फोटो : बेला नेगी
कुमाऊं क्षेत्र में भाई-बहिन के प्रेम पर बनी रवायतें किसी से नहीं छिपी. लोककथा, लोकगीत, पर्व और परम्पराओं में इस प्रेम की अनेक झांकियां देखने को मिलती है. प्रचलित परम्पराओं के अनुसार बहिन के बच्चे यानी भांजे-भांजियों का भी विशेष स्थान होता है.
(Tradition of Kumaon)
कुमाऊं क्षेत्र में भांजे-भांजियों को दान-दक्षिणा देना बड़ा पुण्यकारी समझा जाता है. किसी भी पारिवारिक कार्यक्रम में उनका शामिल होना बेहद शुभ माना जाता है. इसका एक कारण कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाने वाले गोल्ज्यू से जुड़ी लोकगाथा में भी समझ आता है.
गोलज्यू उत्तराखंड में सर्वाधिक पूजे जाने वाले लोकदेवता हैं. कहा जाता है कि गोलज्यू या गोलू देवता एक लोकप्रचलित नाम है दरसल यह बाला गोरिया का ही एक प्रचलित नाम है. गोरिया, गोरिल, ग्वल, ग्वेल, ग्वल्ल आदि भी लोकप्रचलित नाम ही हैं.
लोकगाथाओं में सभी देवता बाला गोरिल के मामा माने जाते हैं. सामान्य शब्दों में बाला गोरिल देव की माता कलिंगा सभी देवताओं की बहिन हुई. आज भी कई जगह किसी भी काम को शुरु करने से पहले बाला गोरिल को आमंत्रित किया जाता है. बाला गोरिया देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए उन्हें अगवानी देव भी कहा जाता है.
(Tradition of Kumaon)
माना जाता है कि जब कभी कोई देवता रुष्ट होते हैं और अनिष्टकारी फल देने लगते हैं तब बाल गोरिया ही आकर देवताओं को शांत करते हैं. कुमाऊं में बाल गोरिया को पंचनाम देवताओं का भान्जा माना जाता है. माना जाता है कि बाल गोरिया की माता कलिंगा भगवान शिव की बहिन थी इस नाते वह सभी देवताओं की बहिन हुई.
आज भी कुमाऊनी परिवारों में बहिन के बच्चों को मिलने वाले विशेष सम्मान का एक कारण लोक में प्रचलित लोकगाथाएं हो सकती हैं. देवताओं से अपने अटूट पारिवारिक रिश्ते बनाने की परम्पराएँ ही उत्तराखंड के समाज को विशेष बनाती हैं. यह उत्तराखंडी समाज की विशेषता ही तो है जिसमें अपने सबसे लोकप्रिय देवता को ‘मामू को अगवानी’ नाम पूजा जाता है.
(Tradition of Kumaon)
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