पहाड़ों में किसी भी बीमारी में झाड़फूंक का रिवाज चला आया है. पीलिया होने, दाँत में घुनता लगने या कीड़ा लगने, बाई पड़ने, बुखार आने, साँप के डंसने पर अलग अलग तरीकों से झड़वाने की क्रिया संपन्न होती है. Traditional Belief In Uttarakhand
कई रोगों में सिसूण या बिच्छू भी झपकाया जाता है. छल लगने में लाल साबुत खुस्याणी, उड़द, पीली सरसों को चार बाटे में आग में जलाया जाता है. तंत्र मंत्र, उचेण, पूछ में चावल का उपयोग होता है.
पिठ्या के साथ अक्षत लगाए जाते हैं. लड़कियों द्वारा देली पूजी जाती है. शादी बारात जाने में अक्षतों से निशानों तथा दूल्हे -दुल्हिन की पूजा की जाती है. माथे से कान के पास तक पिसे चावल से कुर्मुले बनाये जाते हैं.
साल चावल के आटे से शिवलिंग बना पूजा करने से संतान कामना पूरी होने की आशा की जाती है. माघ में चावल-उड़द की खिचड़ी व सावन में खीर खाना शुभ माना जाता है.
नींबू भी शुभ माना जाता है. शादी में छोली में इसे जरूर रखा जाता है. सपने में भी चावल, निम्बू देखना शुभ माना जाता है. हल्दी भी हर मंगल काज में काम आती है. कलश स्थापना, कंकण बांधने, ब्वारी के आंचल, जनम्बार में कच्ची हल्दी की गांठ, राई -सुपारी के साथ गांठ में बँधी जाती है. जतकाल में सौंठ, अजवाइन, गोंद के साथ हल्दी भून पंजीरी बनाई जाती है.
पहाड़ की लोकथात यहाँ की सम्पदा के तालमेल से अनेक रूपों में बहुविध विश्वास का विहंगम दर्शन कराती है. लोक विश्वास में छुपे वैज्ञानिक आधार की जाँच पड़ताल होनी वह प्राथमिकता है जिससे रूढ़ियों के घेरे सिमट सकें. तर्क संगत अभिगम विकसित हों. स्थानीयता की पहचान धुंधली होते हुए कहीं ख़तम ही न हो जाये. Traditional Belief In Uttarakhand
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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