियों द्वारा 13 डॉलर की लागत से की गयी थी. 13 ओक ड्राइव, हैमिल्टन न्यूयॉर्क, यूनिवर्सिटी का पता है.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी 13 का गहरा संबंध रहा है. केन्द्र में उनकी सरकार, पहली बार महज 13 दिन ही चल सकी. शपथ ग्रहण का दूसरा मौका मिलने पर उन्होंने स्वयं 13 तारीख को चुना. ये सरकार भी सिर्फ 13 महीने तक ही चल सकी. इसके बावजूद वाजपेयीजी ने 13 के अंक से कोई परहेज नहीं किया. एक बार फिर से उन्होंने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के रूप में, 13 दलों के सहयोग से 13 तारीख को ही शपथ ली. 13 को ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 13 उनके साथ जीत में भी रहा और हार में भी.

13 के साथ अद्भुत जुड़ाव कई विदेशियों के जीवन में भी मिलता है. पाॅप स्टार, टेलर स्विफ्ट का न सिर्फ़ जन्म 13 तारीख़ को हुआ था, बल्कि वो अपने गानों में 13 को जहाँ भी गुंजाइश होती, शामिल भी करती रही हैं. उसके पहले एलबम ने  13 हफ्तों में ही 5 लाख प्रतियों की बिक्री के लिए, गोल्ड सर्टिफिकेट प्राप्त किया था. स्विफ्ट के पहले टॉप नम्बर गीत में 13 सेकंड का इंट्रो था. उसने जब भी कोई अवार्ड जीता, वो 13 नम्बर सीट पर बैठी हुई होती थी. या फिर 13वीं पंक्ति या सेक्शन में. या 13वें अक्षर एम वाली पंक्ति में.

हिंदू कैलेंडर्स में शुक्ल और कृष्ण, दोनों पक्षों की तेरहवीं तिथि को त्रयोदशी कहा जाता है. त्रयोदशी को प्रदोष-व्रत किया जाता है. यही नहीं, प्रत्येक कृष्ण त्रयोदशी को शिवरात्रि होती है. माघ शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है.

विदेशी विश्वासों की देखादेखी अपने देश में भी इसका अनुकरण वैचारिक और सांस्कृतिक दरिद्रता ही कही जाएगी. भारत में बिल्डिंग के मालों या शहर के सैक्टर्स में 13 से परहेज और वर्जना अतार्किक है. विशुद्ध गणितीय दृष्टि से भी देखें तो डेसिमल सिस्टम का 13, बाइनरी, टर्नरी, सीनरी और ड्यूओडेसिमल सिस्टम्स में क्रमश: 1101, 111, 21 और 11 है. शगुन के लिए सर्वाधिक व्यवहृत संख्याएँ.

देव-चिकित्सक, आयुर्वेद-जनक धन्वंतरि का प्राकट्य-दिवस कार्तिक-त्रयोदशी है. इस दिन को धनतेरस का पर्व भी होता है. धन-वैभव की अधिष्ठात्री लक्ष्मी और कोषाध्यक्ष कुबेर के पूजन, प्रतिष्ठापन का दिन भी त्रयोदशी या तेरस ही है. बोले तो तेरह.
(Trichophobia Column Devesh Joshi)

मेरे जीवन के झटकों में भी तेरह का हाथ रहा है. माँ का निधन त्रयोदशी को ही हुआ, पिता का निधन संवत् के अंकों का योग तेरह था. बचपन में पहाड़ों (टेबल्स) की गाड़ी तेरह पर ही अटकी थी और  शिक्षक रहते हुए मेरा स्कूल से तेरह साल का वनवास (परियोजना में प्रतिनियुक्ति) रहा.

अंधविश्वास सेलेब्रिटीज के भी होते हैं और जनसामान्य के भी. अंधविश्वास व्यक्तिगत भी होते हैं और समाज व धर्मों के भी. दूसरे समाज, धर्मों के विश्वास प्रायः अतार्किक लगते हैं, जबकि अपने विश्वासों के लिए तरह-तरह के तर्क गढ़ लिए जाते हैं. तेरह, तेरस और ट्रिसकाइडेकाफोबिया का ये विवेचन मेरे लिए, किसी विश्वास का उपहास या प्रतिरोध नहीं है, वरन् गणित के सौंदर्य और माधुर्य का साक्षात्कार करने का लघु-प्रयास है. बचपन-किशोरावस्था में जब पहली बार किसी विश्वास से परिचय होता है, तो बच्चा-किशोर स्वयं को एक दोराहे पर खड़ा पाता है. जमाने की राह भी चुनी जा सकती है और बिल्कुल अलग, अनदेखी भी. और हाँ, दोनों राहों पर कुछ दूर गुजर कर अपने लिए सर्वथा नयी राह भी बनायी जा सकती है. इस नयी राह का पता होता है – मैं न तीन में, न तेरह में.
(Trichophobia Column Devesh Joshi)

देवेश जोशी 

सम्प्रति राजकीय इण्टरमीडिएट कॉलेज में प्रवक्ता हैं. साहित्य, संस्कृति, शिक्षा और इतिहास विषयक मुद्दों पर विश्लेषणात्मक, शोधपरक, चिंतनशील लेखन के लिए जाने जाते हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ ( संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित), कैप्टन धूम सिंह चौहान (सैन्य इतिहास, विनसर देहरादून से प्रकाशित), घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित) और सीखते सिखाते (शैक्षिक संस्मरण और विमर्श, समय-साक्ष्य देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी प्रकाशित हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन से वार्ताओं के प्रसारण के अतिरिक्त विभिन्न पोर्टल्स पर 200 से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं.

इसे भी पढ़ें : त्रिशूल, नंदादेवी और मातृ-स्मरण

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