कुटी गांव के राजा लिबिंग की कहानी

लोक परम्परा के अनुसार कुटी गांव का एक राजा था लिबिंग ह्मा. राजा लिबिंग की दो रानियां थी. एक तिब्बत की राजकुमारी और दुसरी भारत की ब्राह्मण कन्या.

राजा लिंबिंग वह रानी जो भारत के ब्राह्मण परिवार की थी उसे राजा के क्षेत्र का भोजन अच्छा नहीं लगता था. रानी ने एक दिन अपने सत् से घाटी के शीर्ष में पन्द्रह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित जौलिंग-कौंग नामक स्थान पर धान और मडुए की फसल पैदा कर दी.

इसी तरह तिब्बत की राजकुमारी ने भी अपने सत् से कुंती पर्वत के नीचे नमक और सुहागे की खानें पैदा कर दी.

हर साल धान की रोपाई के लिये दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित दारमा घाटी से काली नाग आया करता था. इसी आने-जाने के कारण दारमा के सेला गांव से नाम दर्रे से होते हुए पैदल मार्ग तैयार हुआ. आज भी इस पैदल मार्ग से पैदल यात्री आते जाते हैं.

एक साल जब काली नाग कुटी के पश्चिम में स्थित यारपा हिमनद के नीचे से गुजर रहा था तो सौतिया डाह के कारण तिब्बती रानी ने ऊनी हथ-कपड़ा बिनाई में प्रयुक्त एक उपकरण थल्ल-रत्न की तीखी धार से काली नाग का सिर काटकर अलग कर दिया.

नाग का सिर नीचे ढाल पर लुढ़कने लगा. यारपा हिमनद ने नीचे बनी हुई क्वार्टज पत्थर ( डांसी -ढुंगा ) की टेढ़ी-मेढ़ी रेखा और उसी से टूट कर लुढ़के हुए गोलाकार टुकड़े को नाग सिर और अन्य टुकड़ों को मृत शरीर माना जाता है. दारमा घाटी में सेला गांव के ऊपर सम्पूर्ण पहाड़ में इसी तहर की नाग रेखायें अंकित हैं.

रुष्ट होकर ब्राह्मणी ने तिब्बत की रानी द्वारा उत्पन्न नमक और सुहागे की खान को पत्थर में बदल दिया. आज भी श्वेत पत्थरों के ढेर के रूप में इसके चिन्ह यारपा हिमनद के पास देखे जा सकते हैं.

नाग की मृत्यु के कारण जौलिंग-कौंग में स्थित पार्वती ताल के किनारे, आज भी धान और मडुवा जैसे दिखने वाले पौधे उगते तो अवश्य हैं लेकिन फल नहीं देते.

अमटीकर – 2012 में सुरेन्द्र सिंह पांगती द्वारा लिखे लेख ‘सीमांत क्षेत्रों में बौन धर्म ‘ लेख का एक हिस्सा साभार लिया गया है.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

18 mins ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

3 hours ago

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

1 day ago

सुदर्शन शाह बाड़ाहाट यानि उतरकाशी को बनाना चाहते थे राजधानी

-रामचन्द्र नौटियाल अंग्रेजों के रंवाईं परगने को अपने अधीन रखने की साजिश के चलते राजा…

1 day ago

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

2 days ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

2 days ago