दारमा घाटी के तितियाल बंधुओं की कथा

दो-एक दशक पहले तक मुख्य सड़क धारचूला से तवाघाट तक जाया करती थी. तवाघाट में मिलने वाली धौलीगंगा और कालीगंगा नदियों के किनारे किनारे चल कर क्रमशः दारमा और व्यांस घाटियों तक पैदल जाया जा सकता था. व्यांस घाटी के शुरुआती गाँवों तक अभी सड़क ने पहुंचना बाकी है जबकि दारमा के सुदूर ढाकर गाँव तक यह सुविधा कच्चे ऊबड़खाबड़ मार्ग की सूरत में पिछले ही साल पहुँची है. ढाकर के उस तरफ़ थोड़ा नीचे बसा तीदांग गाँव है जहाँ के बाशिंदे तितियाल कहलाये जाते हैं.

जिस शौका अथवा रं समाज से तितियाल बिरादरी का सम्बन्ध है उसमें एक कहावत प्रचलित है – “ख़रगोश का पीछा करोगे तो बारहसिंघा निकलेगा”. इस कहावत ज़िक्र यहाँ क्यों किया गया है पोस्ट पढ़कर आपकी समझ में आ जाएगा.

तवाघाट से कोई पचास किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा सा गाँव है तीदांग. आज आपको ऊपर के चित्र में दिखाई दे रहे  रहा घर की कहानी बताते हैं.

अब स्वर्गीय हो चुके श्री विजय सिंह तितियाल ने जब साठ के दशक में पुलिस के वायरलैस प्रकोष्ठ की नौकरी करने के लिए घर छोड़ा होगा उन्हें शायद पता भी नहीं होगा कि उनके निशान कहाँ-कहाँ और किन-किन आँखों में रह जाने वाले हैं. अपने तीनों बेटों जीवन, नारायण और गोविन्द को उन्हें गाँव में रखना पड़ा क्योंकि उन्हें साथ ले जा सकने लायक समुचित संसाधन तब नहीं थे. तीनों ने पांचवीं तक की पढ़ाई तीदांग गाँव के प्राइमरी स्कूल में की. आठवीं तक की पढ़ाई के लिए उन्हें अपने गाँव से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित दुग्तू के जूनियर हाईस्कूल आना पड़ता था. आज यह कल्पना करना मुश्किल लगता है कि छठी-सातवीं में पढ़ने वाले किसी बच्चे को रोज दस किलोमीटर आना-जाना करना पड़ता हो – और मैं उच्च हिमालयी पहाड़ों की बीहड़ ऊंचाइयों के मुश्किल रास्तों की बात कर रहा हूँ. आगे की पढ़ाई कुछ समय धारचूला में करने के बाद तीनों ही भाई अपने पिता के पास लखनऊ चले गए जहां से उन्होंने इंटर पास किया. उसके बाद के तीसेक सालों में इस परिवार ने जो कुछ हासिल किया है वह बेमिसाल है. यहाँ यह बताना अनिवार्य लगता है कि पलायन के चलते तीदांग और दुग्तू के ये दोनों स्कूल अब बंद हो चुके हैं.

सबसे बड़े भाई डॉ. जीवन सिंह तितियाल फ़िलहाल एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में नेत्र विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं और देश के सबसे बड़े और कुशल नेत्र चिकित्सकों में उनका शुमार है. केराटोप्लास्टी, रिफरेक्टिव सर्जरी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट जैसे जटिल विषयों में महारत रखने वाले डॉ. जीवन सिंह तितियाल लाइव कॉर्निया ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले पहले भारतीय डाक्टर बने. उन्हें साल 2014 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया.

मित्र डॉ. गोविन्द सिंह तितियाल उनके छोटे भाई हैं. कुमाऊँ भर में सबसे अधिक ख्याति रखने वाले आई सर्जन डॉ. गोविन्द हल्द्वानी के मेडिकल कॉलेज में नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष हैं. 1970 में जन्मे डॉ. गोविन्द सिंह तितियाल ने 1984 तक तीदांग-दुग्तू में ही रहकर पढ़ाई की और आगे चलकर लखनऊ, मेरठ और आगरा से डाक्टरी की डिग्रियां लेने के बाद हल्द्वानी को अपनी कर्मस्थली बनाया.

पुरानी शास्त्रीय किताबों में डाक्टर को जिस तरह के फ़रिश्ते के रूप में दिखाया जाता है, डॉ. गोविन्द हू-ब-हू उसकी छवि हैं. आज के चिकित्सा क्षेत्र में पसरी अमानवीय मार-खसोट के पसमंजर में उन्हें देख कर लगता है कि दुर्भाग्यवश सफलता के उस तय बना दिए गए खांचे में यह आदमी कितना मिसफिट है. लेकिन उनके चिकित्सकीय कौशल, दोस्ताना शख्सियत और विशेषतः बुजुर्गों और बच्चों के साथ उनके स्नेहिल व्यवहार के देखकर यह अहसास और भी गहरा होता है कि ऐसे ही मिसफिट लोगों की वजह से संसार रहने लायक बचा रह सका है. उनकी अन्तरंग दोस्ती खुद मेरे लिए ईर्ष्या का कारण है.

दोनों डाक्टर बन्धु हर साल एक से अधिक बार अपने गाँव ही नहीं घाटी के अन्य सुदूरतम गाँवों में भी चिकित्सकों की आधुनिकतम टीमों को ले जाकर मुफ्त स्वास्थ्य कैम्प लगाते हैं और क्षेत्र के वंचित लोगों के लिए तमाम तरह की सहायता जुटाने का प्रयास करते हैं. तीसरे भाई श्री नारायण सिंह तितियाल फिलहाल आर.पी.एफ़. में असिस्टेंट कमांडेंट हैं और अपने दोनों भाइयों की ही तरह अपने इलाके और उसके बाशिंदों के उत्थान के लिए हरसंभव योगदान देते हैं.

अपने गाँव की मिट्टी का ऋण पहचानने और उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तीनों भाई हर साल वहां जाते हैं. दूसरा फोटो हाल का है जिसमें तीनों भाई (बाएँ से दाएं जीवन, गोविन्द और नारायण) अपने गाँव की पारंपरिक पगड़ी ब्यंठलो पहले हुए हैं. एकाध दशक पुराने तीसरे फोटो में तीनों भाई ताजमहल के सामने हैं जबकि सप्ताह भर पुराने चौथे वाले में तीदांग के अपने घर की सीढ़ियों पर बैठा मित्र डॉ. गोविन्द सिंह तितियाल का परिवार है.

तीदांग गाँव का यह अद्वितीय परिवार समूचे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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  • बंदरोंने पहाड़ों के फल और खेती का स्त्यानाश किया हुआ है इस पर काम किया जाए तो कुछ भला होगा गांव का
    हमारे गांव में बहुत कुछ होता है लेकिन बंदर सारा खत्म कर देता है खाते कम है बर्बाद ज्यादा करता है

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