समाज

‘टपकिया’ बिना अधूरा है झोली-भात

आज बात करते हैं भात के साथ का दमदार साथी टपकिया की. टपकिया शब्द टपुक से बना है टपुक दरअसल सामान्य बोलचाल में चाय के साष कटक (दांत से काटने को कटक कहते है) लगाकर खाने वाले गुड या मिश्री को कहते हैं. वैसे ही भात के साथ जब दाल या झोली (एक प्रकार की कढी) मिलाते हैं तो साथ में एक सब्जी पहाड़ी जरूर बनाते हैं जिसे टपकी साग कहा जाता है. ज्यादातर टपकिया हरी सब्जी पत्तेदार का होता है. असल में पहाड़ में सभी प्रकार की सब्जी को साग ही कहते हैं चाहे हरी सब्जी हो या कोई और.
(Traditional Food Uttarakhand Tapkia)

पालक, लाई, राई, सरसों आदि के साग का टपकिया बनता है. ये न हो तो आप कोई भी सब्जी लें उसको भात के साथ खा लें वह टपकिया कहलायेगा. लेकिन भात के साथ सबसे प्रचलित टपकिया पालक का कापा होता है. कापा लाई आदि का भी बनाते हैं पर असली कापा को पालक का ही हुवा. कभी अगर दाल झोली न भी हो तो खाली पालक के कापे के साथ भी भात आराम से खाया जा सकता है. कारण पालक का कापा बिलकुल सूखा न होकर जरा गीला सा होता है.

पालक के कापे में गन्द्रैणि, धनिया के दाने का, सूखी लाल निर्च का तड़का जायका बढा देता है और हां ये तड़के सिर्फ सरसों के असली तेल में ही लगायें घी का नहीं. पालक के कापे में चावल के आटे, गेहूं के आटे या बेसन का आलण डालते हैं. (ये जगह के हिसाब से और उपलब्धता के हिसाब से) पर अगर तौली में घर के चावलों का भात बन रहा हो तो एक तरीका बताता हूं.

आप चावलों का थोड़ा सा मांड निकालकर डाल दीजिये, आपका कापा लज्जतदार बन जाऐगा. ज्यादे नहीं डालना है. मेरे पिताजी कभी-कभी पालक के कापे में उड़द की दाल की बारीक पिसी पिठ्ठी जिसे मस्यूट कहते है मिलाकर बनाते थे. बड़ा स्वाद बनता था. पालक का कापा अच्छी तरह से पका होना चाहिये वह लटपटा सा हो न सूखा न पानी बहने वाला गीला.
(Traditional Food Uttarakhand Tapkia)

अब मैं आपको एक और प्रचलित और भात के साथ खाने वाले टपकिया के बारे में बताता हूं. ये चौमास के दिनों में ही बन सकता है.

एक तोरी (पहाड़ी) एक कद्दू का अविकसित फल. बिलकुल हरा और ताजा, एक छोटी मूली की जड़, एक दो गेठी (पहाड़ी सब्जी), कद्दू के कोमल कोमल टूके (कलियां जैसी), दो चार मीठे करेले (राम करेला), फ्रासबीन, सूंटे, (राजमा के बिरादरी भाई) की कोमल फलियां, गडेरी (पिनालू) के कोमल डंन्ठल, पिनालू के कोमल कोमल गाबे, एकाद हरी मिर्च, अगर मिर्च की पेड़ की थोड़ी कोमल कलियां मिल जाय तो वो भी, एक दो शिमला मिर्च, एक दो टमाटर (पहाड़ी). बाकी बाड़पन (किचन गार्डन) में कुछ और हरे पत्ते दिख जायें तो एकाद उनको भी डाल दो इन सबको काटकर सरसों के तेल में धनिया के पत्तों को चटकाकर पका लो. पकाते समय बीच-बीच में खूनने भी रहें मतलब कडछी से दबाकर मिलाते रहें. इस साग को भी लटपट ही बनाना है. बस आपका एक शानदार टपकिया तैयार है.

ज्यादे मसाले इसमें भी नहीं डालने हैं. हल्दी नमक तो हुवा ही थोड़ा धनिया पाउडर भी. बाकी कुछ नही. अब जब आप भात के साथ खायेंगे तो कभी आपके मुंह में गेठी का तो कभी फ्रासबीन का. हां एक बात भूल गया, फ्रासबीन की कोमल फलियों के साथ कुछ ऐसी फलियां भी ले जिनमें दाने कुछ बड़े हो गये हों और उन राजमा के दाने को भी डालें. इनका स्वाद भी टपकिया में चार चांद लगा देता है.

अगर मात्रा बढ़ानी हो इस टपकिया की या इसी टपकिया के साथ भात खाना हो तो जरा सा आलण बिस्वार वगैरह डाल सकते हैं लेकिन थोड़ी मात्रा में. ज्यादा मिलाने पर आटे का ही स्वाद आता है. इस टपकिये के साथ मूली थेचुवा की झोली का काम्बीनेशन परफैक्ट होता है. भात-टपकिया-झोली, भुनी मिर्च के साथ हो गयी पहाड़ की शाही थाली. दोपहर में खाओ और घाम की तरफ पीठ लगाकर टन्न सो जाओ. बाकी मूली की पत्तियों का लाई का पिनालू के गाबों का, तोरी का टपकिया भी बनाया जाता है.
(Traditional Food Uttarakhand Tapkia)

विनोद पन्त_खन्तोली

वर्तमान में हरिद्वार में रहने वाले विनोद पन्त ,मूल रूप से खंतोली गांव के रहने वाले हैं. विनोद पन्त उन चुनिन्दा लेखकों में हैं जो आज भी कुमाऊनी भाषा में निरंतर लिख रहे हैं. उनकी कवितायें और व्यंग्य पाठकों द्वारा खूब पसंद किये जाते हैं. हमें आशा है की उनकी रचनाएं हम नियमित छाप सकेंगे.

इसे भी पढ़ें: पारम्परिक दाल-भात बनाने का तरीका

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